सत्ता की धुरी नागरिकों पर टिकी है. जो सरकार अपने नागरिकों के प्रति संवेदनशील नहीं होती उसका पतन निश्चित होता है. खुद पर और देश पर गर्व करने की भावना जगाने से पहले सरकारों को उन ख़ामियों को तुरंत दूर करने का प्रयास करना होगा जिससे नागरिकों में आत्म-गौरव की चेतना का स्वत: विकास हो सके.
जिसे देश की आधी आबादी युवा हो और जिसके अंदर सत्ता अत्यधिक संभावनायें देखती हों उसके बुद्धिजीवियों के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता सत्ता के प्रति जनता के निष्ठा के भाव पर कुठाराघाट कर अविश्वास का संचार करती है.
Read: वैज्ञानिक शोध – आपका मल बन सकता है सोना
हाथ में पेंसिल लेकर पूरे घर में चक्कर काटने वाला यह व्यक्ति अपने जमाने में कुशाग्र रहा है. 70 साल के इस बूढ़े ने छात्र, शिक्षक, गणितज्ञ के रूप में अपनी योग्यता हमेशा साबित की है. वशिष्ठ नारायण सिंह जिनकी पहचान वर्तमान एक बीमार व्यक्ति के रूप में है, जिसके परिवारवालों को उनकी बीमारी के उपचार के लिये सरकार से कुछ अपेक्षायें हैं उसका अतीत किसी भी भारतवासी को गर्व से भर देने के लिये पर्याप्त है.
Read: इन घरों में छप्पर फाड़ कर बरसा है पद्म पुरस्कार
वशिष्ठ नारायण सिंह वही गणितज्ञ हैं जिन्होंने आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी थी. नासा में काम करने के दौरान वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में जो गॉशिप उन्हें चर्चा में ले आयी वह भी कम हैरान करने वाली नहीं है. कहा जाता है कि नासा में एक बार 31 कंप्यूटर एक साथ बंद हो गये. उन पर कोई कैलकुलेशन हो रही थी. कंप्यूटर के बंद होने का असर वशिष्ठ पर नहीं पड़ा. उन्होंने वो बड़ी कैलकुलेशन कर दी. तब उनके सहकर्मियों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब कंप्यूटर के फिर से शुरू होने के बाद उनका कैलकुलेशन कंप्यूटर पर दिख रहे जवाब का हुबहू था.
करीब 40 साल से सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं. आज वो वशिष्ठ अपने घर में चहलकदमी करते हुए बुदबुदाते रहते हैं जिनकी प्रतिभा की परख के बाद कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने उन्हें अमेरिका पहुँचा दिया.Next….
Read more:
Read Comments