गोरखपुर में बीआरडी अस्पताल में 60 से ज्यादा बच्चे मर जाते हैं. मीडिया में खबर आती है. आरोप-प्रत्यारोप, जांच आयोग, बयानबाजियों का एक दौर चलने लगता है, जिसमें उत्तरप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह शर्मनाक बयान देते हैं ‘हमें खेद है बच्चों की मौत पर लेकिन अगस्त में तो बच्चे मरते ही है’. इस बयान के बाद मंत्री जी ने पत्रकारों के सामने अगस्त में विभिन्न बीमारियों से हुई बच्चों की मौतों का आंकड़ा रख देते हैं. अब अगस्त में रेल हादसे हो रहे हैं. बीते शनिवार उत्कल एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और अब कैफियत एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. ऐसे में सोशल मीडिया पर रेलवे मंत्रालय के साथ पूरी सरकार पर निशाना साधा जा रहा है. लोग ट्रोल करते हुए दिख रहे हैं ‘क्या अगस्त में रेल दुर्घटनाएं होना भी आम बात है?
पिछले काफी वक्त से रेलवे के हालात खस्ता होते दिख रहे थे. कभी रेलवे के खाने में शिकायत की खबरें देखने को मिलती तो कभी सुरक्षा में सेंध लगती दिखाई देती है. माना जा रहा है कि रेलवे कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है. पिछले दिनों मीडिया में खबर आई थी, जिसमें सेफ्टी स्टाफ की कमी के चलते ट्रेनें अपने टाइम से काफी लेट चल रही थी.
इन्फ्रास्ट्रक्चर का खराब रखरखाव और अपग्रेडेशन की कमी
सेफ्टी स्टाफ की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस रेलवे पटरी से दुर्घटनाग्रस्त हुई कैफियत एक्सप्रेस को गुजरना था, उस पर बालू का डंपर पड़ा हुआ था, जिससे चलते ट्रेन पटरी से उतर गई.
औरैया के पुलिस अधीक्षक संजय त्यागी का कहना है ‘आजमगढ़ से दिल्ली जा रही कैफियत एक्सप्रेस कल देर रात करीब पौने तीन बजे औरैया जिले के पाटा और अछल्दा रेलवे स्टेशन के बीच पटरी पर पलटे एक बालू भरे डंपर से टकरा गयी. इससे ट्रेन के 12 डिब्बे पटरी से उतर गए और उनमें से एक पलट गया. अब ऐसे में सोचना होगा कि पहले से पड़े डंपर की जानकारी रेलवे को क्यों नहीं मिल पाई. सेफ्टी स्टाफ ने इस हादसे की जानकारी क्यों नहीं दी? बीते नवम्बर के आंकड़ों को देखा जाए तो एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह कारण बड़ी संख्या में सेफ्टी स्टाफ की कमी है. सेफ्टी कैटिगरी में करीब 1.27 लाख कर्मचारियों का पद अब तक खाली है.
एक कर्मचारी पर बहुत से कामों का बोझ
बड़ी संख्या में सेफ्टी स्टाफ की कमी होने से मौजूदा कर्मचारियों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. उनको एक दिन में 15 घंटे से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे गलती की संभावना बनी रहती है.
ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के जनरल सेक्रटरी शिव गोपाल मिश्रा ने अपने एक बयान में कहा था कि ‘जहां हमें तीन पैट्रोलमेन की जरूरत होती है, वहां एक भी नहीं है, इससे हादसे होने का खतरा बना रहता है’. वहीं कर्मचारियों के मुताबिक रूट और डिविजन के अनुसार, एक लोकोपायलट को 8-13 घंटे लगातार ट्रेन चलानी पड़ती है.
दबाव के बाद रेलवे ने निकाली 2 लाख नौकरियां
ये बात सोचने वाली है कि क्या रेलवे में अचानक से 2 लाख रिक्तियां हो गई, जिसके लिए भर्ती का विज्ञापन निकाल दिया? जब कर्मचारियों की कमी अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई, तब रेलवे ने इतनी बड़ी संख्या में भर्तियां निकाली है. बेशक, हादसों के दबाव में आकर रेलवे ने ये कदम उठाया है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि रेलवे सेफ्टी सिस्टम से जुड़ी 16 फीसदी पोस्ट खाली पड़े हैं. अभी करीब रेलवे में 13 लाख कर्मचारी काम कर रहे हैं. पिछले 5 दिनों में हुए 2 रेल हादसों की वजह से रेलवे पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, साथ ही रेल मंत्री सुरेश प्रभु के इस्तीफे की मांग भी तेज होती जा रही है.
ऐसे में कोई आला मंत्री जी इन हादसों को अगस्त की देन या खराब किस्मत बताकर आगे बढ़ जाए, इसमें भी कोई हैरानी की बात नहीं होगी….Next
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