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शहर से दूर एक यह भी है गांव, जहां ऐसे जाते हैं बच्चे स्कूल

‘चल, यार आज पढ़ने का मन नहीं है स्कूल बंक करते हैं.’ स्कूल के दिनों में आपने भी ऐसा जुमला अपने दोस्तों को जरूर कहा होगा या फिर कॉलेज में तो लेक्चर बंक करना आजकल के स्टूडेंट्स के लिए आम-सी बात हो चली है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में आप जैसे ही कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए स्कूल जाना किसी जंग पर जाने से कम नहीं है. वो रोज इस तरह स्कूल जाते हैं कि उन्हें खुद पता नहीं होता कि वो दुबारा वापस आ पाएंगे या नहीं.


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नेपाल के ध्याइंग गांव के बच्चे त्रिशूली नदी के पार, स्थित अपने स्कूल में तैरकर नहीं बल्कि किनारों पर लगे दो पेड़ों के सहारे बंधे, केबल तार पर झूलते हुए स्कूल जाते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रशासन की ओर से नदी पार करने के कोई खास इंतजाम नहीं है. जान को जोखिम में डालकर पढ़ने की उम्मीद लिए इन बच्चों में, लड़कों के साथ लड़कियां भी शामिल हैं. गौरतलब है कि यहां पर रह रहे लोगों के लिए वक्त के साथ, नदी को इस तरह पार करना एक आम बात हो गई है.


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समय पर स्कूल पहुंचने के लिए हर रोज तैर कर नदी पार करता है यह अध्यापक

साल 2010 में इस नदी को केबल के द्वारा पार करते हुए पांच लोगों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा था. दरअसल जब वो लोग नदी पार कर रहे थे तब बारिश की वजह से केबल तार में करंट आ रहा था. करंट के झटके से पांचों एक साथ नदी में डूब गए. जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. इस बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि सालों पहले यहां प्रशासन की ओर से पुल बनाने का आश्वासन मिला था लेकिन वक्त के साथ ही दूसरे वादों की तरह ये वादा भी झूठा ही साबित हुआ.

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बंदरों के लिए खुला आधुनिक स्कूल, नामांकन जारी…

इस गांव के एक निवासी, कुमार ने बताया ‘अब तो हमारे बच्चों को ऐसे स्कूल जाने की आदत-सी पड़ गई है. पुल जब बनेगा, देखा जाएगा. लेकिन क्या करें जिदंगी की रफ्तार किसी के लिए कहां थमती है. बस, मुझे स्कूल जाते अपने बच्चों की चिंता होती है कि वो घर वापस लौट पाएंगे या नहीं.’ हाल ही में, नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने केपी शर्मा ओली ने इस तरह के खतरनाक केबल तारों को गांवों से हटवाने के लिए दो साल की एक परियोजना घोषित की है.

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दूसरी तरफ ऐसे संवेदनशील इलाकों में नदी पार करने के लिए पुल बनने तक खास इंतजाम करने के बारे में भी विचार किया जा रहा है. लेकिन फिलहाल के लिए तो, इस गांव के लोगों खासकर स्कूल जाने वाले बच्चों के पास नदी पार करने का कोई और विकल्प नहीं है. भारत के पड़ोसी देश में इस घटना को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया आज भी दो धुव्रों में बटी हुई है. जिसमें एक वर्ग के पास आधुनिक युग की हर सुख-सुविधा मौजूद है तो दूसरी तरफ एक वर्ग ऐसा भी है जिन्हें रोजाना की मूलभूत जरूरतों के लिए भी हालत से जूझना पड़ता है…Next

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