आजादी के समय से आज तक महिलाओं की दशा में बेशक बहुत सुधार आया है. संतोष इस बात का है कि बाल विवाह, सती प्रथा (Sati Pratha), पर्दा प्रथा जैसी न जाने कितनी कुरीतियों से लड़ती हुई औरत आज कम से कम इस मुकाम पर है कि वह सामाजिक विकास में अपनी साझेदारी और एक अहम् भूमिका अदा करने का दावा कर सकती है. निःसंकोच, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 20वीं सदी की उस नारी से आज की नारी बहुत उन्नत, बहुत बेहतर हालत में है. पर यह भी एक सच है कि सदियों से चली आ रही सोच को बदलना आसान नहीं है. महिलाओं के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है.
कल की ही खबर है, मुम्बई रेलवे स्टेशन (Mumbai Railway Station) पर किसी के द्वारा तेज़ाब फेंके जाने से बुरी तरह जल गयी प्रीति एक महीने तक अस्पताल में इलाज के बाद भी बच नहीं सकी. उसकी मौत हो गयी. दिल्ली की प्रीति एक नर्स थी. बचपन से उसे नर्स बनाने का शौक था. पिछले माह ही मुम्बई के एक अस्पताल में उसे नर्स की नौकरी मिली थी. 2 मई को अपने परिवार के साथ यह नौकरी ज्वाइन करने ही वह मुम्बई गयी थी पर नौकरी तो दूर वह ज्वाइन करने तक नहीं जा सकी. रेलवे स्टेशन पर ही किसी लडके ने उसके ऊपर तेज़ाब फेंककर उसे बुरी तरह जला दिया. पिछले एक महीने से वह अस्पताल में थी. इलाज से थोड़ी ठीक हुई थी पर वह इतनी बुरी तरह जल गयी थी कि डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए. तेज़ाब फेंकने की यह घटना कोई नई नहीं है. अक्सर ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं. मश्किल यह है पुलिस भी इन पर ज्यादा ध्यान नहीं देती. प्रीति के केस में भी आरोपी अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. हमारे क़ानून में भी इसके लिए कोई बहुत बड़ी सजा नहीं है जबकि यह जिंदगी भर के लिए लड़कियों के लिए अभिशाप बन जाता है. पर सबसे पहला सवाल आता है कि ये घटनाएं आखिर घट क्यों रही हैं?
कहां अलग है यह सती प्रथा के विकृत स्वरूप से
महिलाओं की समस्या यह है कि आज के विकासशील ढाँचे से विकसित ढाँचे की ओर बढ़ते भारत की आधी आबादी के रूप में वह खुद को इसके विकास में एक महत्त्वपूर्ण घटक मानने लगी हैं. विज्ञान, कला, मनोरंजन, खेल, प्रशासन, पुलिस, चिकित्सा हर क्षेत्र में अब वे बेहिचक घुस रही हैं. जाहिर सी बात है बाहर की जिम्मेदारियों के साथ घर की जिम्मेदारियां भी निभाते हुए वे अब प्यार, परिवार के लाभ के साथ अपना भी लाभ देखने लगी हैं. प्यार से जरूरी अब उसका कॅरियर है, पति की प्रताड़ना सहने से अच्छा वह उसे छोड़कर खुद अपने बच्चे का भविष्य सुधारना समझती हैं. महिलाओं का रवैया महिलाओं को अपना स्वाभिमान बचाना लगता है तो पुरुषों के लिए यह उनके अहंकार पर चोट होता है. खुद को महिलाओं के लिए सर्वेसर्वा समझने वाली उनकी सोच अब तक वहीं अटकी है. वे आज भी महिलाओं को अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा मानते हैं. महिलाओं द्वारा उनकी अनदेखी करना या उनकी बातें ठुकराना वे बर्दाश्त नहीं कर पाते. यही वजह है कि घरेलू हिंसा से निकलकर आज यह हिंसा सड़कों पर महिलाओं के ऊपर तेज़ाब फेंकने तक पहुंच चुकी है. प्रेमिका ने उसे ठुकराकर किसी और को पसंद कर लिया, उसके चहरे पर तेज़ाब फेंककर बर्बाद कर देंगे. लड़की को प्रेम प्रस्ताव रखा, उसने नहीं माना, उसके चहरे को तेज़ाब फेंकर जला देंगे, जिन्दगी भर किसी का और का प्रेम प्रस्ताव नसीब नहीं होगा. ऐसी बातें होती हैं. ऐसी सोच है आज भी हमारे समाज के अधिकाँश पुरुषों की. यह कल के सती प्रथा से कम नहीं है जहां महिला के पति की मौत के बाद उसके शव के साथ ज़िंदा पत्नी को भी आग में जलकर मरने के लिए मजबूर किया जाता था. इसकी कल्पना कुछ यूं ही होगी कि पति की नहीं तो किसी और की नहीं. छोटी-छोटी बातों पर महिलाओं के ऊपर तेज़ाब फेंकना भी कुछ ऐसी ही कल्पना प्रतीत होती है.
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