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वो इन बदनाम गलियों में आते ही क्यों हैं?

उसे अंधेरा पसंद नहीं था लेकिन यह जगह ऐसी थी जहां दिन-रात का पता ही नहीं चलता था. बचपन की धुंधली पड़ चुकी यादों में से उसे बस इतना ही याद है कि जब भीड़ में किसी अंजान मर्द का गलती से भी उसे स्पर्श होता था तो घर में आकर न जाने कितने घड़ों पानी से वो नहा लिया करती थी. सौतेली मां के पूछने पर कहती थी ‘मैं गिर गई थी इसलिए खुद को साफ कर रही थी’ लेकिन यहां तो उसे ये भी याद नहीं है कि वो कितने गैर मर्दों साथ हमबिस्तर हुई है. अब उससे ये सवाल किया जाता है कि आज दिन भर में कितने ग्राहकों को निपटा दिया.

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वेश्‍याओं के देहरी की धूल पर चढ़ाएंगी कुलवधुएं श्रद्धा के फूल


रेड लाइट एरिया में लाई गई ऐसी न जाने कितनी ही लड़कियों की आप-बीती इस कहानी से मिलती-जुलती या इससे भी अधिक रोंगटे खड़े कर देने वाली हो सकती है लेकिन उनके लिए यह बदनाम जगह अब घर बन चुकी है और अब उन्हें बाहर की दुनिया से कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन फिर भी इनकी बातों से ऐसा लगता है कि आजादी की दबी-कुचली हल्की सी उम्मीद अभी भी इनके मन में कहीं धुल में लिपटी हुई पड़ी है. अभी कुछ अरसे पहले रेप की बढ़ती घटनाओं के कारण वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की मांग ने जोर पकड़ लिया था. अधिकतर लोग वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने को रेप के मामलों में कमी से जोड़कर देख रहे थे वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो लगातार स्त्रियों के लिए दोगली सोच रखने वाले समाज को कोस रहे थे.

एक सवाल रेड लाइट एरिया को ग्रीन सिग्नल देने की सोच रखने वालों से

अगर आप रेप के बढ़ते मामलों को वेश्यावृत्ति को कानूनी मंजूरी मिलने कारण से जोड़कर देखते हैं तो यानि आप हवस के नशे में अंधे मर्दों के लिए जानें-अनजाने आसानी से लड़कियां उपलब्ध करवाने की पैरवी कर रहे हैं. आप ऐसे लोगों को अपनी गंदी मानसिकता सुधारने के लिए नहीं बल्कि विकल्प देकर उनके घिनौने इरादों को हवा दे रहे हैं. क्या आप इस मानसिकता के साथ इन लोगों जितने ही दोषी नहीं हो जाते?


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महिलाओं के एक वर्ग को बचाने के लिए दूसरे वर्ग की बलि

जिस दिन वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप से स्वीकृति दे दी गई उस दिन से ही समाज में महिलाओं के दो वर्ग बन जायेगें जिसमें एक तो इज्जत के साथ अपने सपनों को पूरा करेगी जबकि दूसरे वर्ग की महिलाओं की जिम्मेदारी केवल मर्दों की शारीरिक इच्छा को पूरा करने तक ही सीमित होगी और उनके लिए आवाज उठाने वालों को बेवकूफ मानकर चुप करवा दिया जाएगा क्योंकि तब उन्हें कानूनी दर्जा हासिल हो चुका होगा.रेप से महिलाओं को बचाने के लिए वेश्यावृत्ति के रूप में महिलाओं को बीमार मानसिकता वाले मर्दों के सामने परोसने से रेप के मामलों में कमी आएगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है लेकिन रेड लाइट एरिया का ये स्याह कारोबार जरूर फल-फूल जायेगा.

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वो अपनी मर्जी से तो नहीं आती यहां

आए दिन जिस्मफरोशी के लिए फलां राज्य से लाई हुई लड़कियों को बरामद किया गया, ऐसी न जाने कितनी ही खबरों से हम रू-ब-रू होते हैं. इससे तो ये बात साफ है कि अधिकतर लड़कियां रेड लाइट एरिया तक पंहुचा दी जाती हैं न कि खुद इस दलदल में फंसने आती हैं. इस तरह से तो कानूनी दर्जा मिलने पर लड़कियों को रेड लाइट एरिया में पहुंचने से पहले कानूनी रूप से बचाया जा सकता है लेकिन जिस्मफरोशी के जाल में उतरने के बाद कोई इनकी सुध भी नहीं लेगा क्योँकि तब यह कानूनी हक हासिल कारोबार का हिस्सा बन जाएगी. फिर किसी के लिए भी ये साबित करना मुश्किल हो जायेगा कि ये लड़किया जोर-जबर्दस्ती से यहां लाई गईं है या अपनी मर्जी से ये काम कर रही हैं.

इस 2 मिनट के वीडियो को देखकर आप भी उस औरत का दर्द समझ जाएंगे जो कभी ‘मां’ नहीं बन सकती


एक कहानी यह भी

देह-व्यापार का समर्थन करने वाले लोगों की अजीब मानसिकता को दिखाती एक कहानी सालों पहले अचानक यूं ही मेरे कानों में पड़ गई थी, मैं डीटीसी की क्लस्टर बस से कमला मार्किट की ओर जा रही थी मेरी सीट के पीछे एक आदमी और उसका दोस्त थोड़ी तेज आवाज में बातें कर रहे थे. उनमें से एक ने कहा ‘रात को घर लेट आया तेरी भाभी को पता चल गया कि मैं वहां गया था, हमेशा की तरह लड़ाई कर रही थी. यह सुनकर दूसरे दोस्त ने कहा ‘तो फिर…मायके नहीं गई? इतने में वो आदमी बोला ‘कहां जाएगी…समझा दिया मैंने उसमें और उन लड़कियों में बहुत फर्क है वो लड़कियां बनी ही इन चीजों के लिए हैं. इतना कहकर दोनों तेज आवाज में ठहाके मारने लगे.उनकी घिनौनी बातें सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर इन लोगों के इन बदनाम गलियों में जाने से ही तो इन गलियों में रौनक होती है और वेश्यावृत्ति का कारोबार फलता-फूलता है…NEXT

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