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प्रद्युम्न का अकेला कातिल 11वीं का आरोपी छात्र नहीं है!

एक सुबह हम टीवी ऑन करते हैं और रॉयन इंटरनेशनल स्कूल की एक ऐसी खबर आती है, जिससे हम अंदर तक सिहर उठते हैं. सात साल का प्रद्युम्न का मर्डर हो गया है. सभी के लिए इस खबर से चौंकने की कई वजह थी. एक वजह थी कि एक 7 साल के बच्चे की किससे दुश्मनी हो सकती है? स्कूल में बच्चे को चाकू से गला रेतकर मार दिया जाता है और किसी को भनक तक नहीं लगती? एक स्कूल में सुरक्षा इतनी कमजोर कैसे हो सकती है?

इन सवालों के बीच हरियाणा पुलिस पर दबाव बढ़ा और उन्होंने आनन-फानन में स्कूल बस कंडक्टर अशोक को पकड़ लिया. शुरूआत में मामले की जांच यौन शोषण के एंगल से की गई, लेकिन एक दिन आरोपी ने कुबूल लिया कि उसने कुछ नहीं किया बल्कि पुलिस के दबाव के चलते उसने ये गुनाह कुबूला है.


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11वीं क्लास का लड़का निकला आरोपी

पुलिस पर लीपापोती के आरोप लगने लगे. जिसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया. 5 सितंबर को केस सीबीआई के हाथ में चला गया था. हत्या के ठीक दो महीने बाद सीबीआई ने प्रद्युम्न के स्कूल के ही एक सीनियर स्टूडेंट को कातिल बताया और उसे हिरासत में लिया. तीन दिन की रिमांड के दौरान सीबीआई ने आरोपी से पूछताछ की, जिसमें आरोपी ने गुनाह कबूल किया और कई नई बातें सामने आईं. सबसे चौंकाने वाली थी हत्या की वजह जिसमें आरोपी ने बताया कि एग्जाम और पीटीएम रोकने के लिए उसने ये कदम उठाया.


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एग्जाम का ऐसा डर? जटिल हो रही है शिक्षा व्यवस्था

11वीं के इस आरोपी छात्र की ये वजह सुनकर हर कोई सन्न रह गया. जरा सोचिए, किसी को एग्जाम और पैरेंट्स-टीचर मीटिंग से इतना डर लग सकता है कि वो इन सबसे बचने के लिए किसी का मर्डर कर दे? ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों को संवेदनशील इंसान बनाने की बजाय उन्हें महज नौकरी पाने के लिए ट्रेनिंग दे रही है?


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बचपन से ही डराकर सिखाया जाता है

बेटे जल्दी से खाना खा लो, वर्ना भूत आ जाएगा, अगर आप ये काम नहीं करोगे, तो आपको बाबा बोरे में उठाकर ले जाएगा. डर की शुरूआत तो बचपन से ही हो जाती है, जब बच्चों की मासूमियत का फायदा उठाकर उन्हें डराकर कोई काम करवाया जाता है. एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि बचपन में जिस चीज से हमें डराया जाता है, करीब 40% लोगों में व्यस्क होने पर भी वो डर रहता है. जैसे अंधेरे में डराए जाने की वजह से कई लोगों को बड़े होने पर भी अंधेरे से डर लगता है. बड़े होने पर उम्र के साथ डर भी बढ़ता जाता है. पढ़ाई, टेस्ट, एग्जाम, रिजल्ट, नौकरी, मीटिंग, शादी अलग-अलग चीजों से हमें डर लगने लगता है. हम डर से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय सोचने लगते हैं. एक समय ऐसा आता है जब सही-गलत पर डर हावी हो जाता है.


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शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या है?

ऐसे में समाज, सरकार और व्यवस्था को ये बात समझनी होगी कि शिक्षा का मूल उद्देश्य एक संवेदनशील इंसान बनाना है, जिसे सही-गलत में फर्क पता हो. जिसे प्यार, दया, खुशी के मायने पता हो. अगर इन पहलुओं पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि प्रद्युम्न के मर्डर के लिए सिर्फ 11वीं का छात्र जिम्मेदार नहीं है…Next



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