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कोई मुझे बताए कि मेरी गलती क्या है

कई बार बिना किसी गलती के आपको ऐसी सजा मिलती है, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती है. कई बार कुछ ऐसे गुनाह आपके साथ होते हैं कि आपको पता भी नहीं चलता कि आपके साथ कोई गुनाह है. जब तक पता चलता है, तब तक उस गुनाह के लिए आपको ही गुनहगार बताकर, आपको ही उसकी सजा भी दे दी जाती है. आप बेगुनाह होकर भी किसी को समझा नहीं पाते कि आपने कुछ नहीं किया. पर जरा सोचिए कि किसी ने गुनाह भी आपके साथ किया और आपको इंसाफ मिलने की बजाय सजा मिले तो आप कैसे रिएक्ट करेंगे? शायद यह सब आपको कहानी लगे. पर यह कहानी नहीं, एक खौफनाक हकीकत है.


aidsवृंदा एक 28 साल की युवा महिला, दो बच्चों की मां है. वृंदा ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, पर गांव के स्कूल से दसवीं पास है. 22 साल की उम्र में उसकी शादी पास के गांव में मनोज से हुई. वृंदा के मां-बाप की तीन और बेटियां थीं. किसी तरह ले-देकर इसकी शादी कर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी की. कुछ सालों बाद वृंदा का पति अचानक बीमार रहने लगा. डॉक्टर से दिखाया तो पता चला कि वृंदा के पति को एड्स है. परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई, पर सबसे बड़ा पहाड़ तो वृंदा पर टूटा. डॉक्टर ने वृंदा को भी टेस्ट कराने को कहा. वृंदा भी पॉजिटिव थी. पति के दुख में डूबी वृंदा को पता भी नहीं था कि एड्स होता क्या है, और क्यों होता है. पर इसके पॉजिटिव होने का पता चलने पर परिवार ने अपने बेटे को एड्स होने का दोषी उसे बताकर, उसे घर से निकाल दिया. मायके गई, तो सारी बात जानकर मायके वालों ने भी उसे ही कुलक्षिणी बताकर घर से निकाल दिया. वृंदा ने बहुत कहा उसकी गलती नहीं, पर किसी ने उसकी बात नहीं मानी. इलाके में एड्स की बात फैल जाने से उसे कोई काम भी नहीं देता था. आज उसकी हालत यह है कि वह सड़कों पर भीख मांगकर अपने मौत के दिन गिन रही है.

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यह दर्दनाक कहानी आज हजारों महिलाओं की बदकिस्मत तकदीर है. एड्स एक ऐसी बीमारी है जो आज की आधुनिक जीवनशैली में बड़ी तेजी से फैल रही है. पहले लोग इसके बारे में बात ही करने से कतराते थे. आज सरकारी प्रयासों से लोगों में इस रोग को लेकर जागरुकता आई है. पर हमेशा की तरह एक बार फिर एड्स के रूप में महिलाओं के चरित्र विश्लेषण करने वाला एक और लांछन तैयार हुआ है.


सरकारी प्रयासों से समाज में जिस तेजी से एड्स के लिए जागरुकता आई है, लोगों में इसे लेकर छुपाने का भाव भी पैदा हुआ है. पुरुष प्रधान समाज यह मानने को तैयार नहीं होता कि यह उसकी गलतियों का फल है. यूं तो यह महिला-पुरुष की बहसबाजी से बहुत दूर का मुद्दा है पर यह फिर भी महिला-पुरुष बहसबाजी का मुद्दा बन गया है. आप पूछेंगे कैसे?

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सरकारी अस्पतालों में सूचीबद्ध आंकड़े बताते हैं कि कई ऐसे युवा जो शादी के पहले एचआईवी पॉजिटिव थे, ने शादी के बाद अपनी युवा पत्नियों को भी यह रोग दे दिया. बहुत बाद में जब उन्हें यह बात पता चलती है तो पत्नी की जांच करवाई जाती है. जाहिर है कि पति इंफेक्टेड है, तो पत्नी तो होगी ही. डॉक्टरी जांच रिपोर्ट साफ बताती है कि पति की रोग की जटिलता पत्नी से अधिक है, पर फिर भी समाज में बेटे की साख को बचाने के लिए बहू, पत्नी को कुल्टा, कुलक्षिणी कहकर, घर से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया जाता है, बिना यह सोचे कि एक तो उस बेचारी औरत को मुफ्त का रोग मिला, और उस पर से उसकी बीमारी के बारे में जानकर समाज उसे तरह-तरह से प्रताड़ित करेगा.


महिला शोषण का यह रूप शायद आपके लिए नया हो, पर सच है. एक हद तक समाज भी इसके लिए जिम्मेदार है. शादी करते हुए हम कुंडलियां तो मिलाते हैं, घर, पैसा, परिवार तो देखते हैं, पर लड़के-लड़कियों का स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी नहीं समझते. आज की आधुनिक जीवनशैली में बहुत जरूरी है कि शादी के वक्त घर-परिवार, पैसा देखने के साथ लड़के-लड़कियों का स्वास्थ्य परीक्षण भी करवाया जाए. यह किसी की निजता का हनन नहीं है. यह लड़के-लड़की दोनों के परिवार को स्वेच्छा से करना चाहिए. यह निजता से ज्यादा दो जिंदगियों का सवाल होता है.


एड्स की बीमारी एक बड़ी सामाजिक समस्या है. आज की उच्छृंखल जीवनशैली का उपहार है यह रोग. पर हर जगह यह सोच सही हो. जरूरी नहीं. वृंदा जैसे केस एड्स से भी भयानक हैं. इसके लिए जरूरी है, शादी के नियम-कायदों, परंपराओं से अलग भी कुछ सोचा जाए.


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Tags: Women Empowerment, Social Issues, social issues in India, AIDS, HIV/AIDS in India, HIV/AIDS in Indian Women,महिला सशक्तिकरण, भारत में महिला सशक्तिकरण


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