मेट्रो में दो लड़कियां आसपास के लोगों से बेपरवाह बातें कर रही थीं, लेकिन लोगों की नजरें ऊपर से नीचे तक उन लड़कियों को स्कैन कर रही थी. कभी लोग उनके हाव-भाव की नकल करके आपस में हंसते, तो कुछ उन्हें देखकर खिसियानी-सी मुस्कान के साथ काना-फूसी करते.
दरअसल, लोग ये हजम ही नहीं कर पा रहे थे कि उनके बीच दो ट्रांसजेंंडर इतने सामान्य होकर बातें कैसे कर रही हैं.
किन्नर या ट्रांसजेडर्स को लेकर ये कोई किस्सा नहीं बल्कि एक आम नजरिया है. दोष पुरानी परम्पराओं का है जहां किन्नरों को सिर्फ खास मौकों पर ही याद किया जाता है. किसी के घर लड़का हुआ, लड़के की शादी हुई, सरकारी नौकरी लगी या फिर कोई मुराद पूरी हुई बधाई देने के लिए इन्हें ही बुलाया जाता है.
इसे स्टीरियोटाइप कहें या कुछ और लेकिन गांवों में रहने वाले ज्यादातर लोगों का मानना है कि किन्नर कोई आम इंसान नहीं होते बल्कि इनका जन्म हम इंसानों को दुआएं देने के लिए होता है. इनपर खुद भगवान का आर्शीवार्द होता है, इसलिए इनकी दुआएं जल्दी लगती है. बस, इसी सोच से शुरू होती है इन्हें आम इंसान ना समझने की मानसिकता. वहीं ये बात जानते हुए कि इनके सिर पर भगवान का हाथ होता इन्हें खास दर्जा तो छोड़िए, इनके साथ सामान्य व्यवहार भी नहीं किया जाता, लेकिन दुनिया में ऐसे भी किरदार हैं, जो अपनी जिंदगी की कहानी खुद लिखते हैं, वो भी बिना प्रचलित किस्सों पर ध्यान दिए.
मानबी बंदोपाध्याय एक ऐसा ही नाम है. देश की पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल, जिन्होंने बीते दिनों अपना विरोध किए जाने पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस इस्तीफे के बारे में इनका कहना है कि वो जिंदगी भर लड़ती ही रही हैं इसलिए उम्र के इस पड़ाव में वो शांति से जीना चाहती हैं. रोजाना होते विरोध और धरने की वजह से बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा था इसलिए इस्तीफा देना ठीक लगा.
मानबी जिंदगी भर चली जिस जंग के बारे में बात कर रही हैं. आइए, डालते हैं उनकी जिंदगी के उन पन्नों पर एक नजर.
कौन है मानबी बंदोपाध्याय
पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले के नैहाटी कस्बे के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सोमनाथ बनर्जी को जल्दी ही पता चल गया कि उनका नाम उनकी असली पहचान नहीं है. मानबी के मुताबिक एक समय था जब मैं खुद से ही सवाल किया करती थी कि मेरे साथ सब कुछ सही नहीं है. ऐसा क्यों है कि मेरा शरीर एक औरत बन जाना चाहता है?’
आखिरकार 2003 में उन्होंने लिंग परिवर्तन ऑपरेशन करवाया और इस नई पहचान को मानबी (अर्थ स्त्री) नाम दिया. हालांकि, 2012 तक कॉलेज रिकॉर्ड में वो पुरुष ही बनी रहीं. जिसे बाद में उन्होंंने बदलवा लिया.
बंगाली साहित्य में कर चुकी हैं पीएचडी
मानबी को साहित्य में शुरू से ही बहुत दिलचस्पी रही है. इसलिए उन्होंने बंगाली साहित्य में पीएचडी की. इसके बाद वो विवेकानंद सतोबार्शिकी महाविद्यालय में प्रोफेसर भी रहीं. उनके बेहतरीन काम को देखते हुए 7 जून 2015 को उन्हें कृष्णागर वीमेंस कॉलेज में प्रिंसिपल बना दिया गया.
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प्यार ने दुनिया के सामने नहीं अपनाया
मानबी के मुताबिक 2003 से पहले से उनका एक लड़के के साथ प्रेम सम्बध था. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था. वो उससे बेहद प्यार करती थीं. दोनों एक-दूसरे के साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते थे. मानबी ने प्यार के लिए सेक्स चेंज करवाते ही उस लड़के से मंदिर में जाकर शादी कर ली. धीरे-धीरे वक्त बीता, लेकिन लड़के ने दुनिया के सामने मानबी को अपनाने से इंकार कर दिया. जिंदगी के इस दौर में उन्होंने जाना कि दोष उनका नहीं बल्कि मानसिकता का है. उन्होंने अपना सेक्स चेंज तो कर लिया, लेकिन समाज की सोच नहीं बदल सकती. इसके बाद मानबी जिंदगी में आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ गईं.
गोद लिया एक बेटा
मानबी के मुताबिक उनकी शादी सफल नहीं हो पाई, लेकिन एक सफल मां बनने की इच्छा उनके मन में हमेशा से थी इसलिए उन्होंने एक बेटा गोद लिया. उनका बेटा देवाशीष एमए की पढ़ाई कर चुका है और उनके साथ ही रहता है. देवाशीष अपनी मां के जीवन से इतने प्रभावित है कि उन्होंने नाम के साथ कोई भी सरनेम लिखने की बजाय अपना नाम देवाशीष मानबीपुत्र रख लिया है.
ट्रांसजेंडर सोसाइटी के लिए कर रही हैं काम
मानबी 2015 में बने वेस्ट बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की उपाध्यक्ष हैं. ये बोर्ड ट्रांसजेंडर समुदाय की एजुकेशन, हेल्थ आदि मुद्दों पर काम कर रहा है. साथ ही वो पिछले 20 सालों से ‘ओबमानव’ नाम की बंगाली मैगजीन भी निकाल रही है. हिंदी में ‘ओबमानव’ का अर्थ होता है ‘उपमानव’.
मानबी की तरह ही हमारे बीच ऐसे कितने ही लोग हैंं, जो समाज की सोच और स्टीरियोटाइप की वजह से जिंदगी में दिक्कतें झेल रहे हैं. सच में, जिंदगी उस दिन बहुत आसान हो जाएगी, जब हम अपनी छोटी सोच को किसी की जिंदगी पर हावी नहीं होने देंगे…Next
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