तमाम कार्यवाहियों और प्रदर्शनों के बाद आज भी महिलाओं के खरीद-फरोख्त का व्यापार पूर्ववत फल-फूल रहा है. महिलाओं को बस उपभोग की नजरों से देखने वाला यह पुरुष समाज उसकी भावनाओं और आपबीती को कभी समझ नहीं पाएगा. उसके दर्द को कभी अपना नहीं समझ पाएगा क्योंकि यह दर्द भी उसी ने जो दिया है. महिला सशक्तिकरण, महिलाओं की स्थिति में सुधार आदि सब धरा का धरा रह जाता है जब जन्म देने वाला पिता ही अपनी मासूम बेटी की इज्जत का सौदा कर देता है.
हाल ही की एक बेहद शर्मनाक घटना से हम आपको परिचित करवाने जा रहे हैं जहां एक पिता ने चंद पैसों के लिए अपनी नाबालिग बेटी का सौदा कर डाला.
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घटना है जालंधर (पंजाब) की है जहां महज 50 हजार रुपए के लालच में एक बाप ने अपनी बेटी को हैवानों के हाथों बेंच डाला. इतना ही नहीं जब बेटी ने अपने साथ होते इस अन्याय का विरोध करना चाहा तो उसके साथ मारपीट के साथ-साथ गंभीर रूप से प्रताड़ित भी किया गया. यह सब उसी इंसान की आंखों के सामने हुआ जिसने उसे पैदा किया था. पीड़ित लड़की तो अभी तक इस सदमे से उभर नहीं पाई है लेकिन उसकी बड़ी बहन का कहना है कि उनके पिता शराब पीने के आदी हैं और मां की मृत्यु की पश्चात शराब की लत और बढ़ गई थी.
पीड़िता पांच-भाई बहनों में सबसे छोटी है. पीड़िता की बहन ने बताया कि कुछ दिन पहले शराब के नशे में जब उनके पिता घर आए और 14 वर्षीय मेरी बहन को कहने लगे कि कल तुझे देखने लड़के वाले आएंगे और तुझे उसी से शादी करनी है. परिवार और पीड़िता के विरोध के बावजूद उसका विवाह अपने से 15 साल बड़े युवक से कर दिया गया.
अस्पताल में भर्ती पीड़िता का कहना है कि विवाह से इंकार करने पर उसके पिता ने उसके साथ मारपीट की और जान से मारने की धमकी भी दी. बहुत से लोग कहेंगे या सोचेंगे कि लाचारी और गरीबी से तंग आकर ही एक बाप अपनी बेटी को बेच सकता है. कोई खुशी-खुशी ऐसा क्यों करेगा? तो यहां सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों हर बार कमजोरियों, लाचारियों का नाम लेकर हमेशा और हर बार एक बेटी के ही जीवन के साथ खिलवाड़ क्यों किया जाता है?
आखिर क्यों मां-बाप एक बेटी को ही अपनी सभी परेशानियों की जड़ समझते हैं या फिर क्यों उसके शरीर का सौदा कर खुद को जिम्मेदारियों से आजाद समझते हैं?
माता-पिता यह क्यों भूल जाते हैं कि उस कोमल शरीर के भीतर छिपे मासूम से दिल के भी कुछ अरमान हैं जो पंख लगाकर उड़ना चाहते हैं, वह भी खुली हवा में सांस लेना चाहती है, तो क्यों उसे अपने कांधे का बोझ समझकर जैसे-तैसे बस उतारने का ही प्रयत्न किया जाता है? उसे बेच दिया जाता है उन लोगों के हाथों जिनका सरोकार सिर्फ उसके जिस्म से है, उसकी आत्मा, उसकी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है? इस क्यों का जवाब आपके और हमारे अंदर छिपा है जरूरत है तो बस इसे खंगालकर बाहर निकालने की.
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