‘मैं तुम्हारे लिए आसमान से तारे तोड़कर ले आऊंगा, चांद को तुम्हारे कदमों में लाकर रख दूंगा.’ अगर आपने भी अपने आसपास के लोगों को अपने पार्टनर के लिए ऐसे ही फिल्मी डॉयलाग बोलते हुए देखा हो और जिसे सुनकर आपको लगता हो कि ऐसा कहने वाले लोग अपने पार्टनर को कितना प्यार करते होंगे, तो जरा एक पल ठहरकर फिर से सोचिए.
पत्नी की जिद मानने वाले पुरुष होते हैं ज्यादा संतुष्ट !!
ये सब तो फिल्मी बातें हैं जिसका हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. लेकिन इन बातों से परे अगर कोई आपके पार्टनर को मूलभूत जरूरतों का सामान लेने से सिर्फ इसलिए रोक दे क्योंकि उसकी जाति समाज के लोगों द्वारा निचले दर्जे की मानी जाती है तो आप पर क्या बीतेगी? जाहिर-सी बात है कि आपको इतना गुस्सा आएगा कि आप सारी नैतिकता को भूलकर अपना आपा खो बैठेंगे. लेकिन जरा सोचिए, ऐसा करना क्या समस्या का हल है? महाराष्ट्र में एक ऐसा मामला सामने आया जो खुद को जाति संरचना में सबसे ऊपर रखने वाले लोगों के मुंह पर एक तमाचा है.
दरअसल, महाराष्ट्र के वाशिम जिले के कलांबेश्रवर गांव में रहने वाली एक दलित महिला को गांव के कुंए से पानी लेने के लिए महज इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि वो दलित जाति से थी. घर आकर उसने इस अपमान की पूरी कहानी अपने पति को सुनाई. पति को पूरी बात सुनकर बहुत गुस्सा आया. लेकिन उसने गांव के उन लोगों से झगड़ा करने की बजाय एक नया रास्ता ढूंढ़ निकाला. बापूराव ताजणे नाम के इस व्यक्ति ने अपने गांव में कुआं खोदना शुरू कर दिया.
वो रोज लगातार 6-7 घंटे अकेले ही कुआं खोदते थे. तपती दोपहरी भी उनके कदमों को रोक न सकी. देखते ही देखते 40 दिन में उस खोदी हुई जगह से पानी निकलने लगा. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बापूराव मजदूरी करते हैं दिन भर 8 घंटे की मजदूरी के बाद वो रोजाना 6 घंटे कुआं खोदने को दिया करते थे.
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पहले तो लोग ताजणे को ऐसा करते देख पागल समझते थे लेकिन जब 40 दिनों बाद कुएं से पानी निकला तो सभी उनकी तारीफ करने लगे. उनके इस प्रयास से न सिर्फ दलितों को अपना कुआं मिल गया बल्कि खुद को उच्च जाति का हवाला देकर सर्वश्रेष्ठ बताने वाले लोगों के लिए भी ये एक सबक है….Next
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