कई बार राह में बैठे भिखारियों को देने के लिए हमारे हाथ हमारी जेबों में रखे वॉलेट तक नहीं पहुँचते. स्कूलों, ऑफिसों, स्टेशनों, मंदिरों के आसपास बैठे इन भिखारियों के बारे में हमारे मन में कई सुनी-सोची धारणायें आकार लेती रहती हैं. वैसे भी दान की राह आसान नहीं होती. दान करने के लिए पैसों से ज्यादा अभावों के झंझावातों से जूझने की अदम्य इच्छाशक्ति की जरूरत होती है.
दक्षिण भारत में सिनेमाई स्टार रजनीकांत को ईश्वर की उपाधि दी जाती है. यद्यपि यह किसी भगवान की कहानी नहीं है, लेकिन गरीबों, वंचितों के मन में इस व्यक्ति का स्थान भगवान से कम नहीं है. अनेक ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने दान से अपने हृदय की विशालता का परिचय दिया है. दान देकर अपनी हृदय की विशालता का परिचय देने वाले एक पुस्तकालय कर्मी भी हैं जिन्होंने अपने जीवन की सारी कमाई गरीबों और वंचितों को दान में दे दी, वो भी बिना मीडिया की सुर्खी बने.
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पालम कल्याणसुंदरम उन चंद लोगों में से हैं जो बिना किसी चीज की परवाह किये पिछले कई वर्षों से अपनी सारी कमाई दान करते आ रहे हैं. तमिलनाडु के मेलाकरिवेलामकुलम में पैदा होने वाले कल्याणसुंदरम अपने भोजन और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पार्ट टाइम नौकरी करते हैं.
पुस्तकालय कर्मी कल्याणसुंदरम अपने पेशे से प्राप्त करने वाली महीने की सारी कमाई, बचतें वंचितों को दान कर देते हैं. गरीबों, वंचितों के अनुभवों से रूबरू होने के लिए वो सड़कों, प्लेटफॉर्मों पर सोकर रात गुजारते हैं. जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने शादी नहीं की. सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के रूप में मिले 10 लाख रूपये उन्होंने अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिये दान कर दी. पुस्तकालय विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट और इतिहास व साहित्य में परास्नातक कल्याणसुंदरम ने कई पुरस्कार जीते हैं. इन विभिन्न पुरस्कारों से अर्जित 30 करोड़ रूपये उन्होंने बेहिचक जरूरतमंदों को दे दिये.
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सच है अपनी सारी आय, पुरस्कार राशि दान कर इस लाइब्रेरियन ने दान के मामले में टाटा, बिड़ला और अंबानी को भी पछाड़ दिया है. Next….
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