आधुनिक विज्ञान ने मानव जीवन को सरल और सुगम बना दिया है. जो महिलायें शारारिक विषमताओं के कारण माँ नहीं बन पाती थीं वह आज मातृत्व के सुख को भोग रही हैं. मेडिकल साइंस ने असम्भव को संभव बना दिया है -जिसके लिए दूसरी महिला की कोख की जरूरत होती है. एक महिला अपनी इच्छा से किसी दूसरे के बच्चे को 9 माह तक अपनी कोख में पालती है जिसके एवज में इच्छुक दंपत्ति उनको धनराशि देते हैं. अमेरिका और अन्य बड़े देशों में सरोगेसी कानूनी अपराध है. जिन देशों में सरोगेसी को स्वीकृति प्राप्त है वहाँ की महिलायें अपनी कोख को किराए पर देने के लिए भारी रकम वसूलती हैं.
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भारत में भी सरोगेसी का व्यवसाय तेजी फल-फूल रहा है. दुनिया भर में जो लोग माता-पिता नहीं बन सकते उनके लिए भारत की महिलायें ही एक उम्मीद है जो उनके बच्चे को जन्म दे सकती हैं. यह महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर होती है जो अपने घर को चलाने और निजी जरूरतों के पूर्ती के लिए यह काम करती हैं. गुजरात (भारत ) के एक छोटे कस्बे में ‘आकांक्षा इन-फर्टिलिटी क्लिनिक’ व्यवसायिक सरोगेसी का संस्थान है, जो एक सरोगेसी के लिए 20,00,000 रूपये वसूलता है जबकि सरोगेट मदर को सिर्फ 5,32,553 रूपये ही दिए जाते हैं.
भारत में गरीबी के कारण महिलायें इस व्यवसाय को अपना लेती हैं. यह क्लिनिक पिछले 10 सालों से सरोगेसी का बिजनेस चला रहा है और अब तक 700 सरोगेट बच्चे पैदा करा चुका है. 30 साल की नीता गुजरात के पास के गाँव की रहने वाली है जिसने 2008 में एक विदेशी कपल के लिए बच्चा पैदा किया और बदले में मिली धनराशि को अपने पति के इलाज पर ख़र्च किया. दोबारा 2011 में जुड़वाँ बच्चों को जन्म देकर मिली धनराशि से अपना तीन मंजिल घर बनाया है जिसके एक फ्लोर पर खुद रहकर बाकी दोनों फ्लोर के किराए से अपना घर चला सके .
2002 में सरोगेसी को भारत में कानूनी रूप से स्वीकृति प्रदान की गयी. डॉ. शाह के अनुसार “हम पेशेंट और सरोगेट मदर के बीच कॉन्ट्रैक्ट कराते हैं, जिस क्षण सरोगेट मदर बच्चे को जन्म देती है उसी समय हम बच्चे को उसके जेनेटिक पेरेंट्स को सौंप देते हैं. यह सब सरोगेट मदर अपनी खुशी से करती हैं जिसके लिए उनको निर्धारित रकम प्रदान की जाती है जिससे वह अपने परिवार को एक बेहतर और अच्छी ज़िन्दगी दे सके.”…Next
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