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रानी लक्ष्‍मीबाई को अंग्रेज जनरल मानता था सबसे खतरनाक, जीते जी नहीं करने दिया झांसी पर कब्‍जा

रानी लक्ष्मीबाई ने पुरुषों के वर्चस्व वाले काल में अपने राज्य की कमान संभालते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। उन्‍होंने अपने जीते जी अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया। अंग्रेज भी उनकी वीरता के कायल थे। उनकी वीरता के लिए ही कहा जाता है… खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। आज के ही दिन यानी 19 नवंबर, 1835 को देश की इस अद्भुत वीरांगना का जन्‍म हुआ था। हालांकि, कई जगह ऐसा भी लिखा मिलता है कि इनका जन्‍म 19 नवंबर, 1828 को हुआ था। आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें।


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बाजीराव के दरबार में किया सबको प्रभावित

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के भदैनी में हुआ था। उनकी मां का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था। लक्ष्‍मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था। प्यार से उन्हें मनु पुकारा जाता था। मोरोपन्त एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। मनु जब चार वर्ष की थीं, तभी उनकी मां की मृत्यु हो गई। इसके बाद मोरोपन्त तांबे उनको अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए, जहां चंचल और सुन्दर मनु ने सबको प्रभावित किया।


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ऐसे बनीं झांसी की रानी

सन् 1842 में मनु का विवाह झांसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ। इसके बाद वे झांसी की रानी कहलाने लगीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवंबर, 1853 को राजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई। लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।


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तात्या टोपे के साथ मिलकर लड़ीं

इसके बाद झांसी को कमजोर होता देख 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने आक्रमण कर दिया, लेकिन रानी ने उन्‍हें विफल कर दिया। 1858 के जनवरी में ब्रिटिश सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। झांसी के किले में रसद व युद्ध सामग्री खत्म होते देख रानी ने समर्पण की जगह जंग को जारी रखने के लिए दामोदर राव के साथ कालपी की ओर कूच किया। वहां बिठूर से भागे नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे के नेतृत्व में बागियों की फौज ने किले पर कब्जा कर डेरा डाल लिया था। वहां से विद्रोहियों ने ग्वालियर आकर वहां के नाबालिग सिंधिया राजा से धन व दूसरे युद्ध संसाधन वसूलकर अंग्रेजों से जंग की तैयारी कर ली। तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 18 जून, 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति हासिल की।


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सबसे खतरनाक थीं रानी लक्ष्मीबाई

इस लड़ाई को लेकर ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज ने टिप्पणी की थी कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए तो उल्लेखनीय थीं ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थीं। दरअसल, रानी लक्ष्मीबाई झांसी से कालपी होते हुए दूसरे विद्रोहियों के साथ ग्वालियर आ गई थीं। हालांकि, कैप्टन ह्यूरोज की युद्ध योजना के चलते ही वे घिर गईं…Next


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