अक्सर सड़क पर जाते हुए मेरी नजर कुछ पुलिसवालों पर पड़ती है, जो गाली-गलौच करके सड़क पर चल रहे ई-रिक्शा, ऑटोवालों को धमकाते रहते हैं. उन्हें कोई छोटी-सी बात भी कहनी होगी, तो उनका रवैया इतना बदतमीजी से भरा रहता है, कि उन्हें देखकर अफसोस होता है कि इन्हें जनता की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया है. सख्त होने का अर्थ असंवेदनशील या किसी को अपशब्द कहना तो नहीं होता. ये बोल्डनेस की परिभाषा तो बिल्कुल नहीं है. पुलिस के इस रवैए की वजह से लोग उनके पास जाने से कतराते हैं. उन्हें लगता है कि मामले को आपस में निपटाना ही सही है, वर्ना पुलिस उनसे ही अपराधियों जैसा सुलूक करेगी.
75% लोग नहीं कराते एफआईआर दर्ज
हाल ही में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) ने एक रिपोर्ट जारी की है. जिसके मुताबिक देश की करीब 75 फीसदी आबादी अपराध होने के बाद केस दर्ज कराने से बचती है. खासकर महिलाएं और वंचित तबका कुछ ज्यादा ही पुलिस से भयभीत है. इसके पीछे पीड़ितों के साथ पुलिस का खराब व्यवहार है. एक स्टडी में यह बात सामने आई है. इसके मुताबिक अगर दर्ज नहीं होने वाले अपराधों की गणना करें तो पता चल सकता है कि 10 फीसदी से भी कम अपराध दर्ज हो रहे हैं. डॉ अरविंद तिवारी के नेतृत्व में एक टीम ने ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट के लिए स्टडी की है. इस स्टडी के मुताबिक महिलाओं की शिकायत पर पुलिसिया रवैये में व्यापक सुधार की जरूरत है. रिपोर्ट में बताया गया है कि गरीबों के साथ पुलिस भेदभाव करती है.
मायावती उठाती थी सख्त कदम
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि यूपी में मायावती के कार्यकाल के दौरान जब भी कोई अपराध होता था, कोई कार्रवाई न करने या काम ठीक से नहीं करने पर मायावती वरिष्ठ अधिकारियों को सस्पेंड कर देती थी. वहीं पुलिस के रवैए के अलावा राजनीतिज्ञ दबाव, दबंगों की गुंडई भी केस दर्ज न होने के अहम कारण माने गए.
इस रिपोर्ट को देखते हुए ये नतीजा निकलता है कि पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली सुधारनी होगी, जिससे कि कोई आम व्यक्ति अपने साथ अन्याय होने पर पुलिस स्टेशन जाने से न कतराए…Next
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