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अनजाने में हुई गलती की इतनी बड़ी सजा!!

माँ-बाप बच्चों को अपना खून-पसीना लगाकर सींचते हैं. बच्चों की खुशी के लिए अपनी छोटी-छोटी खुशियों में कटौतियां करते हैं. बच्चे दस गलतियां करें, वे सब सहते हैं, क्यों? क्योंकि वे उनके बच्चे हैं. पर वही मां-बाप जब उम्र के आखिरी पड़ाव में बच्चे बन जाते हैं तो बच्चों के लिए वह शर्मनाक होता है. बच्चे उन्हें भूखा मारने, उन पर अमानवीय अत्याचार करने से भी नहीं चूकते. जंजीरों में बांधकर अपने मां-बाप को घर के बाहर रखना, उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ देना, यह कोई कहानी नहीं, यह इंसानियत को भी शर्मसार कर देने वाली सच्ची घटना है जिसे सुनकर आप कांप उठेंगे कि कोई अपने मां-बाप के साथ भला ऐसे कैसे कर सकता है.



कर्नाटक के शाकंबरी नगर में 94 वर्ष के अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)अपने घर की छत पर पानी की टैंक के नीचे चेन में बंधे हुए मिले. 94 वर्षीय ये अतिबुजुर्ग अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)के बेटे-बहू ने उन्हें अपने छत पर इस प्रकार मरने के लिए छोड़ दिया था. पुलिस को वे मिले, तो बहुत बुरी अवस्था में थे. पड़ोसियों की शिकायत पर पुलिस वहां आई थी और अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)उन्हें वहां इस हाल में मिले. कई पड़ोसियों ने तो उन्हें चार महीनों से देखा नहीं था और लगता था कि अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)मर चुके हैं. पेशे से उद्योगी अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)कभी अपनी किराना दुकान चलाया करते थे. उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं. 4 वर्ष पहले उनकी पत्नी के देहांत तक सब ठीक था. उसके बाद बेटे-बहू उनकी देखभाल में कोताही करने लगे. उनके दो बेटे तो एक ही मकान की ऊपरी और निचली मंजिल मंजिल में रहते हैं जहां अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty)मिले. एक बेटा बाहर रहता है. उनकी बहू का कहना है कि वे बाहर सड़क पर भीख मांगने चले जाते थे जिससे उन्हें बहुत शर्मिंदगी होती थी. एक 94 वर्ष के बच्चे के समान बूढे के किए गए अपराध की सफाई में ऐसी दलीलें देना…वाकई बेशर्मी की हद के सिवा और कुछ कहा नहीं जा सकता.



कर्नाटक में अनंथैया शेट्टी (Ananthaya Shetty) के साथ यह घटना आज की ताजा खबर हो सकती है लेकिन बहुत रेयर घटना नहीं है. ओल्ड एज होम (Old Age Homes)की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण है. कई बार तो ऐसा देखा जाता है कि जब तक मां-बाप की पेंशन आती रहती है, बच्चे उनकी देखभाल करते हैं, जैसे ही उनकी आमदनी बंद होती है या आमदनी से ज्यादा खर्च आने लगता है, बच्चे उन्हें बोझ समझकर या तो रिश्तेदारों के भरोसे रहने को छोड़ देते हैं या किसी वृद्धाश्रम (Old Age Homes) में छोड़ आते हैं. कई बार तो पैसों की कोई बात नहीं होती, लेकिन बुढ़ापे के कारण उनकी देखभाल में होने वाली परेशानियों के झंझट में न पड़ना चाहकर वे मां-बाप को उनकी हालत पर छोड़ देते हैं. कई बार बुढ़ापे के ही कारण उनकी कई हरकतों को वे शर्मनाक समझते हैं, समाज में अपनी इज्जत खराब होने से जोड़कर देखते हैं. वे भूल जाते हैं कि बचपन में जाने कितनी बार अनजाने में उन्होंने सबके सामने ऐसी कोई हरकत, कोई बात की होगी, जिसने उन्हें सचमुच शर्मसार किया होगा. वे भूल जाते हैं कि तब भी उनके मां-बाप ने उनकी उन हरकतों के बाद भी उतना ही प्यार दिया, जितना उससे पहले.



पहले का रूढ़िवादी समाज भले कई मायनों में घुटी हुई सोच रखता हो पर मां-बाप को उस समाज में भी भगवान का दर्जा ही दिया गया था. भले ही तब वह समाज आज की तरह मॉडर्न और मां-बाप को दोस्त की तरह समझने वाला न रहा हो, लेकिन तब भी वह समाज आखिरी सांस तक मां-बाप की हर सांस की देखभाल की कीमत समझता था. हम भले ही कितने ही मॉडर्न हो जाएं, हम जो हैं हमारे मां-बाप ने ही बनाया. वरना धूल फांकती गलियों की खाक छानने वाली जिंदगी देकर वे भी अपने लिए खुशियां तलाश सकते थे. इसके साथ ही हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हम जो कर रहे हैं, वहीं हमारे बच्चे भी देख रहे हैं. कल को वे भी इसकी दुहाइयां देकर आपके साथ वही करेंगे. तब तो समाज की आपके लिए संवेदना भी नहीं होगी…तब आप क्या करेंगे.


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