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ओलंपिक में दिखाया कमाल, अब फुटपाथ पर बेच रहा है नकली ज्वैलरी

‘रख हौसला, वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर, समंदर भी आयेंगा’. किसी ने सही ही कहा है कि अगर हम मन में एक बार कुछ ठान लें तो मंजिलें खुद हमारे पास आने को मजबूर हो जाती है. अपने हालातों की परवाह न करते हुए मंजिलों को मुट्ठी में करने की एक ऐसी ही मिसाल है राजकुमार. जिन्होंने न दुनिया की हौंसला तोड़ने वाली बातों पर ध्यान दिया और न ही अपनी शारीरिक हदों को अपनी मजबूरी बनने दिया. राजकुमार एक बेहद साधारण परिवार से है जहां आम जरूरतों को पूरा करते-करते ही आधी जिदंगी निकल जाती है. राजकुमार के पिता की दैनिक आय 300 रुपए से भी कम है. लेकिन राजकुमार ने इन बातों को अपने पैरों की बेडियां नहीं बनने दिया.


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60 के दशक में शराबी कहे जाने वाले इस गांव को मिलने वाला है नायाब खिताब

आपको जानकर हैरानी होगी कि 2013 में साउथ कोरिया में हुए स्पेशल ओलंपिक में आइस स्केटिंग में अपने दमदार प्रदर्शन के लिए राजकुमार को गोल्ड मेडल से नवाजा गया था. भारत की तरफ से वो इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले ऐसे पहले खिलाड़ी थे, जिन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया. राजकुमार के बचपन के बारे में बताते हुए उनके पिता कहते हैं ‘राजकुमार, जब 4-5 साल का था तो वो छत से गिर गया था जिससे उसके सिर में गहरी चोट लग गई थी.


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जिसके बाद उसके दिमाग में आए दिन परेशानी रहने लगी. उसके पैरों में भी चोट लग गई थी. लेकिन बचपन से ही उसे खेलों के प्रति रूचि थी. वो सोकर या बास्केटबॉल खेलना चाहता था. लेकिन हर तरफ से उसे निराशा ही हाथ लगी’. आगे बताते हुए राजकुमार के पिता कहते हैं ‘एक दिन उसे ‘स्पेशल ओलंपिक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के बारे में पता चला. इसके बाद तो उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. शुरुआत में उसने अपने हाथों से आइस स्केटिंग शुरू की लेकिन धीरे-धीरे उसने पैरों से स्केटिंग शुरू कर दी.



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ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के अलावा राजकुमार ने कई प्रतियोगिताएं अपने नाम की है. लेकिन आज इस जिंदादिल खिलाड़ी को अपने सपने को जिंदा रखने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. ऐसे में राजकुमार आर्टिफीशियल ज्वैलरी बेचकर अपने परिवार का सहयोग करते हैं. महज 10-20 रुपए प्रति पीस की इस ज्वैलरी बेचने के लिए राजकुमार को पूरे दिन एक ही जगह पर खड़ा रहना पड़ता है. देश में पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें भारत का नाम ऊंचा करने वाले खिलाड़ियों को आर्थिक तंगी से जूझते हुए खेल का मैदान छोड़कर सड़कों पर आना पड़ा है. लेकिन सरकार ने शायद ही इन युवा प्रतिभाओं की कभी सुध ली है…Next


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