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नींद के सौदागर करते हैं 30 रुपए और एक कम्बल में इनकी एक रात का सौदा

‘आज की दुनिया में अमीर वो है जो अपनी मर्जी से जागता और सोता है’ सुनने में ये बात थोड़ी अजीब जरूर लग सकती है लेकिन आप उस स्थिति का अंदाजा लगाकर देखिए जब आप पूरे दिन जी-तोड़ मेहनत करें और आपका मालिक आपको सोने नहीं दें. लेकिन फिर भी किसी तरह आधा-अधूरा काम निपटाकर, रात के किसी पहर आप सोने के लिए बिस्तर की तलाश शुरू करते हैं क्योंकि आपके पास घर नहीं है. ऐसे में आप इतना थक चुके हैं कि आप अपनी नींद पूरी करने के लिए कहीं भी पसर जाने का मन बना लेते हैं. आप सड़क के किनारे सो ही रहे होते हैं कि 1-2 घंटे बाद सुबह हो जाती है और आपका मालिक आपको उठाने के लिए सड़क के किनारे पहुंच जाता है.


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नींद के सौदागरों से जुड़ा ‘सिटीज ऑफ स्लीप’ वीडियो देखें :


इस कल्पना भर से आपके रोंगटे खड़े हो गए होंगे. अब जरा हकीकत में अपने हालातों के बारे में सोचिए. निश्चित रूप से आपकी जिंदगी की हकीकत से इस भंयकर कल्पना से बहुत ऊपर होगी. लेकिन दुख की बात ये है कि आपकी पलभर की नींद और गरीबी से जुड़ी ये कल्पना महानगरों में रहने वाले लाखों लोगों की असल जिंदगी की कहानी है. जहां इन लोगों को दिन भर गरीबी से और रात में आंखों पर हावी होती नींद से जंग करनी पड़ती है. सर्द दिनों में आपने भी सड़कों की रेड लाईट के आसपास, बड़ी-बड़ी दुकानों के बाहर और मेट्रो स्टेशनों के नीचे लोगों को सोते हुए जरूर देखा होगा. रात के वक्त बसी इस दुनिया के लोगों का सबसे बड़ा सपना होता है ‘नींद’. जिसे पूरा करने के लिए वो कोई भी सौदा कर सकते हैं. दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में लोग दूर-दराज के इलाकों से काम की तलाश या बहुत से अन्य कारणों से आते हैं.


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रात के सन्नाटे में यह रोशनी अपने लिए जगह तलाशने लगती है. जानना चाहते हैं क्यों इस रोशनी को आत्माओं का पैगाम मानते हैं लोग?


ऐसे में उनका दिन तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में निकल जाता है लेकिन रात में नींद लेने को बेताब इनकी आंखें, नींद को एक अलग नजरिए से देखने को मजबूर करती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मीना बाजार, लोहा मंडी और पुरानी दिल्ली जैसे इलाकों में ‘नींद माफिया’ इन लोगों की नींद की हसरत पूरी करने के लिए इन्हें एक छोटे से रैनबसेरे में, 30 रुपए प्रति रात की दर से सोने के लिए जगह मुहैया करवाते हैं. कमाल की बात ये है कि इन रैनबसेरों को मनोरंजन के लिए बनाया गया है जहां तीन घंटे की फिल्म दिखाने के पैसे चार्ज किए जाते है. लेकिन नींद के मारे लोग यहां फिल्म देखने नहीं बल्कि सोने के लिए सुरक्षित जगह के लालच में आते हैं. ऐसे में उन्हें रोज के 30 रुपए देने भी भारी नहीं लगते, क्योंकि इस छोटी-सी रकम में उन्हें एक कंबल भी नसीब हो जाता है. इसके साथ ही जिसकी किस्मत का सिक्का चल जाता है उसे चारपाई भी मिल जाती है. ऐसे में नींद के सौदागरों से किया हुआ एक रात का ‘नींद’ का सौदा इन्हें ज्यादा महंगा नहीं लगता.


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अगर आप नींद के खरीदार इन लोगों से बात करेंगे तो आपको इनसे जिदंगी की एक नई परिभाषा मिलेगी. इनके लिए गरीबी का मतलब रुपयों या जमीन-जायदाद से नहीं है. इनके लिए गरीबी का अर्थ है ‘गरीबी में आपके शरीर पर आपका नहीं बल्कि दूसरों का नियंत्रण होता है. ऐसे में कोई और आपके सोने, जागने का फैसला लेता है’ जबकि दूसरों को काबू करने के बारे में इनका मानना है कि ‘अगर किसी को पूरी तरह अपने काबू में करना है तो उसे कभी सोने न दो’ , ये सच्चाई उस समाज की है जहां लोगों के घर जितने बड़े होते जा रहे हैं नींद उतनी ही छोटी होती जा रही है लेकिन इस समाज से परे एक वर्ग ऐसा भी है जिनके लिए ‘नींद एक सौदा है’…Next


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