उनकी उम्र सिर्फ 12-14 साल के बीच थी और इस उम्र में शरीर का भरा-पूरा होना मुश्किल था लेकिन ग्राहक ऐसी महिला के साथ संभोग करना चाहता है जिसका जिस्म पूरी तरह से विकसित हो. इसलिए उन्हें ऐसी-ऐसी दवाएं खाने को दी गईं जिसे खाने के बाद उनका शरीर एक वयस्क महिला की तरह विकसित हो गया. रात हो या दिन अब उन्हें भोजन के समान, ग्राहक की इच्छा और उसकी जरूरत के अनुसार उनके सामने परोस दिया जाता है. जानवरों को दिए जाने वाले स्टेरॉयड महिलाओं तथा बच्चियों को दिए जाते हैं ताकि उनका शरीर कम उम्र में जवान दिखे और मर्द उनके शरीर का मनचाहा उपभोग कर सकें.
बच्चियों का कौमार्य ग्राहकों को इतना लुभाता है कि वह एक ‘वर्जिन’ लड़की के साथ सेक्स करने के लिए कितनी भी कीमत चुका सकते हैं. कोई कितना ही कहता रहे कि बिना कंडोम सेक्स करने से एचआइवी, एड्स जैसी बीमारियां फैलने का भय होता है लेकिन बहुत से ग्राहकों को कंडोम के साथ सेक्स करने में मजा नहीं आता इसलिए वे कंडोम का प्रयोग नहीं करते. फिर चाहे महिला गर्भधारण कर ले या फिर एड्स पीड़ित हो जाए इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.
चकलाघर, बंग्लादेश में लगने वाली औरतों की एक ऐसी मंडी को कहा जाता है जहां पुरुष को उसकी शारीरिक इच्छाएं पूरी करवाने के लिए हर सुविधा उपलब्ध करवाई जाती हैं. उन्हें हर तरह की लड़की, हर उम्र की लड़की, भरे-पूरे या अविकसित शरीर वाली लड़की, सब कुछ प्राप्त करवाया जाता है ताकि आमदनी का जरिया उनसे छिन ना जाए. एक औरत को उन्हीं के लिए ही तो तैयार किया जाता है. उसका जिस्म, उसकी भावनाएं, उसकी आत्मा सबका सौदा करने का हक है पुरुष के पास, तो अगर मर्द खुश करने के लिए वह अपने जीवन से खिलवाड़ करती है या जबरन उससे यह खिलवाड़ करवाया जाता है तो इसमें हर्ज भी तो नहीं है.
पुरुषों को खुश करने के लिए वो सजती हैं, संवरती हैं, उनके सितम भी सहती हैं लेकिन यह सब उन्हें बहुत भारी पड़ता है. बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुल राष्ट्र में वेश्वावृत्ति को कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है और यही इस देश और यहां रहने वाली औरतों की तकलीफों का कारण बना हुआ है. दिन रात अपने जिस्म का सौदा करना वैसे भी दर्दनाक है उसके ऊपर स्टेरॉयड का सेवन उनके शरीर को खाता जा रहा है. दवा के सेवन से शरीर का वजन तो बढ़ता है लेकिन इससे ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है हालांकि इसकी किसी को कोई परवाह नहीं है. बांग्लादेश में मासूम बच्चियों को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेलना एक गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2004 में यौन शोषण का शिकार होने वाली लड़कियों की संख्या करीब 10 हजार थी और अनौपचारिक आंकड़ों की मानें तो यह संख्या 30,000 के भी पार पहुंच चुकी थी. कट्टरपंथियों द्वारा चकलाघरों पर रोजाना हमले किए जाते हैं, सेक्सकर्मी घायल भी होते हैं लेकिन जब औरतों का नसीब ही बन गया जिस्म बेचना तो उनकी नियति बदल पाना संभव भी तो नहीं है.
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