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तो छोटी हुई दुनिया फिर से बड़ी बन जाएगी….

सोशल मीडिया साइट्स आज युवाओं की प्राथमिक जरूरत बन चुके हैं. अब यह किसी देश विशेष तक सीमित न रहकर विश्व के लगभग हर हिस्से में अपनी पहचान और पैठ बना चुके हैं. ऑरकुट के साथ शुरू हुआ यह सोशल नेटवर्किंग आज बेहद विस्तृत हो चुका है. भले ही ऑरकुट आज महत्वहीन हो चुका हो किंतु इसकी जगह अब फेसबुक और इतने सारे फोन ऐप्स आ चुके हैं और उन्होंने आम आदमी की जिंदगी में गहरी जड़ें जमा ली हैं. यह नेटवर्किंग आपको यह सुविधा उपलब्ध कराती है कि अब न सिर्फ आप अपनी दिनचर्या लोगों के साथ बांट सकते हैं बल्कि अपने से संबंधित हर छोटी-बड़ी चीज यहां डाल सकते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस काम के लिए आपका व्याकरण या अंग्रेजी आना अब जरूरी नहीं रह गया है.


कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने दुनिया को इतना छोटा बना दिया है कि अभी आप दिल्ली में रह कर ऑस्ट्रेलिया के अपने दोस्त से रियल टाइम चैट कर सकते हैं. कुछ वर्ष पहले की बात है, एक उपभोक्ता ट्विटर पर अपने दोस्तों के साथ एक लड़की को तलाश रहे थे और वह लड़की उसी फ्लाइट में उस लड़के के बगल में बैठी थी. लड़के ने शरारती अंदाज में अपनी सीट का नम्बर भी अपलोड कर दिया था, अब ऐसे में बेचारी लड़की को कइयों की शक्की निगाहें झेलनी पड़ीं. हालांकि बाद में कई ऑनलाइन यूजर ने इसका विरोध किया.

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रिश्ते बनाता सोशल नेटवर्किंग

सोशल नेटवर्किंग आज नए रिश्ते बनाने का एक बड़ा माध्यम बनता जा रहा है. कई प्रेमी जोड़ों के प्रेम संबंधों की नींव आज सोशल साइट्स बनती जा रही हैं. मिलना भी यहीं होता है, बातें भी यहीं होती हैं, मुलाकात भी यहीं से तय होता है, प्रेम प्रस्ताव भी यहीं रखे जाते हैं, रिश्ते भी यहीं टूट जाते हैं. इस तरह एक नए किस्म के सामाजिक संसार की रचना सोशल नेटवर्किंग साइट पर हो रही है. पर इनमें से ज्यादातर के संबंध हल्के और बिना किसी मूल्य पर टिके होते हैं. सोशल नेटवर्क के लोगों के संबंधों में विश्वास का अभाव है. यहां ऐसे लोगों के समूह हैं जिनके आपसी राय मिलते-जुलते हैं. यहां पर लोग आपसी सहमति तो रखते हैं लेकिन विश्वास करना नहीं जानते. यही वजह है कि इन्हें कारगर नहीं माना जाता.

माना कि विज्ञान के इस दौर में यह सोशल नेटवर्किंग साइट बेहद नवीनतम है और इनका उपयोग हर किसी को आना चाहिए, लेकिन इसमें अपनी निजता खोने वाला कोई काम नहीं करना चाहिए.

सही गलत का फेर

सोशल नेटवर्किंग के उपयोग की खूबियां-खामियां आज बड़ी चर्चा का विषय बनती जा रही हैं. यह सही है या गलत इसका फैसला तो हमारे हाथों में ही है. सोशल नेटवर्किंग के जरिए आप अपने सामाजिक दायरे को न सिर्फ बढ़ा सकते हैं बल्कि खुद को संसार से जोड़ भी सकते हैं. अकेलेपन और तन्हाई की तो यह अचूक दवा बन गयी है. चाहे आप फेसबुक का इस्तेमाल करें या ऑरकुट का, हर जगह आपको मनोरंजन के साधन मिलेंगे. इस तरह तो यह हर प्रकार से फायदेमंद ही दिखता है. आज के इस अतिव्यस्त समय में हर समय दोस्तों के पास रहने का मौका नहीं मिलता. ऐसे में सिर्फ सोशल नेटवर्किंग साइट्स ही हैं जो इस व्यस्त समय में भी हमें दोस्तों के साथ जोड़े रखती हैं. आज हम अपने क्षेत्र से ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व से जुड़ना चाहते हैं, ऐसे में यह काफी मददगार साबित होता है.

क्या बुरा है सोशल नेटवर्किंग में

जब भी किसी चीज की अति होती है तो वह नुकसानदायक बन जाता है. चाहे शराब हो या शवाब, अति हर चीज की बुरी है. जब तक सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल एक सीमा में किया गया तब तक तो ठीक था लेकिन जैसे ही लोगों ने इसका इस्तेमाल अधिक करना शुरू किया इसके दुष्प्रभाव सामने आने लगे. लोगों की दूसरे के बारे में जानने की लालसा और बाजारवाद के इस दौर में खुलेपन की कीमत बहुत बड़ी साबित हुई है.

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आए दिन यह खबर सुनने में आती है कि सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से फलां अपराध हुए आदि आदि…. इन सब के पीछे हाथ हम जैसों का ही है. हमारी गलतियों की वजह से ही दूसरे हमारा फायदा उठाते हैं. बिना जाने किसी से दोस्ती करना और प्रेम में फंसना न जाने कितनी लडकियों की जिंदगी बर्बाद कर चुका है. विदेशों में तो सोशल नेटवर्किंग साइट को सेक्स हासिल करने का आसान तरीका माना जाता है. जब हम हर बात इन साइट्स पर खुद ही बता डालते हैं तो गोपनीयता की बातें खुद नहीं करनी चाहिए. साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइटस पर काम करने की आदत एक लत बन जाती है. एक अनुमान के मुताबिक औसतन हर चौथा व्यक्ति जो सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल करता है, वह अपने दिन का तकरीबन चार से पांच घंटे इसे देता है. ऐसे में यह देश की अर्थव्यवस्था पर भी खतरा उत्पन्न करता है. अधिक देर एक ही जगह बैठ कर काम करने से कई रोगों की उत्पत्ति भी होती है.

क्या सोशल नेटवर्किंग बंद करना समस्या का हल है?

अब यह आवाज उठने लगी है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स को बंद कर देना चाहिए और अगर यह मुमकिन नहीं तो कम से कम शैक्षिक और कार्यस्थल पर तो इसका इस्तेमाल बंद करना चाहिए.

अगर हम भारत जैसे देश की बात करें जहां के मौलिक अधिकार में ही भावनाओं और शब्दों की अभिव्यक्ति की आजादी का प्रावधान है तो क्या यहां इसे बंद किया जा सकता है? कहीं इस पर पाबंदी लगाने से भारत के इस मौलिक अधिकार का हनन तो नहीं होगा.

अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता का सवाल

सोशल नेटवर्किंग साइट्स के आने से सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि कहीं विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी अराजकता को जन्म तो नहीं देगी. और अगर ऐसा है तो इस आजादी की परिभाषा बदलें या सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल. विचारों की अभिव्यक्ति तो होनी चाहिए लेकिन यह इतना अराजक भी नहीं होना चाहिए कि किसी और की निजता भंग हो.

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क्या है हल?

अगर आप खुद दायरे के अंदर रहेंगे तो यह मुमकिन ही नहीं कि कोई आपकी निजता को भंग कर दे. फिर भी निम्न बातों का ध्यान रख कर आप सोशल नेटवर्किंग के धोखे से बच सकते हैं. इसके लिए जरूरी है सोशल नेटवर्किंग को दोस्तों से जुड़ाव का एक माध्यम मानते हुए बहुत अधिक भावनाओं से न जोड़ें. अपनी गोपनीय बातें किसी को न बताएं. अपना पता, फोन नम्बर, पासवर्ड, फोटो आदि भूल कर भी किसी अंजान को इंटरनेट पर न दें. पोर्न के इस्तेमाल से बचें. अक्सर यह देखा जाता है कि पोर्न साइट्स अपने यूजर को मायाजाल में फंसा लेती हैं जिसका नुकसान आपको भी उठाना पड़ सकता है. इसके साथ ही फोटो अपलोड करते समय सावधानी बरतें. अपनी निजी फोटो और खासकर महिलाओं को तो अपनी फोटो डालते समय सावधान रहना चाहिए क्योंकि फोटो के साथ छेड़छाड़ कोई मुश्किल काम नहीं होता. एक सीमा में ही दोस्ती रखें. अक्सर यह देखा जाता है कि इन साइट्स पर दोस्ती को युवा वर्ग प्यार मान बैठता है जो अक्सर धोखा साबित होता है. एक समय सारणी बना कर रखें ताकि आपका काम इन साइट्स की वजह से बर्बाद न हो. कोशिश करें कि अपने जान-पहचान वालों को ही फ्रेंड लिस्ट में शामिल करें.

हर चीज अपने साथ खूबी और खामी लेकर ही आता है. कहते हैं सिक्के के दो पहलू होते हैं. जरूरी है कि सही पहलू को सही नजरिए के साथ देखा जाए. यह तो पहले ही पता है कि विज्ञान की हर तकनीक अपने साथ कुछ न कुछ बुरा पहलू भी साथ लेकर ही आएगी, यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसके बुरे स्वरूप से किस तरह खुद को अलग रखते हैं. सोशल नेटवर्किंग साइट के साथ भी यही है. इतनी उपयोगी तकनीक को अगर इसकी कुछ खामियों या कुछ अवांछित तत्वों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के कारण प्रतिबंधित करने या इसका उपयोग बंद करने की बात की जाती है, तो यह निश्चय ही एक कदम आगे बढ़कर फिर से दो कदम पीछे लौट जाने जैसा होगा. इस तरह अच्छे बदलाव की उम्मीद कभी नहीं की जा सकती. इसलिए जरूरी है कि इसके नकारात्मक स्वरूप को समझते हुए इसे समझदारी से उपयोग करते हुए इसकी वास्तविक महत्ता को बरकार रखा जाय. हमें भूलना नहीं चाहिए कि यही वे चीजें हैं जिन्होंने दुनिया लगातार छोटी बनाई. अगर ये न रहे तो छोटी हुई यह दुनिया वास्तव में फिर से बड़ी हो जाएगी, जो कोई भी नहीं चाहेगा.

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