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इस बार बलात्कार का विरोध करने पर हाथ-पांव ही तोड़ डाले

तड़के सुबह चार बजे जब वह महिला अपने घर के बाहर निकली तो उसी के गांव के चार पुरुषों ने उसके साथ ना सिर्फ पाशविक तरीके से बलात्कार किया बल्कि विरोध करने पर उसके हाथ-पांव तक तोड़ डाले.

दिल्ली गैंग रेप की नृशंस और बेहद अमानवीय घटना के बाद जिस तरह आम जनता का गुस्सा सड़कों पर आक्रोश बनकर फूटा था और प्रदर्शन और धरनों के बल पर सोए हुए प्रशासन की नींद को तोड़कर उसका ध्यान महिलाओं की सुरक्षा के प्रति आकर्षित कर गया था उसे देखकर तो लगा था कि जैसे अब हालात बदल जाएंगे, अब कोई महिला किसी हैवान की बुरी नीयत का शिकार नहीं होगी. लेकिन यह शायद हमारी खुशफहमी ही थी क्योंकि उस घटना के बाद भी पहले की ही तरह रेप और यौन शोषण की घटनाएं घट रही हैं. कुछ दिन पहले खबर आई थी कि रेप का विरोध करने पर कुछ दरिंदों ने मासूम के मुंह में रॉड घुसा दिया और अब झारखंड की महिला ने जब यौन शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाही तो उसके हाथ-पांव ही तोड़ दिए गए.


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हाल ही की घटना है जब पालम जिले(झारखंड) के छोटे से गांव की रहने वाली एक महिला शौच के लिए सुबह चार बजे के करीब अपने घर से बाहर निकली तो उसके पड़ोसियों ने उस पर हमला कर दिया. उसे बेहद खौफनाक तरीके से अपनी हवस का शिकार बनाया गया और जब उस महिला ने चिल्लाने की कोशिश की तो उसे असहनीय पीड़ा का शिकार होना पड़ा. उसके साथ मारपीट की गई. बहुत मुश्किल से वह अपने घर पहुंची और घर पहुंचकर उसने अपने परिजनों को इस शर्मनाक घटना की जानकारी दी. प्राथमिक उपचार के बाद पुलिस ने उस पीड़िता को जांच के लिए अस्पताल भेजा जहां उसके साथ हुए बलात्कार की पुष्टि हो गई.


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समझ में नहीं आता कैसे घृणित समाज में हम सांस ले रहे हैं. प्राचीन काल से ही पुरुषों के अधीन रहे इस समाज में महिलाओं को जीवन का अधिकार भी भिक्षा के ही रूप में दिया गया है. कोई भी महिला, चाहे वह शहर की हो या गांव की किसी भी रूप में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकती कि ना जाने कब, कौन उसे अपनी हैवानियत का शिकार बना ले.


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महिलाओं को मात्र उपभोग की वस्तु समझने वाला हमारा पुरुष समाज किसी भी हद को पार करने से गुरेज नहीं करता. भले ही सड़क पर चलती हुई महिला पर अपनी हवस ना उतारी जाए लेकिन घर पर पत्नी को तो अपनी जागीर समझने वाले बहुत लोग हैं जिनके अनुसार पत्नी का काम सिर्फ और सिर्फ पति की सेवा करना और हर परिस्थिति में उसे खुश रखना है.


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चाहे कितने ही धरने, प्रदर्शन क्यों ना कर लिए जाएं लेकिन जब तक महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंकने का सिलसिला समाप्त नहीं होगा तब तक घर हो या बाहर, किसी भी महिला, फिर चाहे वह किसी भी वर्ग, समाज या उम्र की क्यों ना हो, को यह डर सताता रहेगा कि उसकी शारीरिक संरचना जिसे ईश्वरीय वरदान कहा जाता है, को किसी हैवान के हाथों छलनी ना होना पड़े.

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