रेलवे एक ऐसा सरकारी उपक्रम है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को नौकरी और करोड़ों लोगों को रोजाना उनके गंतव्य तक पहुँचाने का प्रयास करता है. वर्षों से रेलमंत्री रेलबजट पेश करते हुये तमाम तरह की लोक-लुभावन घोषणा करते हैं. लेकिन एक नागरिक के तौर पर हमें भी रेल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिये.
नागरिकों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के कारण भारतीय रेल देश की परिवहन और अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के बावजूद आज जर्जर होते जा रही है. रेल बजट से अपेक्षा रखने के साथ ही हमें रेलगाड़ी के अंदर होने वाली इन गलतियों को दूर करने का प्रयास करना होगा…
रेलगाड़ी के शौचालय में रखे मग
यह भारतीय रेलगाड़ी का दुर्भाग्य ही तो है कि शौच के लिये रखी मग भी गायब कर दी जाती है. यह तो सबने देखा होगा कि आजकल रेलगाड़ी के शौचालय में जंज़ीर लगी मग होती है.
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भारतीय रेलगाड़ियों में दादागिरी
दादागिरी रेल गाड़ियों में आम है, चाहे वो पैंतीस रूपये का सामान चालीस में बेचने वाला वेंडर हो अथवा रेलगाड़ी को किसी निर्जन इलाके में घंटों रोक दूसरी गाड़ी को आगे बढ़ाने वाला रेल मंडल का कार्यालय हो अथवा गंतव्य स्टेशन आने से पहले ही जंज़ीर खींच रेलगाड़ी से उतर अपनी घरों की ओर जाते भद्र लोग हों! इस तरह भारतीय रेल और उस पर यात्रा कर रहे अन्य यात्री अनेकों भद्र लोगों की दादागिरी सहने के आदी हो चुके हैं.
रेलगाड़ी के बल्ब
अँधेरे को दूर कर रेलगाड़ी में यात्रियों को सुरक्षित रखने के लिये लगायी गयी बल्बों और ट्यूबलाइटों की की भी चोरी कर ली जाती है. कई रेलगाड़ियों में इन बल्बों के चोरी हो जाने के बाद उससे दोगुनी कीमत की खोल लगायी गयी ताकि इन्हें चोरी होने से बचाया जा सके.
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शौचालय अथवा वाश बेसिन में पड़े अधजले बीड़ी-सिगरेट
जिन धूम्रपान करने वालों से आस-पड़ोस के लोग न बचे हों वो रेलगाड़ियों को भला कहाँ छोड़ते हैं! धूम्रपान करने वाले अक्सर रेलगाड़ी के पायदानों पर खड़े होकर बीड़ी-सिगरेट फूँकते हैं. लेकिन वहाँ भी अन्य यात्रियों द्वारा नाक-मुँह सिकोड़े जाने के भय से कई शौचालयों में छुप कर बीड़ी-सिगरेट फूँकते हैं. शौचालयों या वाश बेसिन में फेंके गये अधजले बीड़ी-सिगरेट उनकी करतूतों को चीख-चीख कर बयाँ करते हैं.
पियक्कड़ों को भी झेलती है भारतीय रेल
रेलगाड़ी में शराब न पीने का नियम होने के बावजूद पियक्कड़ रेलगाड़ी और सह यात्रियों की परवाह नहीं करते. ऊपर अथवा किनारे वाली ऊपरी सीट पर अपने साथी के साथ बैठकर सहज रूप से बैठे पियक्कड़ों को खाते-पीते देखना रेलगाड़ी में चल रहे यात्रियों के लिये आम है.
चादर, कंबल की चोरी
देखने में यह भी आता है कि एसी डिब्बों के लिये नियुक्त सहायकों को प्रतिमाह अपने वेतन से कुछ रूपये कटवाने पड़ते हैं. सिर्फ इसलिये नहीं कि उसने कोई गलती की है बल्कि इसलिये की अपनी चोरी न पकड़े जाने तक ईमानदार कहे जाने वाले भद्र लोग चोरी-छिपे उपयोग के लिये मुहैया कराये गये चादर और कंबलों को अपने साथ ही लेकर चले जाते हैं.Next…
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