Menu
blogid : 316 postid : 1711

औरत ही औरत की दुश्मन

नवरात्रपर्वभारत का एक बेहद अहम पर्व है. धार्मिक दृष्टि से जितना इस पर्व का महत्व है उससे कहीं ज्यादा महत्व सामाजिक दृष्टिकोण से भी है. समाज में कन्याओं की कम होती संख्या और कन्या पूजन जैसे विशेष मौकों पर इनकी कमी को देखते हुए हमें अहसास होता है कि वाकई समाज में लड़कियों की संख्या चिंताजनक है. लेकिन यह याद आखिर सिर्फ कन्या पूजन के समय ही क्यूं आती है? साल के बाकि दिनों में आखिर समाज और सत्ता को इन कलियों की याद क्यूं नहीं आती जिन्हें जन्म से पहले ही कोख में ही कुचल दिया जाता है.

Read:Story of Girl Child Abortion


शांति की कहानी

आइए एक कहानी के द्वारा जानें हमारे समाज में बेटियों की एक कड़वी सच्चाई को:

शांति अपने घर की बड़ी बेटी है और सुभाष उसका छोटा भाई. शांति पढ़ना चाहती थी लेकिन उसकी मां के विरोध की वजह से वह हमेशा घर के काम करती है और उसे सुभाष की तरह आजादी भी नहीं दी जाती है. सुभाष को सुबह सुबह उठते समय दूध मिलता है तो शांति को मां की डांट. इसी तरह जब सुभाष बड़ा हो गया तो भी शांति के साथ यह भेदभाव चलता रहा. आखिरकार नादान शांति ने अपनी मां से एक दिन पूछ ही लिया कि “मां क्या आपके साथ भी बचपन में नाना-नानी ने ऐसा ही बर्ताव किया था.” यह सुनकर शांति की मां फूट-2 कर रोने लगी और उन्होंने अगले ही दिन शांति को भी स्कूल भेजना शुरु कर दिया.


Girl Child Abortion Cases in India: यत्र नार्यस्तु पूजयते,रमन्ते तत्र देवता

शांति तो स्कूल जाने लगी लेकिन समाज में ऐसी कई शांतियां हैं जिन्हें आज भी लड़कों के बराबर अधिकार नहीं मिल पाया है. कई लड़कियां तो ऐसी होती है जिन्हें दुनियां में आने भी नहीं दिया जाता. भारत में कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप काफी समय से समाज पर एक कलंक की तरह लगा हुआ है जो आज शिक्षा के अस्त्र से भी नहीं हट रहा है. “यत्र नार्यस्तु पूजयते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता का वास होता है, ऐसा शास्त्रों में लिखा है लेकिन विश्वास नहीं होता आज भारतीय समाज में ही इतनी कुरीतियां फैली है जिससे नारी के प्रति अत्याचारों को बढ़ावा मिला है.


क्या दोषी है हिंदू धर्म ?

जीवन की हर समस्या के  लिए देवी  की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या के जन्म को अभिशाप मानता है. लेकिन कन्या भ्रूण हत्या में अगर देखा जाएं तो सबसे बड़ा दोष हिंदू धर्म का भी लगता है जो सिर्फ पुत्र को ही पिता या माता को मुखाग्नि देने का हक देती है और मां बाप के बाद पुत्र को ही वंश आगे बढ़ाने का काम दिया जाता है. हिंदू धर्म में लड़कियों को पिता की चिता में आग लगाने की अनुमति नहीं होती मसलन ज्यादातर लोगों को लगता है कि लड़के न होने से वंश खतरे में पड़ जाएगा. इसके साथ ही समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर से जिस तरह समाज का विभाजन हुआ है उसमें भी लड़कियों को काम करने के लिए बाहर निकलने की अधिक आजादी नहीं है. आज भी आप देखेंगे कि लड़कियों के काम करने पर लोगों को बहुत आपत्ति होती है.


Women Role in Girl Child Abortion:औरत ही औरत की दुश्मन

कन्या भ्रूण हत्या में पिता और समाज की भागीदारी से ज्यादा चिंता का विषय है इसमें मां की भी भागीदारी. एक मां जो खुद पहले कभी स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तितव को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लड़की भी उसी का अंश है. औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन गलत नहीं है. घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई चरण हैं जहां महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है.


उपरोक्त तथ्यों पर गौर करने के बाद हमारे दिल से तो बस यही पंक्तियां निकलती हैं:

खिलने दो फूलों को,कलियों को मुसकाने दो

आने दो रे आने दो,उन्हें इस जीवन में आने दो



कन्या भ्रूण हत्या विरोधी कानून जाननें के लिए यहां क्लिक करें:

Post Your Comments on:क्या आज समाज में कन्याओं की कम होती संख्या का दोष कुछ हद तक महिलाओं को भी दिया जा सकता है?


Tag: Girl Child Abortion,World Girl Child Day 2012, International Day of  Girl Child, Girl Child Abortion, Selective abortion,कन्या भ्रूण हत्या,गर्भपात, International Day of the Girl Child 2012, International Day of the Girl Child,कन्या भ्रूण हत्या,कन्या कविता, Hindi Kavita, Story of a Girl,एक लडकी की कहानी, Sex-selective abortion, War Against Girl Child Abortion, Save the girl child in India

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh