दुनिया में हुनर कई हैं. हर हुनर महत्व इसलिए रखता है क्योंकि कहीं न कहीं यह हमारी जिंदगियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. पहले पढ़ाई के अलावे खेलकूद, संगीत-नृत्य बेकार की चीजें मानी जाती थीं. कहावत भी है “पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब…”. पर आज के युवाओं ने इस धारणा को बदलते हुए इसे गलत साबित किया. आज भी पढ़ाई का महत्व है, पर खेलकूद और संगीत-नृत्य या अन्य परंपरा से अलग हटकर उद्यमों का भी अपना महत्व है. हालांकि इस मुद्दे पर यहां चर्चा नहीं करनी है, पर मतलब यह है कि लोग नई चीजों को अपना रहे हैं तो उसके पीछे कुछ कारण हैं और बहुत ही नेक कारण हैं. सबसे अच्छी बात तो यह है कि ये कारण आम कारण नहीं, ये वो कारण हैं जिनके लिए हर इंसान जाने कितनी दुहाइयां देता है. पर असलियत यह है कि यह आज भी हैं, दुनिया तभी चल रही है.
उत्तराखंड में बादल फटने से आए प्रलय ने जिस प्रकार वहां तबाही का आलम मचाया है, तस्वीरों या टेलीविजन पर्दे पर भी देखकर रोम-रोम सिहर उठता है. हजारों की संख्या में लोग तबाह गए, कइयों ने अपने परिजनों को खोया, कई बेघर हो गए. कई लोग आज भी वहां फंसे पड़े हैं क्योंकि वहां से निकलने के सभी मैदानी रास्ते इस प्रलय ने बंद कर दिए हैं. सरकार और सेना भी अब तक सभी को बचाव कार्य मुहैय्या नहीं करवा पाई है. पर आश्चर्यजनक रूप से वहां के स्थानीय लोग विपदा में फंसे लोगों की मदद के लिए आगे आए हैं. हालांकि इस भीषण विपदा की घड़ी में भी कुछ स्थानीय लोगों द्वारा ही लूटपाट, यहां तक कि महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी बर्बरता की मिसालें भी सामने आ रही हैं, पर इस भट्ठी में हम उन लोगों की नेक-नीयत, नेक कामों को नहीं झोंक सकते जो अपनी जान की बाजी लगाकर यहां फंसे लोगों की जान बचाने में जुटे हैं.
नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउन्टेनियरिंग से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण ले रहे छात्र, कर्मचारी, विशेषज्ञ सभी इस विपदा में फंसे लोगों को निकालने और बचाने में जुटे हैं. स्थानीय प्रशासन, वन विभाग भी इनके इस काम में इनका सहयोग कर रहे हैं. नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउन्टेनियरिंग के प्रिंसिपल के अनुसार गंगोत्री से हर्सिल तक जाने वाली सड़कें पूरी तरह डूब गई हैं. ऊपर की तरफ भी करीब तीन हजार की संख्या में फंसे हुए लोगों को हेलिकॉप्टर से निकालना संभव नहीं है. अत: बचाव दल के साथ मिलकर इस इंस्टीट्यूट के बच्चों समेत 110 लोगों की टीम बनाई गई है जो स्वेच्छा से यहां फंसे लोगों को बचाने में जुटी है. अपने हुनर को लोगों की मदद के लिए उपयोग करने का इन बच्चों का यह जज्बा वाकई में काबिले तारीफ है और यह प्रमाण है इस बात का कि आज भी समाज में अच्छाई है, वरना यह दुनिया नहीं चलती.
हालंकि लूटपाट के भी कई मामले यहां सामने आ रहे हैं, जो बेहद दुखद हैं. पर यहीं कई स्थानीय लोग ऐसे भी हैं जो केदारनाथ की यात्रा के लिए बाहर से आए यात्रियों की मदद के लिए स्वयं ही आगे आए हैं. वे इन लोगों को खाना खिला रहे हैं. उनकी जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं, जबकि इन्हें पता है कि इस विपदा की घड़ी में हो सकता है कि उनके जीने के ये साधन खत्म हो जाएं और उन्हें खुद ही भूखों मरने की नौबत आ जाए. यह प्रमाण है इस बात का कि आज भी लोगों में इंसानियत जिंदा है, संवेदनाएं बाकी हैं, दूसरों का दर्द देखकर आज भी अपना दर्द भूल जाने वाले लोग हैं. यह एहसास दिलाता है इस बात का कि आज भी सिर्फ जंतर-मंतर पर धरना देने वाले लोगों से अलग, जरूरत पड़ने पर श्रम और साधन से अपनी जान की बाजी लगाकर देश और समाज के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले लोग हैं.
ये वे लोग हैं जो मीडिया की खबरों में नहीं आते, पर देखा जाए तो समाज की मुख्यधारा ऐसे ही लोगों से है. हम हजार गालियां देते हैं कि समाज की संवेदनाएं मर गई हैं, समाज बर्बर हो गया है, पर यह सब इसलिए क्योंकि वही बर्बर लोग हमेशा सामने दिखते हैं और ऐसे लोग अपने इन छोटे-छोटे पर महत्वपूर्ण कामों से समाज की उस गंदगी को संतुलित करने की कोशिश करते रहते हैं. दुख बस इतना होता है कि इतने अच्छे लोगों के बावजूद समाज के उन कुछ कुत्सित विचारों को हम हटा पाने में कामयाब नहीं हो पाते हैं जो समाज को इंसानियत की तरफ से निराश करती हैं. अब क्या कहें उन नेपाली लोगों को जो ऐसी विपदा की घड़ी में वहां फंसे लोगों को लूट रहे हैं, महिलाओं की इज्जत लूट रहे हैं. समाज के कुछ कुत्सित विचारधारा वाले लोग समूचे समाज के लिए शर्म की स्थिति ला खड़ा करते हैं. बार-बार ये लोग सामने आकर समाज में असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं, पर ऐसी विपदा की घड़ी में समझ आता है कि समाज सुरक्षित ही है, बस जरूरत है इन कुछ कुत्सित सोच के बीमार लोगों को अपने बीच से निकाल फेंकने की. यह तभी संभव है जब इनका सामाजिक बहिष्कार किया जाए. पर तब तक हमें अपनी सोच जरूर बदलनी चाहिए कि समाज आज भी सुरक्षित है और संवेदनशील है.
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