‘न मैं काशी मथुरा न बैठा काबा में, मुझको कहां ढूंढे बन्दे. मैं तो तेरे पास रे’. कण-कण में भगवान के वास का संदेश देने वाली कुछ ऐसी ही पंक्तियां आपने भी अपने जीवन में कभी न कभी जरूर सुनी होगी. लेकिन सवाल ये है कि आपने इस बात पर अमल कितनी बार किया है. क्योंकि अगर पूरी दुनिया इस बात पर अमल कर लें तो शायद मन्दिर- मस्जिद के नाम पर कभी दंगे न हो, गांवों में तथाकथित ऊंची जातियों के लोगों द्वारा गरीब और पिछड़ी जाति के लोगों को मन्दिरों में जाने से रोकने की, घटनाओं से इंसानियत को शर्मसार न होना पड़े.
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दशकों पहले छत्तीसगढ़ के जमगहन में रामनामी समाज को मंदिर में जाने से रोका गया था जिसका एक अनोखा विरोध करते हुए इस समुदाय के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर ‘राम’ नाम गुदवा लिया. देखते ही देखते विरोध का ये तरीका छत्तीसगढ़ के अन्य कई गांवों में फैल गया. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अपने पूरे शरीर पर राम नाम अंकित करवाने की प्रथा को एक सदी से ज्यादा का समय बीत चुका है. उस समय गांव की कुछ पिछड़ी जातियों को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी इसलिए उन्होंने गांव के उन दबंग लोगों को शर्मिदा करने के लिए अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा लिया.
जिससे कारण उन्हें आगे चलकर ‘रामनामी’ समुदाय के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा. इसके पीछे रामनामियों का तर्क था कि भगवान का वास कण-कण में होता है. कहते हैं कि भगवान हर मनुष्य के भीतर है. ऐसे में व्यक्ति अपने पूरे शरीर को राम नाम में सराबोर करके, उनके प्रति आभार व्यक्त क्यों नहीं कर सकता. इस तरह रामनामियों ने अपने शरीर को ही मंदिर मानकर, मन में राम नाम जपना शुरू कर दिया. साथ ही आपको जानकर हैरानी होगी कि इन लोगों ने केवल शरीर पर ही राम नाम अंकित नहीं करवाया है बल्कि ये लोग शराब, बीड़ी, तम्बाकू आदि नशों से दूर रहकर एकता और समानता के भाव के साथ इंसानियत के रास्ते पर चलने का संकल्प भी लेते हैं.
इनमें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने केवल दो वर्ष की आयु में ही अपने शरीर पर राम नाम गुदवा लिया था. भारत में जाति, धर्म या किसी वर्ग के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध 1955 में एक कानून बनाया था जिसके अंर्तगत किसी भी प्रकार के भेदभाव को कानूनन दंडनीय अपराध माना गया है. लेकिन आज 21वीं सदी में भी देश के कई गावों में भेदभाव का ये घिनौना खेल बदस्तूर जारी है. अगर समय रहते इन असामाजिक कृत्यों को नहीं रोका गया तो रामनामी समुदाय जैसी कहानियां हर आए दिन सुनने को मिल सकती हैं. जिसके बारे में अगर गहराई से सोचा जाए तो ये दोहरे समाज के लिए शर्म का विषय भी है…Next
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