किसी चुनाव में मतदाताओं के क्या-क्या मांग हो सकते हैं- बिजली, पानी, सड़क, रोजगार, सस्ते आनाज, रसोई गैस आदि पर हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने अपने नेताओं के आगे एक अलग ही मांग रखी है जिसे सुनकर न सिर्फ नेताओं के बल्कि सामाजिक संगठनों के माथे पर भी चिंता की रेखाएं पड़ गई है.
हरियाणा के कुंवारे मतदाता वोट के बदले नेताओं से दुल्हन की मांग कर रहें हैं. जिंद जिला के कुंवारों ने अपने नेताओं के आगे यह असमान्य सी लगने वाली मांग रखी है. वैसे देखा जाए तो यह मांग असमान्य भले हो पर आश्चर्यजनक नहीं. जिंद भारत के उन जिलों में शामिल है जिनका लिंगानुपात न्यूनतम है. जिंद जिले में प्रति 1000 पुरूषों के मुकाबले केवल 827 महिलाएं हैं.
अपनी मांग को मजबूती से रखने के लिए जिंद जिले के कुंवारों ने ‘जिंद कुंवारा यूनियन’ बनाया है. यूनियन के अध्यक्ष प्रदीप सिंह कहते हैं कि, “हमारे पास कुंवारों की संख्या का सटीक डाटा तो नहीं है, पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि यहां दुल्हनों की भारी कमी है. प्रदेश की खराब लिंगानुपात की कीमत हमें चुकानी पड़ रही है.” हरियाणा का औसत लिंगानुपात 843 है.
हालांकि प्रदीप शादीशुदा हैं पर 2009 में इस संगठन को खड़ा करने में इन्होंने अहम भूमिका अदा की थी. वे बताते हैं कि यह समस्या केवल गरीब परिवारों तक ही सिमटी नहीं है, अच्छे परिवार के लड़कों को भी आसपास के गांवों में दुल्हन नहीं मिल पा रही है.
इस मांग की एक और वजह है शादी करवाने का व्यापार. क्षेत्र में मैरेज ब्यूरों का धंधा जोरों पर है और दुल्हन का इंतजाम कराने के लिए भारी कीमत वसूली जा रही है जो गरीब युवक चुकाने में असमर्थ हैं.
ऑनर किलिंग के लिए कुख्यात खाप पंचायत भी जिंद के कुंवारे युवकों के इस मांग का समर्थन कर रहें हैं. कुंवारे युवकों की यह समस्या भले ही अब चुनावी मुद्दा बन रही हो पर इसका असर बहुत पहले से ही दिखाई देने लगा था.
कुछ महीने पहले ही हरियाणा के भाजपा नेता ओपी धनकड़ ने यह बयान दिया था कि वे यहां के युवकों के लिए बिहार से दुल्हन लाएंगे. इस बयान पर विवाद तो खूब हुआ पर इसके पीछे छिपे हरियाणा की सामाजिक मजबूरी पर बहुत कम चर्चा हुई.
गौरतलब है कि हरियाणा में ‘मोल्की’ या ‘पारो’ की प्रथा जोरों पर है. मोल्की या पारों क्षेत्रीय भाषा में उन दुल्हनों को कहा जाता है जिन्हें बिहार, आसाम, ओड़िसा, बंगाल जैसे राज्यों से खरीद कर लाया जाता है.
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