भगवान विष्णु के छठे अवतार, अपने शस्त्र ज्ञान के कारण पुराणों में विख्यात भगवान परशुराम को पूरे जगत में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. भगवान परशुराम मूल रूप से ब्राह्मण थे किंतु फिर भी उनमें शस्त्रों की अतिरिक्त जानकारी थी और इसी कारणवश उन्हें एक क्षत्रिय भी कहा जाता है. पुराणों में भगवान परशुराम ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) के नाम से भी विख्यात हैं.
भगवान परशुराम शिव के भक्त थे और उन्होंने शस्त्र विद्या भी भगवान शिव से ही प्राप्त की थी. अपनी शिक्षा में सफल हुए परशुराम को प्रसन्न होकर भगवान शिव ने परशु दिया था जिसके पश्चात उनका नाम परशुराम पड़ा. शिव से परशु को पाने के बाद समस्त दुनिया में ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें युद्ध में मात देने में सक्षम हो.
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कौन थे भगवान परशुराम?
भगवान परशुराम रामायण काल के मुनि थे जिनका जन्म महर्षि जमदग्नि व उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से देवराज इंद्र द्वारा दिए गए एक वरदान की प्राप्ति से हुआ था. उनके पिता महान अध्यात्मिक उपलब्धियों वाले महर्षि थे जिन्हें आग पर नियंत्रण पाने व माता रेणुका को पानी पर नियंत्रण पाने का वरदान था.
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दुनिया भर में शस्त्रविद्या के महान गुरु के नाम से विख्यात भगवान परशुराम ने महाभारत युग में भी अपने ज्ञान से कई महारथियों को शस्त्र विद्या प्रदान की थी. उन्होंने भीष्म पितामाह, द्रोणाचार्य व कर्ण को भी विद्या देकर एक महान योद्धा बनाया था. भगवान परशुराम को अमर रहने का वरदान मिला था और यह भी कहा जाता है कि वे आज भी हमारे बीच मौजूद हैं तथा कलियुग के अंत में वे विष्णु के दसवें अवतार के रूप में जन्म लेंगे.
तोड़ दिया गणेश जी का दांत
परशुराम जी से संबंधित एक कहानी बेहद रोचक है. एक बार वह शिव जी से मिलने कैलाश पहुंचे जहां पर गणेश जी द्वारा उनको भगवान शिव से मिलने से रोक दिया गया. जल्द क्रोधित हो जाने वाले परशुराम ने गणेश जी को युद्ध का आमंत्रण दिया. इस युद्ध में परशुराम ने गणेश जी का बाएं दांत पर प्रहार कर उसे तोड़ दिया फलतः मां पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हो गईं. उन्होंने कहा कि परशुराम क्षत्रियों के रक्त से संतुष्ट नहीं हुए इसलिए उनके पुत्र गणेश को हानि पहुंचाना चाहते हैं. बाद में गणेश जी स्वयं हस्तक्षेप कर मां पार्वती को प्रसन्न किया. गणेश जी की इस अनुकम्पा को देख परशुराम जी ने उन्हें अपना परशु प्रदान कर दिया.
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परशुराम ने प्रदान की मार्शल आर्ट कला – कलरीपायट्टु
कलरीपायट्टु भगवान परशुराम द्वारा प्रदान की गई शस्त्र विद्या है जिसे आज के युग में मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता है. देश के दक्षिणी भारत में आज भी प्रसिद्ध इस मार्शल आर्ट को भगवान परशुराम व सप्तऋषि अगस्त्य लेकर आए थे. कलरीपायट्टु दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट है और इसे सभी तरह के मार्शल आर्ट का जनक भी कहा जाता है.
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में महारथी थे इसलिए उन्होंने उत्तरी कलरीपायट्टु या वदक्क्न कलरी विकसित किया था और सप्तऋषि अगस्त्य ने शस्त्रों के बिना दक्षिणी कलरीपायट्टु का विकास किया था. कहा जाता है कि ज़ेन बौद्ध धर्म के संस्थापक बोधिधर्म ने भी इस प्रकार की विद्या की जानकारी प्राप्त की थी व अपनी चीन की यात्रा के दौरान उन्होंने विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देते हुए इस मार्शल आर्ट का भी उपयोग किया था. आगे चलकर वहां के वासियों ने इस आर्ट का मूल रूप से प्रयोग कर शाओलिन कुंग फू मार्शल आर्ट की कला विकसित की.
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