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जहर पीना शौक है जिनका

वो जानते हैं कि वे जहर पी रहे हैं, फिर भी वे इसे पीते हैं, कभी मजबूरी के नाम पर, कभी शौक के नाम पर. कभी दुनिया के दुखों का हवाला देकर, तो कभी अकेलेपन की जरूरत का वास्ता देकर. वे जानते हैं कि वे जहर पी रहे हैं, पर फिर भी वे दीवानों की तरह इसे गले से लगाते हैं. वे जानते हैं कि यह मौत का दूत है पर फिर भी खुशी-खुशी इसे ऐसे लबों से लगाते हैं, जैसे मौत से ही मुहब्बत का कोई वादा किया हो.


drinkingयहाँ बात हो रही है शराब की. शराब की, शराब के नशे की. शराब जो आज युवा पीढ़ी के लिए लगभग फैशन का ट्रेंड हो जैसे. देखकर आश्चर्य होता है जिस तरह जबरदस्ती इसे मॉडर्न वर्क कल्चर, मॉडर्न लाइफस्टाइल का हिस्सा बना दिया गया. मेरे एक मित्र का छोटा भाई जो आईआईटी में पढ़ता था, से एक दिन मुलाक़ात हुई. ऐसे ही बातों-बातों में शराब पर चर्चा होने लगी. मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने शराब पीने को सही बताते हुए कहा कि उसके कॉलेज में सीनियर जूनियर के बीच इतना फर्क है की कोई सीनियर सीधे मुंह बात तक नहीं करता, लेकिन जब भी कोई पार्टी वार्टी होती है और सारे शराब के नशे में धुत्त होते हैं. सारे सीनियर इतना दोस्ताना बर्ताव करते हैं कि यकीन ही नहीं होता कि ये वही अकडू हैं. उसके अनुसार, उस थोड़ी सी देर में शराब के नशे में इतना अच्छा महसूस होता है तो इसे पीने में बुरा क्या है. सरसरी तौर पर देखें तो इसमें कोई बुराई नहीं, पर गहराई में झांकें तो इसी एक सोच में छुआछूत के रोग की तरह फैलती इसकी लत के कारण, उपाय और इससे जुड़े तमाम भ्रम छुपे हैं.

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जैसा कि उपर्युक्त उदाहरण से भी स्पष्ट होता है, यह नशा युवा, बुजुर्ग हर प्रकार के नशा करने वालों की भावनाओं से कहीं न कहीं जुड़ा है. कहीं न कहीं वह इसे अपनी परेशानियां भूलकर बेफिक्री से जीने का साधन मानता है. यही सोच आज इसे मौज-मस्ती, आजाद खयाली से जोड़ते हुए आधुनिक जीवन शैली का एक जबरदस्ती का हिस्सा बनाती जा रही है या यूं कहें कि बना चुकी है. बड़े कॉर्पोरेट जगत में तो इसे अमूमन पानी की तरह इस्तेमाल करते हैं. आज तो पार्टी का मतलब ही शराब और कबाब हो जैसे. बेचारा जो इस भीड़ में इन दोनों से अजनबी होता है, वह सबके उपहास का पात्र बन जाता है. आखिरकार वे भी इस भीड़ में शामिल हो जाते हैं. कई युवा इसी तरह नशे की लत में पड़ते हैं.


यह तो थी एक आजाद ख़याल युवा की शराब से दोस्ती की सोच. पर इससे इतर भी कई सोच हैं जो बजाफ्ता तर्क के साथ इसे पीने की वजह बताते हुए इसकी खूबियां गिनवाने से भी बाज नहीं आएंगे. ये वे लोग हैं जिन्हें इसे पश्चिमी सभ्यता की नकल करना कहलाने पर दुख होता है. वे अपनी सभ्यता का श्रेय किसी और को देना समझते हैं. वे आपको हमारे धार्मिक ग्रंथों की कहानियों में मदिरा पान का इतिहास होने की बात कहते मिल जाएंगे. इतना ही नहीं हमारे भारतीय इतिहास में राजा-महाराजाओं द्वारा मदिरा सेवन करने की समृद्ध परंपरा का भी बखान करते हुए ये शराब को भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताएंगे. कोई जरा इन्हें बताए इंद्र द्वारा मदिरा सेवन का जितना बखान हमारे धर्मग्रंथों में है, उतना ही बार-बार इंद्र के पतन का बखान भी है. चक्रवर्ती राजाओं विक्रमादित्य या अशोक का मदिरा सेवन का कोई इतिहास नहीं है. मतलब इतिहास में इन बातों का उल्लेख करने से तात्पर्य यह शिक्षा देनी थी कि मदिरा या शराब का सेवन पतन की ओर ले जाता है.

