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कुपोषण दूर करने वाला खाना बना रहा बीमार, जानें क्‍यों हुई थी मिड-डे मील की शुरुआत

मिड-डे मील में लापरवाही के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। एक बेहतरीन योजना किस तरह लापरवाही का शिकार हो रही है, इसका ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल में सामने आया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के एक स्कूल में मिड-डे मील में मरी हुई छिपकली निकलने का मामला सामने आया है। इस खाने को खाकर 87 छात्र बीमार पड़ गए। मामला बंकुआ जिले के एक सरकारी स्कूल का है, जहां दूषित खाना खाने के कारण छात्रों की हालत बिगड़ी। इसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालांकि, सभी बच्चों की हालत स्थिर रही और उन्हें उपचार के बाद घर भेज दिया गया।


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पहले भी होती रही हैं ऐसी घटनाएं

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्‍कूल में बच्चों को खाना बांटा गया था। खाते समय एक बच्चे की प्लेट में एक मरी हुई छिपकली पाई गई। अपने साथी की प्लेट में मरी हुई छिपकली देखकर, वहां मौजूद सभी बच्चे डर गए। जिला प्रशासन और स्कूल अथॉरिटी ने बच्चों को स्थानीय अस्पताल पहुंचाया। मगर यह पहला मामला नहीं है, जब मिड-डे मील खाकर बच्चे बीमार हुए हैं। इससे पहले ओडिशा में मिड-डे मील खाने से 200 से ज्यादा बच्चे बीमार पड़ गए थे। ये बच्‍चे पांच स्कूलों के थे, जिनके लिए एक ट्रस्ट खाने की आपूर्ति करता था। इसी प्रकार का एक मामला बिहार के जमुई में भी सामने आया था, जहां मिड-डे मील में मरी हुई छिपकली मिलने के बाद करीब 25 बच्चे बीमार पड़ गए थे।


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इस उद्देश्‍य से हुई थी योजना की शुरुआत

इस योजना के तहत प्राइमरी व अपर प्राइमरी में (8वीं तक) पढ़ने वाले बच्चों को दोपहर में ताजा पकाया हुआ खाना दिया जाता है। देश में औपचारिक रूप से इस योजना की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को 2408 ब्लॉक से हुई, जबकि पूरे देश में यह 2004 में लागू की गई। स्कूलों में बच्चों की संख्‍या बढ़ाने, उन्हें नियमित तौर पर स्कूल आने व स्कूल न छोड़ने के लिए प्रेरित करने और बच्चों में होने वाले कुपोषण को दूर करने के उद्देश्‍य से यह योजना चालू की गई थी। फिलहाल देश के 12.65 लाख सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों व ईजीएस केंद्रों (एजुकेशन गारंटी स्कीम सेंटर्स) के जरिए करीब 12 करोड़ बच्चों को इस योजना के तहत लंच दिया जाता है।


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योजना के लिए सख्‍त गाइडलाइंस

मिड-डे मील के तहत खाना तैयार करने से लेकर बच्‍चों को परोसने तक के लिए गाइडलाइंस हैं। नियम है कि रसोई घर क्लास रूम से अलग होना चाहिए। खाना बनाने के लिए जिस ईंधन का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका सुरक्षित भंडारण किया जाना चाहिए। अनाज, दलहन या तेल साफ-सुथरा होना चाहिए। इसमें न कोई मिलावट हो, न ही इसमें किसी पेस्टिसाइड की कोई मात्रा हो। अनाज को अच्छी तरह से धोकर और साफ करके ही इस्तेमाल में लाना चाहिए। भंडारण भी साफ-सुथरा होना चाहिए। जो भी कर्मचारी खाना बनाने या उसे परोसने का काम करते हों, उन्हें भी व्यक्तिगत तौर से साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। मसलन उनके हाथों के नाखून कटे हों। खाना बनाने और परोसने के पहले वे अपने हाथ-पैर ठीक से साफ करें आदि। खाना बच्चों को परोसने के पहले उसे तीन वयस्कों को चखाना चाहिए, जिनमें स्कूल का एक शिक्षक या शिक्षिका का होना जरूरी है। खाना बनाने वाले बर्तनों को रोज साफ करके ही रखना चाहिए। मगर ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद यही लगता है कि शायद ही इन नियमों का पालन किया जाता हो।


निगरानी की भी है व्‍यवस्‍था

इस योजना के लिए राज्य में तीन स्तरीय निगरानी व्यवस्था की गई है। राज्य स्तर पर इसकी अध्यक्षता राज्य के मुख्य सचिव करते हैं। जिला स्तर पर इसकी अध्यक्षता कलक्टर या उपायुक्त करते हैं। ब्लॉक स्तर पर इसकी अध्यक्षता एसडीएम या एसडीओ करते हैं। इन समितियों को टारगेट दिया जाता है कि महीने में इतने स्कूलों में दिए जाने वाले खाने की जांच की जाए…Next


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