भारत के सुदूर गांवों में आज भी हमारी माँ-बहनें मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाती हैं. इनमें से कई अभागिन ऐसी हैं जिनकी पूरी जिंदगी चूल्हा को सुलगाते-सुलगाते खत्म हो जाती है. निश्चित रूप से यह काम काफी तकलीफ़देह और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक है. भारत के विकास का डंका विश्वभर में बज रहा है लेकिन हमारे घर की महिलाओं का दम चूल्हे के धुएं से घुट रहा है. इन सबके बावजूद एक अच्छी खबर यह है कि भारत में मात्र एक ऐसा गांव है जहां किसी भी घर में मिट्टी का चूल्हा नहीं है.
कर्नाटक का व्याचाकुराहल्ली गांव वर्षों से मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाता आ रहा था. यहां की रसोई घरों की दीवारें धुएं से बदरंग हो गई थी. लेकिन अब इस गांव के अच्छे दिन आ गए हैं. जी हां, चिकबलपुर जिला के गौरीबिदानुर तालुक में बसे व्याचाकुराहल्ली गांव के हर घर में अब एलपीजी कनेक्शन लग गया है. यहां के घरों में लकड़ी से खाना पकाना बीते जमाने की बात हो गई है.
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केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर इस गांव को देश का पहला धुआं रहित गांव घोषित किया है. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ट्विट कर कहा है कि “व्याचाकुराहल्ली गांव के रहवासियों को मेरी शुभकामनाएं, जिसे देश का पहला निर्धूम गांव घोषित किया गया है”. बेंगलुरू से लगभग 77 किमी दूर व्याचाकुराहल्ली गांव में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन (आईओसी) ने मिशन स्मोकलेस विलेज के तहत पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था.
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आईओसी की महाप्रबंधक (स्मोकलेस विलेज) मोती सायी वसुदेवन ने कहा कि महिला स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ईंधन के रूप में लकड़ी के लगातार प्रयोग से महिलाओं में सांस लेने की समस्या बढ़ रही है.Next…
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