Menu
blogid : 316 postid : 1352843

तीन घटनाएं जो बताती हैं कि हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं

देश में हाल की तीन घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि भौतिक सुख के लिए हम अपनों की भी कीमत लगाने में पीछे नहीं हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं। हमारे लिए पैसा, पद और प्रतिष्‍ठा से बढ़कर परिवार नहीं है।


hand


ये तीन घटनाएं समाज को करती हैं शर्मसार


पिछले महीने खबर आई थी कि देश के बड़े अमीरों में शुमार, 12 हजार करोड़ रुपये के रेमंड ग्रुप के मालिक 78 वर्षीय विजयपत सिंघानिया बेटे की बेरुखी के कारण किराये के घर में रह रहे हैं। ये वही विजयपत सिंघानिया हैं, जो कभी मुकेश अंबानी के एंटीलिया से भी ऊंचे जेके हाउस में रहते थे। कभी खुद जहाज उड़ाने वाले विजयपत अब पैदल घूमने को मजबूर हैं। जिस बेटे के नाम उन्‍होंने सारी संपत्ति कर दी, उसी ने उन्‍हें घर से निकाल दिया।


अगस्‍त में ही एक और ऐसी खबर आई, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया। मुंबई के लोखंडवाला इलाके की एक पॉश सोसायटी की 10वीं मंजिल पर स्थित एक फ्लैट से 63 वर्षीय आशा केदार साहनी का कंकाल रिकवर हुआ। महिला का बेटा रितुराज साहनी अमेरिका में आईटी इंजीनियर है। 2016 में आखिरी बार उसने मां से बात की थी। तब उन्‍होंने कहा था कि वे अब अकेलेपन में नहीं रहना चाहतीं और किसी वृद्धाश्रम में चली जाएंगी। 6 अगस्‍त 2017 को रितुराज जब घर पहुंचा, तो फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था। दरवाजा तोड़कर अंदर गया, तो बेड पर कंकाल देखा। ऐसी आशंका जताई गई कि भूख और कमजोरी से आशा की मौत हुई। आशा के नाम बेलस्कॉट टॉवर में करीब 5 से 6 करोड़ रुपये के दो ‌फ्लैट हैं।


इसी महीने एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। 10 अगस्‍त को बिहार के बक्सर जिले के डीएम मुकेश पांडेय का शव गाजियाबाद रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर कोटगांव के रेलवे ट्रैक पर पाया गया। मामले में पुलिस का मानना था कि उन्होंने आत्महत्या की है। शव के पास से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ था, जिसमें लिखा था कि मैं अपनी मर्जी से मर रहा हूं। मेरी मौत के बाद मेरे रिश्तेदारों को खबर कर देना। इसके अलावा कुछ अन्‍य जानकारियां लिखी थीं। शुरुआती जांच में माना गया कि मुकेश ने तनाव में आकर आत्‍महत्‍या की।


क्‍यों अपनों से दूर हो रहे हम

ये तीनों घटनाएं झकझोर कर कहती हैं कि खुशियां पैसों से नहीं, अपनों से मिलती हैं। शिक्षा और धन से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण संस्‍कार है। ये घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर क्‍यों हम भौतिक सुख के लिए अपनों की जिंदगी की कीमत लगा रहे हैं। जिस बुढ़ापे में सिंघानिया और आशा को बेटे का सहारा मिलना चाहिए था, उस समय बेटों ने उनकी परवाह तक नहीं की। उनके लिए अपना कॅरियर या कहें कि पद, पैसा और प्रतिष्‍ठा ज्‍यादा जरूरी लगा। कितना शर्मनाक है कि जिस बेटे को आशा ने जन्‍म दिया, उसे मां की खबर तक लेने की फुरसत नहीं मिली। जिस बेटे को सिंघानिया ने अरबों की संपत्ति का मालिक बनाया, उसने उन्‍हें घर से बाहर निकाल दिया। जिस सपने को सच करने के लिए मुकेश पांडेय ने दिन-रात एक कर दिया होगा, उसने तनाव में आकर जिंदगी खत्‍म कर ली। मुकेश और आशा को अपनों का साथ मिला होता, तो वे भी आज इस दुनिया में होते। सिंघानिया के बेटे में संस्‍कार होता, तो पिता को ससम्‍मान अपने पास रखता।


Read More:

इन स्‍टेशनों से गुजरेगी देश की पहली बुलेट ट्रेन, इतनी तेज रहेगी रफ्तार
कैसे टूटा अम्मा की जगह लेने का  चिनम्माका सपना, वीडियो पार्लर से लेकर जेल तक शशिकला का सफर
अगर ये होता तो शायद बच जाती मासूम प्रद्युम्‍न की जान


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh