भागवतपुराण में एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु को गजेंद्र नामक हाथी और मकरध्वज नाम के मगरमच्छ को बचाने के लिए धरती पर आना पड़ा था. क्योंकि उन पर इंसान लगातार अत्याचार कर रहे थे. इस कहानी में ये बात भी लिखी गई है कि भगवान विष्णु ने सबसे बड़े पापों में किसी बेजुबान जानवर को कष्ट देने को अक्षम्य माना है. लेकिन समाज की कड़वी सच्चाई तो ये है कि लोग भगवान को पूजने के नाम पर न जाने कितने जानवरों पर रोजाना जुल्म करते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है अरत्तुपुजः पूरम नाम के फेस्टीवल में.
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हर साल केरल राज्य के थ्रिसुर में बनाए जाने वाले इस फेस्टीवल में हाथियों पर अत्याचारों की लम्बी कहानी देखने को मिलती है. इस फेस्टीवल में हाथियों को सजाकर खेल और रंगारंग कार्यक्रम दिखाकर दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है. हाथियों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें मारा-पीटा भी जाता है. तरह-तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल करने से हाथियों की त्वचा पर गड्ढ़े तक पड़ जाते हैं साथ ही, कुछ हाथी तो ऐसे हैं जिनके शरीर के कई भाग लकवाग्रस्त तक हो जाते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि रामाभाद्रन नाम के एक हाथी की उम्र 60 साल हो चुकी है लेकिन मंदिरों में होने वाले फेस्टीवल में भाग लेने से और लगातार केमिकल्स के सम्पर्क में रहने से उसकी सूंड पिछले 7 सालों से लकवाग्रस्त है.
इंसान बन रहा है जानवर
जानवरों पर अत्याचार का ये ऐसा पहला मामला नहीं है. बीती रात उत्तराखंड विधायक गणेश जोशी के पागलपन का शिकार हुआ पुलिस का बहादुर घोड़ा शक्तिमान दुनिया को अलविदा कह गया. उस पर हुई क्रूरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस सेवा में खास मुकाम बना चुके शक्तिमान की टांग भी काटनी पड़ी थी. इंफेक्शन फैलने से कुछ दिनों बाद ही कल रात उसकी मौत हो गई. वहीं एक दूसरी घटना ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन के सीसीटीवी में कैद हो गई जिसमें एक इंजीनियर ने बड़ी ही बर्बरता से 2 छोटे पिल्लों को चाकूओं से गोदकर मार डाला था.
वहीं एक महिला ने एक बेतुके से कारण पर 8 पिल्लों को उनकी मां के सामने जान से मारने से भी गुरेज नहीं किया. अभी कुछ रोज पहले ही एक कुत्ते को जिदां जलाने का वीडियो सोशल नेटवर्किग साइट पर खूब वायरल हुआ. उसे देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. हैरत की बात ये है कि जितनी फुर्ती से ये अपराध के वीडियो वायरल होती हैं उतनी तेजी से कोई जानवरों पर अत्याचार रोकने को नहीं आता.
पशु अत्याचार विरोधी कानून महज एक मजाक
आपको जानकर हैरानी होगी कि पशुओं पर अत्याचार करने वाले लोग आसानी से कानून के शिकंजे से निकल सकते हैं क्योंकि 18वीं शताब्दी में बना पशु अत्याचार विरोधी कानून एक मजाक ही है. ब्रिटिश काल में बने इस कानून में महज 50-100 रुपए अधिकतम जुर्माना लगाया गया है. साथ ही आसानी से बेल भी उपलब्ध है…Next
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