27 वर्षीय ब्रिटिश सेना की यह महिला अधिकारी लड़के के रूप में पैदा हुई थी और अपने लिंग- परिवर्तन से पहले सेना में शामिल होने के शुरूआती वर्षों में उसने पुरूष के तौर पर अपनी सेवाएँ दी है. 15 वर्ष की उम्र में उसने सेना में भर्ती होने के लिए एक महाविद्यालय का रूख़ किया. उसके बाद सेना की तरफ से न्यूकैसल विश्वविद्यालय में उसकी एलैक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में पढ़ाई की व्यवस्था की गई.
कालांतर में वह सेना में भर्ती हो गई. सेवा के दौरान उसकी पोस्टिंग जर्मनी हुई. वहाँ उसने चिकित्सकों से अपना लिंग परिवर्तन करने की बात कही. हालांकि ऐसा करते हुए उसे लोगों और समाज के तानों और बदले दृष्टिकोण का भय था. उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसने ऐसा किया तो सेना में उसके करियर का अंत हो सकता है. एक समय ऐसा भी आया जब उसे लगने लगा कि अब वो जीवित नहीं रह सकती, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. उत्तरी यॉर्कशॉयर में अपनी सेवा के दैरान वह खुले तौर पर महिला की तरह रहने लगी.
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फिर उसे कुछ समय के लिए अफगानिस्तान जाना पड़ा. वहाँ की यात्रा समाप्त होने के बाद उसने निश्चय किया कि उसकी ज़िंदगी बदलनी ही चाहिए. तब उस महिला अधिकारी हन्ना विंटरबोर्न ने इस बात का खुलासा किया कि वह ब्रिटिश सेना की पहली ट्रांसजेंडर अधिकारी है. वह रॉयल एलैक्ट्रिकल एवं मैकेनिकल इंजीनियर्स में कैप्टन के तौर पर कार्यरत ब्रिटिश सेना की वरीय सैनिकों में से एक है और अधिकारी बनने वाली इकलौती है.
चिकित्सा के दैरान उसने कुछ होर्मोन के साथ अपनी दाढ़ी की शल्य-चिकित्सा(सर्जरी) करवाई. उसे महिला के रूप में जीवन व्यतीत करते हुए तकरीबन एक साल बीत चुके हैं. यह अधिकारी कहती है कि उसे उसका शुरूआती जीवन एक युद्ध जैसा लगता था.
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समाज की धारणा के विषय में वह कहती है कि, ‘एक जवान लड़का ट्रकों के साथ खेल सकता है, लेकिन मैंने कभी खुद को उस वर्ग में नहीं पाया. यौवन के शुरूआती दिनों में समाज को यह समझाना बड़ा मुश्किल होता कि मैं खुद में लड़की महसूस करती हूँ.’ वह कहती है कि उसके लिंग परिवर्तन में उसके अभिभावकों और सगे-संबंधियों ने काफी सहयोग किया. Next…..
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