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शर्त है, इसे पढ़कर आपकी भूख मिट जाएगी


सोचिए अगर आपको एक मार्मिक सा आर्टिकल लिखने के लिए कहा जाए जिसका विषय हो ‘भूख’. आप अपने एयर कंडिशन्ड ऑफिस में कंप्यूटर के आगे बैठे भूख को महसूस करने लगे हैं, साथ ही आप समय गुजरने का भी इंतजार करने लगते हैं. कुछ ही देर में लंच टाइम हो जाएगा पर आज भी कुछ नहीं बदलेगा. ऑफिस की वही पुरानी कैंटीन और उन्हीं जानी-पहचानी प्लेटों में परोसी जाने वाली सब्जी और रोटी, जिन्हें महीनों से खाते-खाते आप उब चुके हैं. काश की आज का लंच किसी मैक डी के रेस्त्रां में होता. वाह! वही क्रीमी पिज्जा जिसकी तस्वीर आप अपने कंप्यूटर के होमपेज पर वॉलपेपर के रूप में सेट किए हैं. जिसे बार-बार देख कभी आप अपनी भूख को तसल्ली देते हैं तो कभी न्योता. पिज्जा के साथ आपने कोक भी लिया और कैश काउंटर पर उर्जामयी मुस्कान के साथ खड़े मैक डी कर्मी को बिल चुकाते हुए आपने एक संतुष्टि का अनुभव किया.


pizza


लो, हो गई मुश्किल. आपको तो भूख पर कुछ लिखना था और इस चमचमाते रेस्त्रां से बाहर निकलते हुए आपको भला कैसे याद रह सकता है कि यह देश जिसे हम भारत कहते हैं विश्व में सर्वाधिक भूखी और कुपोषित जनसंख्या का देश है. जहां आज भी लगभग 19 करोड़ लोग रोज भूखे सोते हैं. इस देश का हर 4 में से एक बच्चा कुपोषित है. और यहां हर रोज 3000 बच्चों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है क्योंकि उन्हें उचित मात्रा और पोषक तत्वों वाला खाना नहीं मिल पाता. आप इन आंकड़ों से जूझ ही रहे होंगे कि आपके सामने दयनीय सी सूरत लिए कुछ बच्चे आ खड़े होंगे, जो चाहते हैं कि आप उन्हें कुछ सिक्के दें. हो सकता है आप उनसे तंग होकर कुछ फुटकर पैसे उन्हें थमा दें ताकि उनके उजड़े-बिखरे बाल और बूझी हुई दयनीय शक्लों से आप को कुछ राहत मिल जाए.


पाकिस्तान में भूख से लड़ रही है भारत की ये आर्मी

अपना टेस्ट बदलने के लिए आप फिर से उस चमचमाते मॉल की ओर देखेंगे जिससे अभी-अभी आप बाहर निकले हैं और आपको अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की चीफ क्रिस्टीन लैगार्ड का वह बयान याद आएगा कि वर्तमान परिस्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था धुंधलके में एक रोशनी है. आईएमएफ चीफ ने तो यह भी अनुमान लगाया है कि 4 साल के भीतर भारत की संयुक्त जीडीपी जापान और जर्मनी की संयुक्त जीडीपी से भी अधिक हो जाएगी. इस बयान को याद कर आप गर्व महसूस करेंगे. हो सकता है आपको यह भी याद आ जाए की वही देश जिसे हम भारत कहते हैं, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यह दुनिया के सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है जहां विश्वभर की कंपनियां आकर बिजनेस करना चाहती है. आपके सामने खड़ा यह शानदार मॉल और इसमें मौजूद विश्व के बड़े-बडे़ ब्रांडो के स्टोर इस तथ्य के गवाह हैं.


