आपने गौर किया होगा कि लड़कियों के कपड़ों में जेब नहीं होती. मार्केट में भी ऐसी शर्ट का प्रचलन सबसे ज्यादा है जिनमें जेब नहीं होती. पुरूषों की तुलना में महिलाओं के ऐसे कई कपड़े हैं जिनमें जेब नहीं होती लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये महज इत्तेफाक नहीं बल्कि ये मानसिकता की उपज है.
महिलाओं का काम होता था सिर्फ सुंदर दिखना
1840 को फैशन के लिहाज से एक क्रांतिकारी दशक समझा जाता है. उस समय फैशन डिजाइनर महिलाओं के लिए बड़े गले, पतली कमर और नीचे से घेरदार स्कर्टनुमा ड्रेस डिजाइन करने लगे थे. यह चलन धीरे-धीरे महिलाओं की ड्रेसों से जुड़े फैशन की बुनियाद बन गया. साथ ही ऐसा माना जाता था कि अगर महिलाओं के कपड़ों में जेबें बनाई जाएगी तो इससे महिलाएं अपनी जेब में कुछ न कुछ रखेंगी, जिससे उनके शरीर की बनावट कुछ उभरी-सी दिखाई देगी. आपको सुनकर हैरानी होगी कि उन दिनों महिलाओं का काम सिर्फ सुंदर लगना ही समझा जाता था.
जेब के लिए चलाया गया था आंदोलन
‘Give us Pocket’ (गिव अस पॉकेट) एक ऐसा अभियान, जिसमें महिलाओं ने अपने सभी कपड़ों में पॉकेट की मांग करते हुए आंदोलन चलाया था. बीते कुछ समय से कुछ यूरोपीय देशों में महिलाओं ने अपनी पोशाकों में जेब पाने के लिए ‘गिव अस पॉकेट’ अभियान ने काफी जोर पकड़ा है लेकिन फैशन जगत को ये अभियान बहुत ही हास्याप्रद लगता है.
मानसिकता का फायदा उठाया बाजारवाद ने
पुरूषवादी मानसिकता के चलते महिलाओं के कपड़ों में जेब तो नहीं आई लेकिन बाजार में नए तरह के फैशनेबल पर्स, पोटली, बैग जरूर आ गए. महिलाओं को लुभावने के लिए पिछले काफी सालों से महिलाओं के लिए कई तरह के पर्स मार्केट में आए हैं.
हालांकि, इसे अभियान का नतीजा कहिए या आधुनिक लोगों की खुली सोच, जींस, शर्ट के अलावा ऐसी कई कैचुअल ड्रेस बनाई जा रही हैं, जिनमें जेब होती हैं. …Next
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