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‘उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं’, अमृता प्रीतम को इस हद तक प्यार करते थे इमरोज

‘मैं तुम्हें फिर मिलूंगी. कहां, किस तरह ये तो नहीं जानती. शायद तुम्हारी कल्पना की चिंगारी बनकर, तुम्हारे कैनवास पर उतरूंगी.’

इमरोज के नाम लिखी हुई अमृता प्रीतम की आखिरी कविता. साल 2005, पेंटर इमरोज के लिए उस तस्वीर जैसा था जिसमें वो चाहकर भी रंग नहीं भर सकते थे. दरअसल मशहूर लेखिका और कवयित्री अमृता प्रीतम साल 2005 में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहकर चली गई. उन्होंने जाने से पहले अपने 40 साल तक साथ निभाने वाले पेंटर इमरोज के नाम ये कविता लिखी थी. अमृता और साहिर लुधियावनी का नाम अक्सर ही जोड़ा जाता है लेकिन इमरोज बहुत पहले से अमृता प्रीतम को प्यार करते थे. जब अमृता का रिश्ता साहिर से टूटा, तो वो इमरोज के घर आकर रहने लगी.


amrita


कहते हैं अमृता के गुजरने के बाद  मौत के बाद इमरोज चित्रकार से शायर बन बैठे और अमृता की पहले लिखी कविताओं का जवाब अपनी दिलकश शायरी से देने लगे. उनकी मौत के चंद सालों बाद जब उनके किसी परिचित ने एक रोज उन्हें समझाते हुए कहा ‘इमरोज साहब, अब बस भी करें, अमृता जा चुकी है.’ तो उन्होंने मुस्कुराते हुए एक खूबसूरत बज्म जवाब के अंदाज में उस शख्स को सुनाई. उन्होंने कहा ‘उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं.’ इतना कहकर इमरोज साहब खामोश हो गए और फिर गुनगुनाने लगे.


imroz and amrita


चार दशकों की वो अनकही प्रेम कहानी

सामाजिक दायरों को तोड़ते हुए इस प्रेमकहानी को हर किसी के लिए स्वीकारना इतना आसान नहीं था. कहा जाता है कि अमृता प्रीतम और इमरोज की पहली मुलाकात 1957 में हुई थी. जिसके बाद दोनों की मुलाकात प्यार में बदल गई. अमृता की शादी 1935 में प्रीतम सिंह से हो चुकी थी. लेकिन 1960 में दोनों ने अलग रहने का फैसला कर लिया. अमृता की कविताओं से ऐसा लगता है कि उन्हें बस एक सच्चे प्यार की तलाश थी.


amrita


उनकी ये तलाश इमरोज के करीब आकर पूरी हुई. दोनों का धर्म अलग था लेकिन दोनों ने कभी इस बात की परवाह नहीं की और चार दशकों तक एक-दूसरे का साथ निभाते रहे. साथ ही दोनों ने कभी शादी या फिर लिखित करार नहीं किया. ‘अमृता इमरोज : ए लव स्टोरी’ किताब के मुताबिक एक रोज अमृता ने मुस्कुराते हुए इमरोज से कहा ‘हम एक ही छत के नीचे साथ रहते हैं. क्या रिश्ता है हमारा?’ इस पर इमरोज ने एक तस्वीर बनाते हुए कहा ‘तू मेरी समाज और मैं तेरा समाज, बस इससे ज्यादा और समाज नहीं.’


imroz


चित्रकारी और कहानी में ढूढ़ते थे एक-दूसरे का नाम

ऐसा माना जाता है कि अमृता और इमरोज दोनों 40 साल तक इसलिए साथ रह सके क्योंकि दोनों एक दूसरे पर बंदिश नहीं लगाते थे. दोनों में कभी लड़ाई-झगड़े भी नहीं हुए. जब भी दोनों को एक-दूसरे की बात पसंद नहीं आती थी तो दोनों एक दूसरे से महीनों तक बात नहीं करते थे. इस दौरान दोनों अपनी अनकही नाराजगी को अपनी चित्रकारी, कविता और कहानी में बयां करते थे. जैसे इमरोज को जब भी अमृता से कोई बात कहनी होती थी, तो वो अपनी पेंटिंग में ऐसी घटना और चरित्र बनाते थे जो उनके मन की बात को बिना कहे ही बयां कर सकती थी.


imroz painting


अमृता इन तस्वीरों को घंटों तक निहारकर, तस्वीर में छुपी बात को समझकर इमरोज को अपनी कविता में इसका जवाब देती थी. इसी तरह अमृता, इमरोज से नाराज होने पर एक कहानी लिखती थी जिसमें बहुत सारे पात्र (करेक्टर) होते थे जो कि असल जिदंगी से मेल खाते थे. इमरोज अमृता की इन कहानियों में खुद को तलाश के अपनी पेंटिंग में इसका जवाब देते थे.


imroz and amrita end


इस तरह से ये सिलसिला दोनों की नाराजगी खत्म होने तक चलता रहता था. कभी-कभी तो महीनों उनकी बात भी नहीं होती थी. इस दौरान दोनों एक ही घर और एक ही कमरे में रहते हुए चित्रों, कविता, कहानियों और खतों के जरिए एक-दूसरे से बात करते थे. 2005 में अमृता प्रीतम और इमरोज साहब की ये 40 साल की अनोखी दास्तान हमेशा के लिए खामोश हो गई. उस वक्त अमृता प्रीतम की उम्र 86 साल और कलाकार इमरोज की उम्र 79 साल थी…Next


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