क्या कपड़े पहनने हैं किससे शादी करनी है और कौन सी उम्र में करनी है यह तमाम फैसले पुरुष महिलाओं के लिए लेते हैं. क्यों हमारे समाज में हमेशा से यही होता आया है कि पुरुष प्रधान समाज महिलाओं पर अपनी तानाशाही करता आया है. क्या समाज सिर्फ पुरुष की तानाशाही के लिए बना है जिसमें महिलाओं का अस्तित्व ओझल है या फिर स्वयं महिलाओं ने अपने आवाज को बंद करके अपने अस्तित्व को ओझल बना दिया है. यह तमाम सवाल हैं जिनके जवाब पुरुष तानाशाही में कहीं ओझल हो चुके हैं.
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पुरुष प्रधान समाज यह फैसला लेता है कि लड़कियों को क्या पहनना चाहिए भले कोई उनसे सवाल करे कि क्या लड़कियों के पूरे कपड़े पहनने से बलात्कार की संख्या कम हो जाएगी. शायद इस बात का जवाब उन पुरुषों के पास नहीं ही होगा जो महिलाओं पर अपनी तानाशाही चलाने को गर्व की बात समझते हैं. लड़कियों के जीन्स पहनने पर रोक लगा पाने में असमर्थ उत्तर प्रदेश के भारतीय किसान मोर्चा ने अब एक नया फरमान जारी कर दिया है. उस फरमान में भारतीय किसान मोर्चे ने ऐलान किया है कि जिस गांव में जाट लड़कियां जीन्स पहने दिख जाएंगी, उस गांव के प्रधान को 20 हजार रुपए जुर्माना देना होगा. ऐसे लोग जो लड़कियों के पहनावे को समाज में असंतुलन से जोड़ते हैं उनकी इस बात पर हैरानी होती है कि लड़कियों के जींस पहनने से कैसे समाज में असंतुलन हो सकता है.
मानसिक स्तर पर पीड़िता
कभी भी आघात पहुंचाने वाला व्यक्ति इस बात का अहसास नहीं कर सकता है कि जब किसी व्यक्ति को मानसिक स्तर पर आघात पहुंचता है तो उसे किस तरह की मानसिक पीड़ा से त्रस्त होना पड़ता है. ऐसा ही कुछ हाल उन महिलाओं का होता है जब उन्हें यह कहा जाता है कि चारदिवारी तक ही तुम्हारी दुनिया है और जो हम कहेंगे उसका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है भले ही पुरुष प्रधान समाज कर्तव्य के नाम पर महिलाओं को मानसिक पीड़ा से त्रस्त कर दे.
बलात्कार और समाज में असंतुलन
पुरुष प्रधान समाज जब अपनी तानाशाही करता है तो महिलाओं की जिन्दगी को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लेना चाहता है और यही चाहता है कि जैसा वो चाहे महिला वैसा ही करे. यदि महिला, पुरुष प्रधान समाज के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करती है तो उसे मानसिक और शारीरिक हर स्तर पर दंडित किया जाता है. तानाशाह पुरुष जो महिलाओं के पहनावे को समाज में असंतुलन से जोड़ते हैं और कहते हैं कि महिलाओं के जीन्स जैसे पहनावे के कारण ही बलात्कार की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं उन्हें यह समझने की जरूरत है कि बलात्कार उन महिलाओं के ज्यादा होते हैं जो पश्चिमी सभ्यता के पहनावे से कोसों दूर हैं.
दबी-दबी आवाज सुनाई नहीं देती
चुप्पी साध लेने से और दबी-दबी आवाज में चिल्लाने से समाज में कोई परिवर्तन नहीं होता है. ऐसा ही कुछ हाल महिलाओं का है जो परिवर्तन तो चाहती हैं पर परिवर्तन के लिए कदम उठाना नहीं चाहती हैं. अधिकांशतः यह देखा गया है कि जब भी महिला अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाती है तो पहले अपने परिवार और समाज के बारे में सोचती है जिस कारण उसकी आवाज में वो जोश नहीं होता है जो पुरुष प्रधान तानाशाही को रोक सके.
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