लोग दौड़ते रहते हैं ज़िंदगी भर! कोई बस पकड़ने के लिये दौड़ता है, कोई रेलगाड़ी और कई किसी और कारणों से दौड़ते रहते हैं. किसी को ज्यादा हड़बड़ी है तो किसी को उससे थोड़ी कम. ज़िंदगी में दौड़ जरूरी है लेकिन, सिर्फ दौड़ते रहना ही ज़िंदगी नहीं है. ज़िंदगी में दौड़ते-दौड़ते कभी कुछ क्षण के लिये रूक कर सोचना चाहिये कि उनकी दौड़ का लाभ समाज को हो रहा है या नहीं! अगर समाज को लोगों के भाग-दौड़ का लाभ नहीं हो रहा तो जरा इस दौड़ के बारे में पढ़ लीजिये जो सामान्य नहीं है.
यह दौड़ पाँच किलोमीटर की थी. धावकों और सेना-पुलिस में भर्ती होने वालों के लिये पाँच किलोमीटर बहुत ज्यादा नहीं माने जाते, लेकिन इस दौड़ को पूरा करने वाली महिला थी. एक गर्भवती महिला! भगतनगर की रहने वाली 42 वर्षीया इस गर्भवती महिला ने अम्बेडकर स्टेडियम में 30 मिनट और 20 सेकेंड में अपनी यह दौड़ पूरी की. कामरापु लक्ष्मी को गर्भधारण किये हुए नौ माह हो गये हैं. इसके बावजूद वो दौड़ी. वह उन बच्चियों के लिये भागी जिसका गर्भ में पता चलते ही उसके हत्या की युक्तियाँ खोजी जाने लगती है. “पेट में लड़की को बचाओ, गाँव में तालाब को बचाओ” के नारे के साथ कामरापु लक्ष्मी तेलंगाना राज्य सरकार के काकातिया कार्यक्रम के लिये दौड़ी.
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हालांकि, लक्ष्मी के लिये इस तरह की दौड़ नयी नहीं है. सुरक्षित और सामान्य प्रसव के लिये उन्होंने अपनी पहली डिलीवरी से पहले पाँच किलोमीटर की दौड़ पूरी की थी. इस दौड़ के जरिये लक्ष्मी ने गर्भवती महिलाओं तक यह संदेश पहुँचाने की कोशिश की कि, ‘तंदरूस्त बच्चे के लिये गर्भावस्था में भी चिकित्सकों की सलाह से व्यायाम किया जा सकता है.’
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अपनी पाँच किलोमीटर की यह दौड़ उन्होंने दो स्त्री रोग विशेषज्ञों, जिला खेल विकास अधिकारी और जिले के अन्य लोगों की उपस्थिति में पूरी की. इस दौड़ के आयोजकों ने आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिये एम्बुलेंस और चिकित्सीय कर्मचारियों की व्यवस्था भी की थी.Next…
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