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सिर्फ चेहरा ही नहीं आत्मा भी जलाती है…

किसी को मौत के घाट उतार देने से उसकी पूरी जिंदगी खत्म की जा सकती है, उसका हाथ पांव काट देने से उसको अपंग किया जा सकता है लेकिन अगर किसी पर तेजाब डाल दिया जाए तो वह इंसान ना मर पाता है ना ही जी पाता है. तेजाब से बदसूरत हुई जिंदगी को हमारा समाज सर उठाकर जीने की इजाजत नहीं देता. तेजाब से सिर्फ चेहरा नहीं इंसान की आत्मा भी जलने लगती है. यही वजह है कि हम इस बार अपने सोशल इश्यू ब्लॉग के द्वारा एसिड अटैक के बारे में लोगों को जागरुक कर रहे हैं.

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Acid attack victimAcid Attack Victims: तेजाब से बर्बाद जिंदगियां

तेजाब से बर्बाद हुई जिंदगियों की कहानी बहुत लंबी है. भारत में हर महीने आपको कई ऐसी खबरें सुनने को मिल सकती हैं जो महिलाओं पर तेजाब फेंकने से संबंधित होती हैं. यह कहानियां भारतीय समाज में महिलाओं के उस दर्दनाक कहानी को बयां करती हैं जिस सूरत में महिलाओं के लिए अपने वजूद को बचा पाना नामुमकिन होता है. आइए अब सोनाली मुखर्जी जैसी साहसिक लड़की की कहानी पर भी एक नजर डालें जो कभी तो नेशनल कैडेट कोर की वर्दी पहनकर देश की सेवा के सपने देखती थी.


Story of Acid attack victim Sonali: सोनाली मुखर्जी की जिंदगी की दर्दनाक दास्तां

लेकिन अब सोनाली मुखर्जी जिंदगी की जद्दोजहद से बुरी तरह हताश हो चुकी हैं. असामाजिक तत्वों के दिए जख्म उसके चेहरे पर तो दिखते ही हैं, साथ ही उसके मन पर भी इनका गहरा असर हुआ है. 22 अप्रैल, 2003 को घर में घुस कर कुछ युवकों ने उसके ऊपर एसिड डाल दिया था. इसकी वजह से उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई और दाहिने कान से सुनाई भी देना बंद हो गया. इन युवकों ने एक दिन पहले उसके साथ छेड़छाड़ की थी जिसके जवाब में उसने इन लड़को को कुछ इस अंदाज में डांटा था “प्लीज मेरा दुपट्टा दे दीजिए, मुझे छोड़ दीजिए, मुझे घर जाना है. प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कीजिए. मैं तुम सबकी शिकायत तुम्हारे घर वालों और अपने परिवार से करूंगी.”

इतना कहना उन जालिमों को नागवार गुजरा और देखते ही देखते एक रात एसिड फेंककर उस युवती का चेहरा बिगाड़ दिया.


लेकिन शायद सोनाली इस घाव को भूल भी जाती लेकिन समाज और सरकार की बेरुखी ने उसे इस कदर तड़पा दिया कि उसने अपने लिए मौत मांगना ही सही समझा.

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Acid attack victim अकेली नहीं है सोनाली

सोनाली मुखर्जी अकेली ऐसी युवती नहीं हैं जिन्हें एसिड अटैक यानि तेजाबी हमले का शिकार होना पड़ा है. समाज में मनचले अकसर एकतरफा प्यार को खारिज करने के दुस्साहस की सजा महिलाओं के चेहरे या बदन पर तेजाब फेंक कर देते हैं.


बेशक ऐसे तेजाबी हमलों से महिलाओं की मौत तो नहीं होती, लेकिन विद्रूपता और विकृति की वजह से उसकी तमाम जिंदगी मौत से कम नहीं होती. पुरातन समाज में मर्द महिलाओं से बदला लेने के लिए उनकी नाक काट देते थे. मर्द महिला को ऐसी क्रूरतम सजा देना चाहते हैं कि पीड़ित जिंदा रहते हुए भी जिंदा न रह सके. तेजाब हमला नाक काटने की सजा का नया वर्जन है.


Effects of Acid Attack: तेजाबी हमले से होने वाले नुकसान

तेजाब के हमलों के कुप्रभावों पर हुए अध्ययन यह दर्शाते हैं कि तेजाब पीड़ित इंसान की त्वचा के साथ-साथ भीतर भी असर छोड़ता है. आंखों पर तेजाब पड़ने से आंखों की रोशनी चली जाती है.

हड्डियां वक्त से पहले कमजोर पड़ जाती हैं. कई बार सर्जरी कराने से प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. तेजाब से जले हुए इंसान का इलाज बहुत महंगा होता है और कई बार सर्जरी कराने के बाद भी पीडि़त का विकृत चेहरा या बदन पूरी तरह ठीक नहीं हो पाता है. फिर काम करता है हमारे समाज का लैंगिक पूर्वाग्रह. इस मानसिकता के चलते परिजन पीडि़त का पूरा इलाज कराए बिना ही उसे अस्पताल से घर ले आते हैं. समाज में भी ऐसी हिंसा की शिकार लड़कियों के प्रति उतनी संवेदनशीलता नजर नहीं आती, जितनी हिंसा की अन्य अभिव्यक्ति के प्रति दिखाई देती है.


Acts Against Acid Attacks: तेजाबी हमलों को रोकने के लिए कानून

हालांकि अपने देश में तेजाब हमलों से पीडि़त महिलाओं के अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर अखबारों में ऐसी खबरें अकसर पढ़ने को मिलती हैं. ऐसी घटनाओं के बढ़ने के पीछे एक अहम वजह स्त्री विरोधी हिंसा के इस क्रूर अपराध के खिलाफ अलग से किसी कानून का नहीं होना भी है.


एसिड या तेजाब से हमला होने की सूरत में भारत में कोई सशक्त कानून नहीं है. यूं तो ऐसे अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 329, 322 और 325 के तहत दर्ज होते हैं. लेकिन इसके अलावा पीडि़तों के इलाज, पुनर्वास और काउंसलिंग के लिए भी सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि ऐसे हादसों में पीडि़त को अपूरणीय क्षति उठानी पड़ती है. इन हादसों का मन-मस्तिष्क पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बना रहता है.


सरकार ने अभी भी तेजाब पीड़ितों के लिए कोई खास कानून नहीं बनाया है जिसकी वजह से समाज में कई महिलाएं पीडित हैं. भारत के लचर कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो तेजाब से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिला सके. और जो कानून हैं वह बहुत ही लचर हैं जिससे अपराधी आराम से निकल जाते हैं. अगले अंक में हम तेजाबी हमलों के बाद कानून के रवैये पर चर्चा करेंगे.

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