एक औरत शर्मसार है. पंद्रह बेटियों को जन्म देते-देते उसका मुँह शर्म से झुक चुका है. शर्म का भार इस औरत पर इतना भारी है कि वह मुँह उठा कर अपनी पंद्रहवीं बेटी का मुख देखे बिना उसे अस्पताल में ही छोड़ कर चली आई. बिदार तालुक के सिंढ़ोल ठांडा में रहने वाली इस विवाहित जोड़ी की पंद्रह संतान हैं. इन पंद्रह संतानों में सभी बेटियाँ हैं. सेथनीबाई और गोवर्द्धन राठौड़ की शादी को पंद्रह साल से अधिक बीत चुके हैं. बीते करीब 15 वर्षों में सेथनीबाई ने 15 संतानों को जन्म दिया. पहली के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी और जन्म देते-देते चौदहवीं के बाद पंद्रह वर्षों में लगातार पंद्रहवीं संतान!
बेटे की चाहत में सेथनीबाई और गोवर्द्धन राठौड़ ने पंद्रह लड़कियों को जन्म दे दिया. उसके पति मुम्बई में रोजाना कमाने वाले मज़दूर हैं. ठांडा में इनके नाम जमीन का लेशमात्र टुकड़ा भी नहीं है. भरण-पोषण के लिये 15 बेटियों की माँ सेथनीबाई कुली का काम करती है. अपने तीन बेटियों की शादी कर चुकी गोवर्द्धन की कुछ बेटियाँ माँ के काम में हाथ बँटाती हैं.
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सेथनीबाई और गोवर्द्धन की पंद्रह बेटियों में से 6 की मौत पहले ही हो चुकी है. अपनी गरीबी और संतानों को अशिक्षित रखने के पछतावे के साथ जी रही सेथनीबाई को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 1 लाख रूपये की आर्थिक मदद देने का भरोसा दिलाया है. इसके अलावा इस विभाग ने उसकी सात वर्षीय बेटी को छात्रावास में नामांकित करने का निर्णय भी लिया है.
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पुरूष प्रधान भारतीय समाज में बच्चे के रूप में लड़के की चाहत का अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है. इसके लिये बस आपको एक सच्चाई से रूबरू होना होगा. ऊपर वर्णित सच्चाई सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हमारे समाज की है जिसे आसानी से महसूस किया जा सकता है.Next….
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