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इन बेकार के तर्क-कुतर्कों के पीछे की जमीनी हकीकत बहुत भयानक है. शौकिया तौर शुरू किया गया यह नशा कब उनकी जरूरत में शामिल हो जाता है, उन्हें पता ही नहीं चलता. इसके कारण न सिर्फ शराब का अत्यधिक सेवन करने वाला कैंसर जैसी घातक बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है, बल्कि उसके परिवार के सदस्य भी किसी न किसी रूप में इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं, समाज के लिए भी यह खतरनाक होता है. ऐसा सब इसलिए होता है कि क्योंकि शराब का वह नशा व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति छीन लेता है. डिस्कों, नाइट क्लबों, पार्टियों में देर रात तक शराब पीना और पार्टी करना एक फैशन की तरह ही है. न केवल लड़के, लेकिन अब तो लड़कियां भी इन डिस्को-पार्टीज में बेझिझक पीती हैं. इस दौरान अत्यधिक नशा उनमें सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देता है. शराब के नशे में लड़के-लड़कियों के यौन संबंध तक बन जाते हैं. एड्स जैसी घातक बीमारी से इसी प्रकार कई युवक-युवतियां संक्रमित होते हैं. इसके अलावे भी शराब पीकर गाड़ियां चलाते हुए एक्सिडेंट करना, शादीशुदा आदमियों द्वारा अपनी पत्नी से मारपीट करना आम है.


कुछ वर्ष पहले सलमान खान द्वारा शराब पीकर नशे की हालत में रात में फुटपाथ पर सोए लोगों को कुचलने का हादसा हो या शराब पीकर ऐश्वर्या से मारपीट करने का मामला, साफ दिखाते हैं शराब किसी को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है. भारत में अधिकांश घरेलू हिंसा के मामलों में पति द्वारा शराब पीकर मारपीट करना होता है. ऐप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की मौत का कारण कैंसर था, कैंसर जो उनके अत्यधिक शराब पीने की आदत के कारण हुआ. अगर वक्त रहते जॉब्स ने इसे सुधार लिया होता तो तकनीक की दुनिया का यह जादूगर आज भी हमारे बीच होता. इतना ही नहीं महिलाओं के खिलाफ आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती हिंसा के पीछे भी शराब का बढ़ता सेवन एक बहुत बडा कारण रहा है. दिल्ली के दहलाने वाले सभी बलात्कार मामलों निर्भया बलात्कार, गुडिया बलात्कार, अन्य बलात्कार मामलों में अपराधियों द्वारा अपराध के वक्त अत्यधिक शराब सेवन किए होने की बात इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.

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शराब पीने वालों के इसके पीछे कई तर्क होते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में काम का अत्यधिक दबाव, घरेलू झगड़े, अवसाद आदि कई कारण हैं जिससे थोड़ी देर के लिए छुटकारा पाने, थोड़ी से खुशी पाने की आस में भी कई लोग इसकी लत लगा लेते हैं. हालांकि उन्हें लगता है कि इस तरह वे खुश हो लेते हैं, पर वास्तव में इसके नशे से छूटने के बाद जब वे हकीकत की दुनिया में आते हैं तो उन्हें पहले से ज्यादा दुख, पहले से अधिक निराशा होती है. यह एहसास उन्हें शराब का और अधिक सेवन करने के प्रेरित करता है. इस प्रकार परिस्थितियां कभी सामान्य नहीं होतीं और ज्यादा भयानक रूप लेने लगती हैं.


शराब के पीछे कोई भी तर्क दे दो, लेकिन शराबी भी इसके नुकसान जानते हैं. वे भी शायद इसे छोड़ना चाहते हैं पर छोड़ नहीं पाते. इसका सबसे अच्छा उपाय अंग्रेजी के इस कहावत में है, “प्रीवेंशन इज बेटर दैन क्योर (Prevention is better than cure)”, मतलब बीमारी का इलाज करने से बेहतर है कि बीमारी से बचे रहने का उपाय किया जाय. शराब के पहले सेवन के वक्त अधिकांश लोग मस्ती-मजाक में इसे लेते हैं और सोचते हैं कि इसे आदत नहीं बनाएंगे, पर एक बार हिचक टूटी, फिर वे इसे रोक नहीं पाते. इसलिए सबसे पहले बहुत जरूरी है कि शराब को समाज की इस मस्ती वाली धारणा से दूर किया जाय. मस्ती में आप जहर नहीं पी सकते. पर फिर भावनात्मक कमजोरी में इसकी लत लग भी जाए तो इसके लिए शराबी को खुद सचेत हो जाना चाहिए. शुरुआती दौर में तो अपनी इच्छाशक्ति से इसे आप खुद ही छोड़ सकते हैं पर अगर ऐसा लगे कि खुद संभव नहीं है तो नशा मुक्ति केंद्रों का सहारा लेने में कोई बुराई नहीं है. पर इन सबके लिए सबसे जरूरी है सामाजिक चेतना. सामाजिक चेतना इस संदर्भ में कि यह केवल शराबी का निजी नहीं, बल्कि एक सामाजिक मामला है. और कि यह सिर्फ शराबी नहीं बल्कि उससे जुड़े और न जुड़े हुए, उसके संपर्क में आने वाले हर किसी को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला है. समाज को हर प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला है. बिना इस चेतना के न तो हम शराब और न शराबियों को मिटा सकते हैं. ये रहेंगे तो समाज से भी पूरी तरह शांत और सुसंस्कृत रहने की उम्मीद नहीं कर सकते.


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