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कोई अपनों से पीटा, तो किसी को अपनों ने लूटा

मैं पहली बार उससे गांव में मिली थी. उसका हमारे घर में आना जाना था. मेरे घरवालों को उसने बताया था कि वो शहर में नौकरी करता है. अच्छी-खासी कमाई हो जाती है उसकी. उसकी बातें सुनकर मेरे घरवाले फूले नहीं समाते थे. एक रोज उसने मेरे मां-बाप को अपने साथ शहर ले जाने के लिए राजी कर लिया. उसने कहा कि शहर में नौकरी लगवा देगा. वो अक्सर मुझसे अकेले में शादी करने के लिए कहता था. उसकी बातों से मुझे विश्वास हो गया था कि वो मुझसे बेहद प्यार करता है. शहर आकर मुझे खुली हवा में सांस लेने का पहली बार मौका मिला. ऐसी आजादी मुझे पहली बार मिली थी. मैं उसके साथ बहुत खुश थी. एक रोज उसने यूं ही, मेरी मांग में सिन्दूर भर दिया. उसके साथ बिताए ये दिन मैं कभी नहीं भूलना चाहती थी. पर शायद मुझे अजनबी पर आंख बंद करने की सजा मिलनी ही थी.


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वो इन बदनाम गलियों में आते ही क्यों हैं?

एक रोज उसकी गैरहाजिरी में एक आदमी मेरे कमरे में जबरन घुसने की कोशिश करने लगा. मैनें जब पलटकर उसको भला-बुरा कहा, तो वो हंसकर बोला. ‘क्या नखरे कर रही है लड़की, गिनकर पैसे दिए हैं तेरे मर्द को. ये सुनकर मैं सन्न रह गई. मैं अन्दर से कांप रही थी. आंखों में आंसू लिए मैनें बदहवास होकर कहा ‘वो मेरे पति है, सिदूंर भरा है उन्होंने मेरी मांग में.’ ये सुनते ही उसके चेहरे पर एक तीखी मुस्कान फैल गई. ‘तुझे पता भी है, आज तक कितनी लड़कियों की मांग भर चुका है वो.. सबको मैनें ही ठिकाने लगाया है.’ मैं तो शहर काम-धंधा करने आई थी. लेकिन काम कहीं पीछे छूट गया और धंधा करना मेरी तकदीर बन गया. रेडलाइट पर भीख मांग रही 25 साल की ज्योति ने बहुत पूछने पर अपनी आप-बीती बताई. कुछ सहमते हुए उसने कहा ‘आप फोटो नहीं छापना. मैं भीख मांग सकती हूं लेकिन वापस वहां नहीं जाना चाहती, जहां से भाग कर आई हूं. मेरी पहचान बहुत पहले कहीं खो चुकी है. अब ये रेडलाइट और मेट्रो स्टेशन ही मेरी किस्मत है.’ आपने भी बाहर जाते वक्त मेट्रो स्टेशन और रेडलाइट के आस-पास की सड़कों पर रोजाना भीख मांगते लोगों को जरूर देखा होगा. उनकी सूरत देखकर कभी चंद सिक्के उनकी ओर बढ़ाए होंगे, तो कभी उपेक्षा भरी नजरों से उन्हें देखा होगा.


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कहीं न कहीं एक बार आपके मन में भी, ये ख्याल जरूर आया होगा कि आखिर कौन लोग हैं ये? और शहर की दौड़ती-भागती जिंदगी में ये लोग कहां से आ जाते हैं? इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए दिल्ली के विभिन्न इलाकों में, भीख मांगते कई लोगों से बात करके जो मामले सामने आए. वो बहुत चौंकाने वाले थे. एक मुख्य मेट्रो स्टेशन पर करीब 3 सालों से भीख मांग रही कांता नाम की बुजुर्ग महिला, भीख मांगने को सबसे शर्मनाक काम बताती हैं. ‘ तो फिर आप क्यों मांगती हो भीख’? ये सवाल पूछने पर वो नजरें नीचे करती हुई कहती हैं ‘क्या कंरू, एक बुढिया से किसे लगाव होगा. चार बेटे थे मेरे, सभी अपनी-अपनी नौकरी में लगे रहते थे. मेरा ख्याल किसी को नहीं था. बहुओं के आने पर तो हालात और भी बिगड़ गए. मुझे बोरिया-बिस्तर के साथ घर से बाहर निकाल दिया गया. तब से सड़कें ही मेरा घर है.’ रोज सुबह सूरज निकलने से भी पहले एक शख्स चाणक्यपुरी जैसे पॉश इलाके में बैठकर वहां से गुजरने वाले हर एक राहगीर को कुछ पाने की आस में देखता है. भीख मांगने की वजह बताते हुए कहता है. ‘फैक्टरी में काम किया करता था. अचानक दोनों पैर मशीन में आ गए. मुआवजे के नाम पर सिर्फ फूटी कौड़िया ही मिली. नौकरी खोजते हुए एक लम्बा अरसा गुजर गया लेकिन नौकरी नहीं मिल पाई. थक- हार कर चाय की दुकान, उधार लेकर खोली थी कि पुलिस और दंबग लोगों को पैसा देते-देते कुछ बचता ही नहीं था. आप बताओ बच्चे तो भूखे पेट नहीं रह सकते न?’


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इसी बीच रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन पर एक ऐसा शख्स चंद सिक्कों और गिनती के नोटों को लेकर, सबकी ओर बिना किसी भाव से देख रहा था. बीच-बीच में वो कुछ बोलने की कोशिश भी करता था. लेकिन वो अपनी कहानी बताने में अक्षम था. आस-पास के रिक्शेवालों और ठेलेवालों ने बताया कि ‘ये मानसिक रूप से बीमार है. न बोल सकता है, न सुन सकता है. पैर भी ठीक नहीं है. चल नहीं सकता. शाम को कुछ लोग इसे लेने आते हैं. उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे इस लड़के से ज्यादा, पैसों की फिक्र हो उन्हें’. उनकी बातें सुनकर मुझे ये अंदाजा लगाते हुए देर न लगी, कि अपनी कमाई का आसान जरिया मासूम बच्चों को बनाने वाला धंधा कितना पुराना हो चुका है. दूसरी तरफ ऐसे लोग भी कम नहीं थे जिन्होंने बचपन से अपने माता-पिता को भी यही करते हुए देखा था. इसलिए इस पेशे को चुन लिया.



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जिस तरह भीड़ को देखकर किसी विशेष इंसान के बारे में अन्दाजा लगाना मुश्किल हैं उसी तरह इन सभी भिखारियों को देखकर इनकी कहानी और हालत के बारे में सोचना भी, भूसे से सुई निकालने जितना जटिल है. हालांकि भीख मांगने को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है. लेकिन फिर भी न जाने ऐसी कितनी ही कहानियां शहरों की सड़कों पर खुलेआम फिरती हुई मिल जाएगी जो विकास की ओर बढ़ते हमारे देश की आय में तो कोई योगदान नहीं देते, पर देश का हिस्सा जरूर हैं. भिखारी, मांगने वाले, भीखमंगे और भी न जाने कितने ही नामों के साथ ये हालात से थककर सबकुछ किस्मत पर छोड़ चुके हैं. ये सिर्फ भिखारी नहीं बल्कि विचित्रता से भरी कहानियां हैं.


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