mall


लो आप तो फिर आंकड़ों के जाल में फंसकर भटक गए. अरे आपको ‘भूख’ के ऊपर लिखना था. आपने कभी भूख को महसूस नहीं किया तो किसी और के अनुभव का सहारा लिजिए. जैसा कि उस लड़की ने अपने ब्लॉग में लिखा है. यह लड़की लिखती है कि उसने भूख का बड़ा ही वीभत्स चेहरा देखा है जिसके बाद उसके सोचने का ढंग ही बदल गया था. उसने रेल के डब्बे में एक औरत को देखा जो अपने बच्चे को गोद में लिए हुई थी. उसने देखा कि वह मजदूर सी दिखने वाली औरत अपने दूधमुहे बच्चे का रोना बंद कराने के लिए कुछ खिला रही है. वह अपनी साड़ी में कुछ छुपाए हुए है जो चुपचाप अपने बच्चे को खिला रही है. उस नौजवान लड़की ने देखना चाहा कि आखिर वह अपनी लड़की को खिला क्या रही है और फिर उसने जो देखा वह देख उसकी आंखे फटी रह गई. वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मां अपने बच्चे को ऐसा कुछ खिला सकती है.


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दरअसल वह औरत अपने बच्चे को ईंट का एक टुकड़ा चटा रही थी. उसने वह टुकड़ा अपने आंचल में छुपा रखा था जिसे वह आहिस्ते-आहिस्ते अपने बच्चे को चटाए जा रही थी. ताकि उसे संतोष हो जाए की उसने कुछ खाया है और वह भूख के कारण रोए नहीं. यह वही ईंट का टुकड़ा होगा जो वह औरत बड़ी-बडी ईमारते बनाने के लिए ढ़ोती होगी. वही ईमारते जिन्हें हम मॉल और मल्टिपलेक्स के नाम से जानते हैं. और अभी-अभी तो आप निकले हैं एक ऐसे ही मॉल में स्थित मैक डी के रेस्त्रां से अपना मनपसंद पिज्जा खाकर. लेकिन इस इमारत को बनाने वाली कई मजदूर औरतों में से एक के पास अपने भूखे बच्चे को खिलाने के लिए ईंट के टुकड़े से बेहतर और कुछ नहीं मौजूद है.



उस लड़की की तरह जिसने अपने ब्लॉग में इस औरत और बच्चे का जिक्र किया है, आप भी असहाय महसूस कर रहे होंगे. हो सकता है अब आप सोचें कि इतना कुछ तो कहा जा चुका है भूख के बारे में, भारत की सरकार, यूएनडीपी सहित कई बड़ी-बड़ी संस्थाएं भारत से भूख मिटाने के लिए कोशिश कर रही हैं, ऐसे में आपका यह आर्टिकल क्या अतरिक्त असर डालेगा. हां, एक काम आप जरूर कर सकते हैं. अगली बार अपनी थाली में आप उतना ही खाना लेंगे जितना कि आप खा सकते हैं क्योंकि बचा हुआ खाना जो कूड़ेदान में चला जाता है किसी भूखे बच्चे का रोना बंद करा सकता है. ब्लॉग में वह लड़की लिखती है कि उसने एक बिस्किट का पैकेट उस औरत को दे दिया पर वह उससे नजर नहीं मिला सकी. उसे डर था कि वह कहीं उसकी आंखों में देखकर रो न दे. लेकिन यकीन मानिए अगर सचमुच हम भूख से लड़ना चाहते हैं तो उससे नजर मिलानी होगी.


hungery children


भूख से हम नजर तभी मिला सकते हैं जब किसी बच्चे की भूखी आंखों में हम अपनी भूख को महसूस कर सकें. वह बच्चा भी विश्व की उसी चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था का अंग है जिसकी जीडीपी आने वाले चार सालों में जर्मनी और जापान की संयुक्त जीडीपी से बड़ी हो जाने वाली है. इस बच्चे को चंद फुटकर पैसे थमाकर हम इस उभरती हुई महान अर्थव्यवस्था का एक अंग होने में गर्व नहीं महसूस कर सकते. Next…


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