एक स्त्री, जिसमें सारी दुनिया समाई है, जो समस्त दुनिया को आगे बढ़ाती है, यदि वो ना हो तो हम भी नहीं हैं….!!!
यह सब बातें कहना और लिखना तो कितना अच्छा लगता है लेकिन वर्तमान में नारी का जो हष्र हो रहा है उससे यह सब तथ्य बिलकुल परे हैं. क्या सच में आज नारी महान है? क्या सच में आज नारी स्वतंत्र है व अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जी रही है? क्या सच में नारी को वो सम्मान मिल रहा है जिसकी वो हकदार है?
आज के दौर में कई लोग इस बात की दुहाई देते हैं कि आज लड़कियां किसी से कम नहीं, वे मर्दों की तरह ही सब काम करती हैं व आजाद हैं. लेकिन जब बलात्कार व शोषण जैसी घटनाएं सामने आती हैं तब ये सब बातें बेमतलब सी लगती हैं. विवाहित हो या अविवाहित, स्त्री को हमेशा पुरुष के साथ ही आवश्यकता महसूस करवाई जाती है और जब किसी कारणवश पुरुष का साथ उससे छूट जाता है तो महिलाओं को जिन हालातों का सामना करना पड़ता है वह बदतर होते हैं.
महिलाओं को सम्मान दिलवाने की पैरवी तो की जाती है, नारीवादी उनके स्वतंत्र जीवन की भी तरफदारी करते हैं लेकिन अगर वाकई ऐसा होता तो आज ‘विधवाएं’ किसी आश्रम में अपने मरने का इंतजार ना करतीं, बल्कि वो भी अपने ढंग से अपनी जिन्दगी जीतीं. जबकि सच यह है कि उन्हें समाज द्वारा कड़े बंधनों में बांधकर रखा है, आइए जानें पति की मृत्यु के पश्चात महिलाओं को किन-किन हालातों का सामना करना पड़ता है और समाज इनके पीछे क्या कारण बताता है:
सफेद साड़ी
सोबर रहना व सफेद साड़ी पहनना तो जैसे एक विधवा की पहचान बन गई है. यह शास्त्रों में लिखा गया नियम है, जिसके आधार पर जिस स्त्री के पति की मृत्यु हो जाए उसे अपने खान-पान एवं पहनावे में बदलाव कर लेना चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार पति की मृत्यु के नौवें दिन सफेद वस्त्र धारण करने का नियम है जिसे निभाना अतिआवश्यक माना गया है. स्त्री को उसके पति के निधन के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद वस्त्र ही पहनने होते हैं और उसके बाद यदि वो रंग बदलना चाहें तो भी बेहद हल्का वस्त्र ही पहनना होगा.
खान-पान में भी बदलाव
शास्त्रों की मानें तो एक विधवा स्त्री को बिना लहसुन-प्याज वाला भोजन करना चाहिए और साथ ही उन्हें मसूर की दाल, मूली एवं गाजर से भी परहेज रखना चाहिए. सिर्फ इतना ही नहीं उनके लिए भोजन में मांस-मछली परोसना घोर अपमान व पाप के समान है. उनका खाना पूरी तरह सात्विक होना चाहिए.
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क्यों हैं ऐसी मान्यताएं?
कहते हैं कि दुनिया को शास्त्रों, धर्मों व रीति-रिवाजों में बांधा गया है जिन्हें कुछ लोग बेहद अहमियत देते हैं और कुछ इन्हें फिजूल भी मानते हैं. खैर यह तो अपनी-अपनी सोच है लेकिन विधवाओं के संदर्भ में बात की जाए तो केवल शास्त्र ही नहीं बल्कि कुछ वैज्ञानिक कारणों से भी उनके सोबर तरीके से जीने की बात कही गई है.
एक विधवा के सफेद वस्त्र पहनने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि सफेद रंग आत्मविश्वास और बल प्रदान करता है व कठिन से कठिन समय को पार करने में सहायक बनता है. इसके साथ ही सफेद वस्त्र विधवा स्त्री को प्रभु में अपना ध्यान लगाने में मदद करते हैं. सफेद कपड़ा पहनने से मन शांत रहता है.
पहनावे के साथ-साथ खाने-पीने में रोक-टोक करने के भी वैज्ञानिक कारण हैं जैसे कि लहसुन-प्याज युक्त खाना खाने से दैहिक ताप और काम भावना बढ़ती है. सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि पति की मृत्यु के बाद सरल भोजन करने से मन शांत रहता है तथा किसी भी प्रकार की इच्छा व्यक्त नहीं होती.
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लेकिन क्या यह सब आवश्यक है?
आज के समय में लोग इन सभी सामाजिक मान्यताओं से परे अपनी जिंदगी जीते हैं व इनमें काफी कम विश्वास करते हैं. लोगों की सोच में कुछ बदलाव आ गया है और अब तो विधवा स्त्रियां भी रंगीन वस्त्र पहनने लगी हैं. उनके घर वाले उन्हें समझते हैं और उन्हें अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं खासतौर पर उनकी जिंदगी जो स्त्रियां काफी कम उम्र में विधवा हो जाती हैं, लेकिन क्या समाज इस बात को अपनाता है?
किसी न किसी वजह से ये समाज इन विधवाओं को उनके पति के मरने का बोध कराता रहता है. कभी सफेद वस्त्र पहना कर तो कभी दुत्कार कर. उनकी जिंदगी बेरंग बना दी जाती है और उनसे उनके सारे हक छीन लिए जाते हैं. जो व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं रहा उसे याद कर के पूरी जिंदगी व्यतीत करने का पाठ पढ़ाया जाता है.
वो बेबस स्त्री अभी अपने पति की मृत्यु से उभरी भी नहीं होती कि उसे सारी दुनिया अजीब दृष्टी से देखने लगती है. उसे एक सेवक या फिर अतिरिक्त प्राणी की तरह समझा जाता है जिसका अब इस दुनिया में रहने का कोई महत्व नहीं. आज भारत मे सति प्रथा तो खत्म हो गई लेकिन फिर भी जिस हालातों से एक विधवा औरत अपनी जिंदगी बिता रही है वो अग्नि में जलकर राख हो जाने से कम नहीं, यदि विश्वास नहीं होता तो एक बार किसी विधवा का हृदय खंगाल कर देख लीजिए.
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