डॉक्टर्स कहते हैं कि 4 माह तक के गर्भ का सुरक्षित रूप से गर्भपात किया जा सकता है. एक आम धारणा यही है कि इस वक्त तक गर्भ में पल रहा बच्चा इंसानी रूप में नहीं आता और मात्र एक मांस का लोथड़ा होता है. हालांकि कुछ खास हालातों के अलावे दुनिया के अधिकांश देशों में गर्भपात कानूनन अपराध माना गया है. फिर भी जिन हालातों में गर्भपात की इजाजत दी गई है, उसमें भी स्त्री-भ्रूण और स्वास्थ्य के लिए 4 माह तक के गर्भ का गर्भपात हत्या नहीं माना गया है.
अमूमन कम ही लोग या डॉक्टर इस वक्त तक के बच्चे के गर्भपात के लिए किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस करते हैं. मेडिकल साइंस मानता है कि इस वक्त तक बच्चा अभी भ्रूण रूप में ही होता है और उसमें इंसानी रूप लेने और सांसें लेने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई होती है. यह सारी क्रिया वह मां की सांसों से ही पूरा करता है. लेकिन मेडिकल साइंस की इस फिलॉसफी को गलत साबित करती एक बच्चे की जो कहानी हम आपको बता रहे हैं वह शायद हर मां व हर डॉक्टर की आंखें खोलने वाली साबित होगी. ऐसा बच्चा और गर्भपात की ऐसी कहानी आपने कभी देखी-सुनी नहीं होगी.
कुछ महीनों पहले की बात है. उस रात वॉल्टर जोशुआ फ्रेट्ज का जन्म हर किसी के लिए अप्रत्याशित था. किसी की भी सोच से परे पैदा हुआ था वह. उसकी मासूमियत ने उसकी फोटोग्राफर मां अलेक्सिस फ्रेट्ज को ही नहीं, डॉक्टरों का भी मन मोह लिया. पर यह सब बस कुछ ही पलों की खुशी थी. कुछ ही घंटों में वह दुनिया को अलविदा भी कह गया. वह अपने पीछे कई आंखों में आंसू छोड़ गया लेकिन अमर हो गया, कई मांओं की आंखें खोल गया.
इसे पढ़ते हुए आप शायद सोच रहे हों कि मात्र कुछ पल जिंदा रहने वाला एक बच्चा आखिर दुनिया को ऐसी क्या सीख दे सकता है? एक बार को यह हास्यास्पद और असंभव लगता है लेकिन वॉल्टर ने इसे संभव किया है.
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एक आंकड़े के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में हर 5 में एक महिला अपना बच्चा गर्भपात करवाती है. अमेरिका में हर साल लगभग एक मिलियन महिलाएं गर्भपात करवाती हैं. इसके पीछे कारण यही होता है कि 4 माह तक बच्चा भ्रूण रूप में ही होता है और किसी इंसान की जान नहीं ली जा रही होती है. लेकिन वॉल्टर का मामला सामने आने के बाद इस पर पूरी दुनिया में बड़ी बहस छिड़ गई है.
अधिकांश मामलों में ऐसा होता है कि गर्भपात के बाद मां या पिता कोई भी बच्चे को देख नहीं पाते. डॉक्टरों के लिए भी यह नन्हीं जान नहीं बल्कि एक बेकार की चीज होती है और उसे मेडिकल कचरे में फेंक दिया जाता है. इस कारण बच्चे या पिता को कभी भी उसके लिए कोई पश्चाताप या दु:ख नहीं होता.
अलेक्सिस के मामले में गर्भपात की स्थिति असामान्य थी. न अलेक्सिस, न डॉक्टर को ही इस गर्भपात का अंदाजा था. वह सामान्य दर्द की जांच के लिए हॉस्पिटल आई थीं और अल्ट्रासाउंड का इंतजार कर रही थीं कि अचानक लेबर पेन हुआ और गर्भपात हो गया. किसी इंफेक्शन के कारण अलेक्सिस के साथ ऐसा हुआ. इसमें डॉक्टर या अलेक्सिस का कोई दोष नहीं था.
एलेक्सिस पेशे से फोटोग्राफर हैं और उस दिन अपने कैमरे के साथ किसी शादी को शूट करने का प्लान था. उनका कैमरा उनके साथ था और अचानक जन्मा 19 सप्ताह का उनका बच्चा तब जिंदा था. उन्होंने उसे सीने से लगाया, उसके साथ फोटो क्लिक करवाए लेकिन बच्चा बच नहीं सका. डॉक्टरों के अनुसार यह अगर एक सप्ताह बाद पैदा हुआ होता तो बच जाता.
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अलेक्सिस का यह दूसरा गर्भपात था. इससे पहले भी उनका एक बच्चे का गर्भपात हो गया था लेकिन वॉल्टर की तस्वीर में साफ देख सकते हैं कि उसका शरीर पूरा रूप ले चुका है. पहली बार अपने किसी बच्चे को अलेक्सिस ने इस रूप में देखा था. अपने दर्द को कम करने के लिए उन्होंने इसकी फोटो अपने ब्लॉग पर डाली जिसे ब्लॉगर कम्यूनिटी और सोशल मीडिया पर इतना पसंद किया गया कि वह वायरल हो गया. अलेक्सिस के पास सहानुभूति के ढेरों मेल और मैसेजेज आए. साथ ही बच्चे के गर्भपात पर भी एक बड़ी बहस छिड़ गई. इस तरह अपने कुछ पलों की जिंदगी में वॉल्टर जोशुआ फ्रेट्ज अमर हो गया और दुनियाभर के अजन्मे बच्चों के लिए ममता की एक लहर बना गया जो हर बच्चे के गर्भपात और उसकी मौत को संवेदनहीनता से बाहर लाकर उसके लिए भी मां-बाप की संवेदना जगाएगा.
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