पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद से सोशल मीडिया पर आक्रोश देखने को मिल रहा है. पत्रकार गौरी काफी दिनों से दक्षिणपंथियों के निशाने पर थीं. उन्हें बार-बार जान से मारने की धमकियां मिल रही थी. मंगलवार को उनके घर के बाहर उन्हें गोली मार दी गई. दो गोली सीने और एक गोली सिर में लगते ही उनकी मौत हो गई. माना जा रहा है गौरी घोर हिंदुत्व के कारण उपजी हिंसा और सामाजिक बुराईयों पर जमकर लिखती थी. जिसके कारण उनके कई दुश्मन बन गए थे.
एक तरफ जहां लोग गौरी की हत्या को असुरक्षा के माहौल से जोड़कर देख रहे हैं वहीं एक वर्ग ऐसा भी है, जो गौरी की हत्या को बिल्कुल जायज ठहराने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं. वहीं इस वर्ग का कहना है कि घोर हिंदू विरोधी होने का कारण ये था कि गौरी ईसाई धर्म की थी, इस वजह से उन्हें जलाने की बजाय दफनाया गया.
सोशल मीडिया पर इस झूठ को फैलाने का कारोबार तेजी से चल रहा है लेकिन गौरी को दफनाने की वजह उनका ईसाई होना नहीं बल्कि उनके समुदाय से जुड़ी हुई है.
लिंगायत समुदाय की थी गौरी लंकेश
लिंगायत समुदाय में अंतिम संस्कार में जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है. इसमें मृतक के शरीर को सजाकर दफनाया जाता है. दफनाने की भी दो विधि होती है. मृतक को उसके परिजनों की मर्जी से बैठाकर या लेटाकर दफनाया जाता है. दफनाने से पहले मृतक को किसी लकड़ी या डंडे के सहारे बांधकर बैठाया जाता है और उसे सजाकर विदा करते हैं.
लिंगायत समुदाय शिव की करते हैं पूजा
लिंगायत लोग शिवलिंग के लघु आकार की पूजा करते हैं. इन्हें ईष्टलिंग कहते हैं. लिंग की ऊंचाई एक सेंटीमीटर की होती है और परिधि भी एक सेंटीमीटर की होती है. ईष्टलिंग का रंग काला होता है. इनकी पूजा बायें हाथ में रखकर की जाती है, जबकि दायें हाथ से फूल चढ़ाए जाते हैं. इसके साथ मंत्र जाप होता है और फिर लोग या तो तय स्थान पर रख देते हैं या लाकेट में रखकर गले में डाल लेते हैं. स्त्री पुरुष दोनों ही लाकेट की तरह अपने ईष्ट को डालते हैं. बसवन्ना कर्नाटक के बड़े संत हुए हैं. ये समुदाय उन्हें भी मानता हैं. सोशल मीडिया पर तनाव की स्थिति के तहत झूठ फैलाया जा रहा है, इसे नजरअंदाज करने की सख्त जरूरत है. …Next
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