तन से भी लूट लिया और मन से भी अब शायद ही कभी इन कड़वी यादों को भूल पाऊंगी. इस बात का अहसास करना बहुत मुश्किल है जब किसी को तन से भी लूटा जाए और मन से भी. यह बात रेशमा नाम की महिला बोल रही है जिसका चार साल पहले बलात्कार किया गया था और वो आज भी उस घटना को भुला नहीं पाई है क्योंकि उसका बलात्कार करने वाले राक्षसों को मौत की सजा नहीं मिली है. शुरू से औरत का गहना होती है इज्जत. इज्जत महिला के अस्तित्व से भी ज्यादा मायने रखती है. इसकी कीमत सिर्फ एक महिला को ही पता होती है. इज्जत एक शब्द जिस पर महिलाओं का संसार टिका है. अब जरा सोचिए, आपके पुरखों की सम्पति या आपका सबसे कीमती सामान कोई चुरा कर ले जाए जिसकी वजह से आप समाज में तुच्छ निगाहों से देखे जाएं तो आप क्या करेंगे. इस पीड़ा का अनुभव तो मात्र एक प्रतिशत भी नहीं उस पीड़ा के जो उस लड़की को होती है जिसके साथ बलात्कार हुआ हो.
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बलात्कार किसी भी लड़की के लिए मौत से पहले मौत होती है. अब रानी(बदला हुआ नाम) के साथ जो हुआ वह मौत से कम नहीं था. पहले तो रानी के साथ उसके शरीर का कुछ वासना के भोगियों ने बलात्कार किया, उसके बाद उस असहाय को उसके खुद के माता-पिता ने कलंकिनी, कलमुंही जैसे अलंकारिक नाम दिए. कानून के रक्षकों ने उसे इंसाफ दिलाने की बजाय उसे ही दोषी माना और अंत में समाज की चुभती आंखों से बचने के लिए उसने आत्महत्या को बेहतर माना.
‘यह पीड़ा शरीर को तोड़ देती है’
बलात्कार के बाद यह सबसे पहली पीड़ा होती है. क्योंकि जब कोई जानवर अपनी पूरी ताकत से किसी की इज्जत लूटता है तो उस दर्द की पीड़ा मात्र से ही पीड़िता कई दिनों तक परेशान रहती है. और यह दर्द नाबालिग और कम आयु की लड़कियों में तो और भी ज्यादा होती है जिनके कोमल अंगों को यह जानवर नोच खाते हैं.
अकसर सामूहिक बलात्कार के बाद पीड़िता को एड्स और गर्भ जैसी समस्या होने का खतरा बना रहता है. सामूहिक बलात्कार, जो आजकल कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं उसमें पीडिता का शरीर कभी-कभी तो इतना थक जाता है कि उससे मृत्यु भी हो जाती है. हालांकि ऐसे समय में पीड़िता को जल्द ही अगर चिकित्सकीय मदद मिल जाए तो हालात काबू में किए जा सकते हैं.
मानसिक स्तर पर आघात
बलात्कार तो शरीर का होता है फिर मन को कैसी पीड़ा? लेकिन यह वह दर्द होता है जो हर दर्द से बढ़ कर होता है. शरीर का दर्द तो एक बार के इलाज से मिट भी जाता है लेकिन जो जख्म दिमाग में बनते हैं उसका अंत ज्यादातर आत्महत्या होती है. हालांकि यह गलत है किसी और की गलती के लिए खुद को दोषी मान कर सजा देना बेवकूफी है.
मानसिक अवसाद और अंधेरे में पीड़िता इस कदर गुम हो जाती है कि उसे अपने अस्तित्व का ख्याल ही नहीं रहता. हर समय मन उस डरावने समय को याद करता है और दिमाग पागलपन की तरफ खिंचता चला जाता है.
पीड़िता मात्र घृणा और दया की पात्र
जिस चीज से मन सबसे ज्यादा दुखी होता है वह है इतना सब होने के बाद समाज का रवैया. एक ऐसी लड़की जिसकी इज्जत लुट चुकी हो उसे समाज अधिकतर बुरी निगाहों से देखता है खासकर निम्न और मध्यम वर्ग में तो अगर किसी के साथ बलात्कार या रेप हुआ हो तो उसे अछूत से कम नहीं माना जाता.
सबसे ज्यादा दोष तो समाज का है जो बार-बार पीड़िता के अहम और उसके सम्मान का बलात्कार करता है. समाज इस चीज में पीड़िता की ही गलती देखता है, उसे हर जगह नीच भावना से देखता है. ऐसी स्थिति में लड़की का स्कूल, दफ्तर आदि जाना तो मानो पाप हो जाता है जहां हर दूसरी नजर उन्हें रंडी, वेश्या या कलमुंही की नजर से देखती है.
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