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जब कमजोरी ही ताकत बन जाए तो कोई हरा नहीं सकता

कहते हैं चलती का नाम ही जिन्दगी होता है और जहां जिन्दगी की रफ्तार धीमी पड़ जाए तो वहां ठहराव के हालात कुछ ऐसे अपनी जड़े जमा लेते हैं कि फिर से उस जिन्दगी को पटरी पर लाना वाकई बहुत मुश्किल हो जाता है. जीने के लिए हिम्मत, जज्बे और हौसले की बहुत जरूरत होती है लेकिन कई बार जिन्दगी में ऐसे पड़ाव आते हैं जब ये तीनों शब्द बेमानी बनकर अपना महत्व खो देते हैं. नकारात्मक परिस्थितियों से हारकर बैठ जाना जिंदगी जीने का तरीका तो नहीं है लेकिन सच यही है कि कोई भी आम इंसान प्रतिकूल परिस्थितियों में ऐसा ही करेगा. वह अपनी हिम्मत हारकर बैठ जाएगा और उसके साथ जो भी हुआ उसके लिए अपनी तकदीर को ही दोष देगा. लेकिन जिस तरह हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं कुछ वैसे ही प्रत्येक इंसान की सोच और तरीका अलग होता है. कोई हार को अपनी नियती बना लेता है तो कोई उस हार को जीत में बदलने का हौसला लिए आगे निकल पड़ता है और उसके इस जज्बे के लिए तकदीर भी उसे जीत का तोहफा देने के लिए मजबूर हो जाती है.



आज हम आपको कुछ ऐसी ही शख्सियतों से मिलवाने जा रहे हैं जिनके जीवन में आए तुफान ने उनकी दुनिया उजाड़ दी लेकिन फिर भी उन्होंने इसे अपनी तकदीर नहीं माना और हिम्मत हारने की बजाय आगे बढ़कर अपने लिए मुकाम बनाया:


पीती हूं गम भुलाने को !!!


कृष्णकांत माने (सॉफ्टवेयर डेवलपर): कहते हैं अभिभावकों की सहायता और समर्थन के बिना कोई भी इंसान कुछ भी हासिल नहीं कर सकता. बहुत से ऐसे माता-पिता भी होते हैं जो अपने विक्लांग बच्चे को दया और सांत्वना के साथ बड़ा करते हैं और हर वक्त उन्हें पराश्रित होने का एहसास करवाते हैं लेकिन जन्म से नेत्रहीन कृष्णकांत माने इस मामले में बहुत सौभाग्यशाली रहे क्योंकि जीवन के हर पड़ाव पर उन्हें उनके अभिभावकों का साथ मिला. सांतवी कक्षा में ही उनके अभिभावकों ने उन्हें अकेले विदेश भेज दिया ताकि कृष्णकांत का आत्मविश्वास बढ़ सके. कृष्णकांत ने अपनी कमी को अपनी ताकत बनाया और एक सफल सॉफ्टवेयर डेवलपर बनकर विदेश से लौटे. अपनी उपलब्धियों और अद्भुत प्रतिभाओं के कारण उन्हें कई अवॉर्ड भी मिले और सामाजिक मुद्दों पर बने कार्यक्रमों में भी उन्हें बतौर मेहमान आमंत्रित किया जा चुका है.


खिलने से पहले ही क्यों मसल दी जाती है वो कली


अतुल रंजन सहाय (प्रख्यात ट्रैकर): माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला ट्रैकर बछंद्री पाल के साथ ट्रैकिंग कर चुके प्रख्यात ट्रैकर अतुल रंजन सहाय भी जन्म से नेत्रहीन नहीं हैं लेकिन उनकी किस्मत ने उनसे उनके नेत्र छीन लिए. लेकिन उनके हिम्मत और हौसले को देखकर कोई भी ये नहीं कह सकता कि उनके जज्बे की कमी है. बंद आंखों से हम एक कदम नहीं चल सकते ऐसे में आप समझ ट्रैकिंग करना आसान नहीं है, यहां तक कि अच्छे भले लोग भी ट्रैकिंग के नाम से डरते हैं लेकिन अतुल रंजन ने नेत्रों के अंधकार को अपना हौसला बनाया और आखिर नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया.


आजाद भारत: हकीकत कम अफसाने ज्यादा


डॉ. राजेन्द्र जौहर: परिस्थितियों ने डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां डॉक्टरों ने उन्हें यह कह दिया था कि बाहर जाना तो दूर अब वह बिस्तर से हिल तक नहीं पाएंगे. लेकिन हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती और किस्मत उन्हें जीत का सेहरा पहना ही देती है. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी स्थिति को मंजूर नहीं किया और अपने बलबूते पर एक गैर सरकारी संगठन की नींव रखी जिसके जरिए वह अपने जैसे अन्य लोगों की मदद करते हैं. आज बहुत से लोग उन्हें अपनी प्रेरणा और अपना मसीहा मानते हैं.



भूख से बिलखता विकासशील भारत

दोष बस यही है कि हम ‘इंसान’ हैं


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