उसे पीटा गया. पिटते वक़्त उसके पेट में अन्न का एक दाना ना था. आँखों में बेबसी के आँसू लिये वो उस दर्द को सहन कर रहा था जिसका सीधा संबंध उससे नहीं था. पिटने से पहले भी वह दया का पात्र नहीं बन पाया. उसे एक खंभे में रस्सी के सहारे बाँध दिया गया. रस्सियों में जकड़ा वह पीटने वाले के लिये वहाँ से नहीं भाग पाने की गारंटी था. वह नौ साल का है. मात्र नौ साल का बच्चा!
उसके माँ-बाप की एक गलती की कीमत उसे चुकानी पड़ी जिनका कुसूर मात्र इतना था कि वो ऋण अदायगी में सफल नहीं हो पाये. उसके पास खाने को कुछ ना था सिवाय कोयले के. लेकिन कोयला तो आग भड़काती ही है! सो, उसने चार दिनों से पापी पेट की धधकती ज्वाला को शांत करने के लिये कोयला डिपो के मालिक से 50 रूपये माँग लिये थे. इसके बदले उसे जो मिला वह कम से कम एक नौ साल के बच्चे के लिये अप्रत्याशित था.
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ओह! यह घटना भारत के किसी सुदूर क्षेत्र की नहीं है. यह दिल्ली की बाहरी सीमा के नज़दीक घटी है. पुलिस मामले की छानबीन कर रही है और कोयला डिपो के मालिक को खोजने में जुटी है. लेकिन सुर्खियों के अनुसार डिपो मालिक अपने परिवार के साथ घटना के बाद अपने घर से गायब है. कोयला डिपो के मालिक का नाम नेत राम बताया जा रहा है जिसकी उम्र 57 वर्ष के करीब है.
बाल-अपराध को रोकने के लिये भारतीय सरकार और गैर सरकारी संगठन तमाम तरह के अभियान चला रही हैं. गाहे-बगाहे अख़बारों और टेलीविजन पर ऐसे अभियानों के विज्ञापनों की लंबी कतारें हमें पढ़ने-देखने को मिल जाती है. यह अनुमान उल्लेखनीय है कि एक अरब से भी ज्यादा लोगों के देश में लगभग प्रति छह सौ लोगों के लिये एक गैर सरकारी संगठन काम करता है. इनमें से कई केवल बाल-अपराध और बाल-दासता को रोकने के क्षेत्र में कार्यरत हैं. इन सबके बावजूद बाल-अपराध को रोकने में सरकार, गैर सरकारी संगठन और समाज अब तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाये हैं.
यह तस्वीर कई विदेशी समाचार साइटों पर दिख रही है. इससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कहीं विदेशी समाचार साइट भारत की मज़बूत होती छवि को धूमिल करने की कोशिश कर रही हों! लेकिन इसके बावजूद क्या इस देश में मासूमों को ग़ुलाम बनाने वाले बर्बर असभ्यों की अंर्तचेतना उन्हें झकझोरने में सफल हो पायेगी?Next….
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