भारत में अनेक पवित्र तीर्थस्थलों हैं जो किसी न किसी दैवीय शक्ति से सम्बंधित हैं. भारत के उत्तर प्रदेश में यमुना किनारे बसा मथुरा- वृंदावन भगवान श्री कृष्णा से जुड़ा है. यहाँ की गलियों में हर वक़्त राधे -कृष्णा के नाम की गूँज रहती है, जो अपने आप में अत्यधिक आन्नदमय है.
विधवाओं का शहर माना जाता है वृंदावन
युगों-युगों से कृष्णा भक्ति के लिए प्रसिद्ध वृंदावन का एक अप्रिय पहलु भी है, जिससे सामान्य जन अनिभिज्ञ है. वृंदावन को ‘विधवाओं का शहर’ भी कहा जाता है, जहां लाखों विधवा महिलायें अपने परिवारों को छोड़कर गुमनामी की ज़िन्दगी बसर कर रही हैं. हमारे देश के कुछ हिस्सों में व्याप्त अंधविश्वासों के कारण आज भी विधवा महिलाओं को दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है.
वृन्दावन में मौजूद है हजारों विधवाएं
पुराने समय की सती -प्रथा बेशक जड़ से समाप्त हो चुकी है, लेकिन ऐसे क्षेत्रों की विधवा महिलाओं को उनके पति की मृत्यु के बाद सारे अधिकारों से वंचित कर एक सफ़ेद साड़ी पहनाकर घर से बाहर निकाल दिया जाता है. ऐसी हज़ारों महिलायें वृन्दावन में आकर बस जाती हैं, जिसको वह मुक्ति का धाम मानती हैं.
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कठिन है महिलाओं का जीवन
मृत्यु के आश में वह किसी भी आश्रम में सालों गुजारने के लिए मज़बूर हो जाती हैं, जहाँ दो वक़्त के भोजन को जुटाने के लिए उनको आश्रम में साफ़ सफाई जैसे काम करने पड़ते हैं. आश्रम में स्थान न मिलने पर वृंदावन की गलियों में भीख माँगती नज़र आती हैं, तो कभी यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं. 55,000 की आबादी वाले इस छोटे शहर में लगभग 20,000 विधवा निरंतर विषम परिस्तिथियों में जीवन निर्वाह करने को विवश हैं.
जीवन जीने का अधिकार नहीं ?
समाजसेवा संस्थान गिल्ड ऑफ़ सर्विस की संचालिका डॉ. गिरी इनकी दशा में बदलाव के लिए कठिन प्रयास कर रही हैं. डॉ. गिरी बताती हैं ” मैं भी 50 साल की उम्र में विधवा हो गयी थी, जिसके बाद मुझे समाज का दूसरा रूप देखने को मिला, मुझे मनहूस माना जाने लगा.”
व्ह आगे कहती हैं “हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां विधवाओं को सुंदर दिखने का अधिकार भी नहीं मिलता. उनके बाल काट दिए जाते हैं. मैं इन सबकी ज़िन्दगी में बदलाव लाना चाहती हूँ लेकिन इस दिशा में मेरा प्रयास बाल्टी में एक बूँद पानी के बराबर है “…Next
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