जब हम दूसरों की असवेंदनशीलता या अशिष्टता के बारे में लिखते या बोलते हैं तो हमारे मन के अचेतन कोने में कहीं न कहीं खुद को ज्यादा संवेदनशील या शिष्ट साबित करने की मंशा दबी रहती है. कहने को यह कोई बड़ी खबर नहीं है कि मेट्रो में एक महिला ने एक दूसरी महिला को सीट देने से इंकार कर दिया. लेकिन जब हम यह कहते हैं कि एक युवा लड़की ने एक गर्भवती महिला को बैठने के लिए जगह देने से इंकार कर दिया, तो यह खबर थोड़ी गंभीर बन जाती है.
दिल्ली में अगर आपने सार्वजनिक परिवहन में सफर किया होगा तो ऐसे नजारे कई दफा देखें होंगे. कई बार हम यह सब देखते-सुनते तो हैं लेकिन बहुत जल्द यह सब भूलकर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ऐसी घटनाएं आपके दिल को लग जाती है. दूसरों की नजर में यह छोटी सी लगने वाली घटना आपसे भुलाए नहीं भूलती.
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आकांक्षा शर्मा ने भी इस घटना को कई और यात्रियों की तरह देखा लेकिन वे इस घटना को सिर्फ देखकर चुप नहीं रह गई. उन्होंने उस गर्भवती महिला को अपनी सीट तो दी ही, इस घटना का आंखो देखा हाल अपने ब्लॉग पर भी बयां किया. जिसे पढ़कर किसी भी व्यक्ति को जो खुद को दिल्लीवाला कहता है शर्मिंदगी महसूस हो सकती है.
आकांक्षा लिखती हैं कि वे ब्लू लाइन मेट्रों में सफर कर रही थीं. राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर, जो की दिल्ली के व्यस्ततम मेट्रो स्टेशन में से एक है, एक गर्भवति औरत महिला कोच में चढ़ी. गर्भवती महिला ने आकांक्षा के बगल में बैठी युवती से विनम्रता से सीट मांगा लेकिन उस युवती ने साफ इंकार कर दिया. जब काफी विनती करने के बाद भी उस युवती ने महिला को सीट नहीं दिया तो आकांक्षा अपनी सीट से उठ गईं और उस महिला को बैठने के लिए कहा.
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बावजूद इसके वह युवती शर्मिंदगी महसूस करने की बजाए अपने कानों में हेडफोन ठूंस कर दूसरी तरफ देखने का नाटक करने लगी. बकौल आकांंक्षा वह युवती यह जताने की कोशिश कर रही थी कि वह काफी थकी हुई है और उसे कोई तंग न करे. Next…
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