हरियाणा के भाजपा नेता ओ.पी धनकर ने हाल ही में एक विवादस्पद बयान दिया कि वे हरियाणा के युवकों की शादी सुनिश्चित कराने के लिए बिहार से दुल्हन लाएंगे. इस बयान पर हो हल्ला तो खूब मचा पर इसके पीछे छिपे हरियाणा के वर्तमान समाज के मर्म को समझने की चेष्टा कम ही हुई. हरियाणा, पंजाब और पश्चमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले लोग यह जानते हैं कि इन स्थानों के युवकों के लिए बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, आंध्र-प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से दुल्हन लाना कोई नई बात नहीं है.
कल यानि 26 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय महिला समानता दिवस मनाया गया और हर साल बड़े-बड़े वायदों के साथ यह संपन्न किया जाता है. यूं तो अमेरिका का संविधान 1789 में ही प्रभाव में आ गया था, लेकिन वर्ष 1920 में इसी दिन विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार मिला. इसकी तुलना भारत से करें तो यहां स्थिति अमेरिका से काफी अच्छी दिखती है. स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव से ही भारत में स्त्रियों को समान रूप से वोटिंग का अधिकार प्राप्त है, इस उपलब्धि पर हम खुश हो सकते हैं. महान भारत राष्ट्र में स्त्रियों के प्रारंभ से ही पूजनीय होने की शेखी भी बघार सकते हैं पर ऐसी समानता तब बेमानी हो जाती है जब जनगणना के आंकड़े चिल्ला-चिल्ला कर बताते हैं कि यहां स्त्रियों की समानता के अधिकार की क्या बात करें जब उन्हें जन्म लेने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है.
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महिला भ्रूण हत्या और शिशु हत्या कोई नई समस्याएं नहीं है पर अब इसके ऐसे सामाजिक-आर्थिक दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं जो किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकते. वर्ष 2003 में आई मनीष झा की फिल्म मातृभूमि में एक ऐसे काल्पनिक गांव की कहानी दिखाई गई है जहां एक भी औरत नहीं बची है. अमीर रामचरन अपने पांच कुंवारे बेटों के लिए गांव से दूर रह रही एक लड़की को दुल्हन के रूप में खरीदता है पर बेटों के साथ-साथ वह भी उससे शाररिक संबंध बनाता है. फिल्म के अंत में गांव की इस अकेली दुल्हन के कारण पूरे गांव में दंगा हो जाता है और सबकुछ तबाह हो जाता है.
हरियाणा, पंजाब जैसे निम्न लिंगानुपात वाले राज्यों में स्थिति कुछ ऐसी ही भयानक बन पड़ी है. इन राज्यों के वे युवक जो बेरोजगार हैं, भूमिहीन हैं, तलाकशुदा या विदुर हैं, उनके विवाह के लिए आज क्षेत्रिय लड़कियां उपलब्ध नहीं हैं. कई दलाल क्षेत्र में सक्रिय हैं जो बंगाल, बिहार, उड़ीसा जैसे गरीब राज्यों से यंहा के युवकों के लिए लड़कियां सप्लाई करते हैं. इन लड़कियों को उनके मां-बाप से 4000-10000 रूपए तक की कीमत में खरीदा जाता है. खरीद कर लाई गई दुल्हनों को यहां पारो या मोल्की कहा जाता है.
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पारों कहने को तो दुल्हन हैं पर इन्हें कोई भी वैधानिक हक प्राप्त नहीं होता. ये शादियां न रजिस्टर होती हैं न इन्हें किसी तरह की सामाजिक मान्यता प्राप्त रहती हैं. अपनी भाषा, संस्कृति से दूर इन दुल्हनों के साथ बंधुआ मजदूर और यौन बंधक सा व्यवहार होता है. अमूमन एक घर के सभी भाईयों की पहुंच पारो तक होती है, यहां तक की उन्हें अपने ससुर के साथ भी सोना पड़ता है. वे घर के सारे काम करती हैं, खेतों का काम करती हैं पर घर के संपत्ति पर उनका कोई अधिकार नहीं बनता. जब कभी पति मर जाता है तो पारो को किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया जाता है.
2011 में हुई जनगणना के अनुसार हरियाणा का लिंगानुपात 879 महिला प्रति 1000 पुरुष है जो 943 के राष्ट्रीय अनुपात से कहीं कम है. अधिक चिंताजनक बात यह है कि 0-6 साल के बच्चों का लिंगानुपात मात्र 834 महिला शिशु प्रति 1000 पुरुष शिशु है. पितृसत्तातमक समाज होने के कारण इन राज्यों में लड़कियों को आज भी अवांछित बोझ की तरह देखा जाता है, स्त्रियां यहां सिर्फ वासना की वस्तु हैं. ऐसे में महिलाओं की समानता का सपना दूर की कौ़ड़ी नजर आती है.
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