Menu
blogid : 316 postid : 1665

पत्नी हो थोड़ा सह लो मार पिटाई…..

पीयूष और प्रीति की शादी को दो साल हो चुके हैं. इन दो सालों में दोनों ने अपने वैवाहिक जीवन की कठिनाइयों से हार मानते हुए तलाक का फैसला किया. वजह थी पीयूष का गुस्सैल रवैया और दो चार बार प्रीति पर हाथ उठाना. जब प्रीति ने सिर्फ एक थप्पड़ पर पीयूष से तलाक लेने का फैसला किया तो प्रीति की मां ने उससे पूछा कि पीयूष तुम्हारा इतना ख्याल रखता है, तुम्हारा खर्चा उठाता है और इसके बदले उसने तुम पर हाथ उठाया तो क्या गलत किया?

Read: दहेज प्रथा का घिनौना चेहरा


क्या पीयूष ने गलत किया या प्रीति का आत्म-सम्मान इस एक थप्पड़ से इस तरह टूट गया कि उसने पीयूष से अलग होने का फैसला किया? इन सवालों का जवाब देना बेहद कठिन है लेकिन हाल ही में घरेलू हिंसा को जायज ठहराते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट के जज जस्टिस के. भक्तवत्सल ने कहा कि विवाह में महिलाओं को परेशानी उठानी पड़ती है. उनका कहना था कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी की सही देखभाल करता है तो हिंसा में कोई बुराई नहीं है.


husband-wife-humorपुरुषवादी समाज की सोच

यह बयान बेशक जस्टिस के. भक्तवत्सल की नजर में बेहद आम और न्यायसंगत हो लेकिन इस फैसले का जो संदेश जनता में गया वह बेहद गंभीर है. जब समाज का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति घरेलू हिंसा को समर्थन देने जैसे बयान दे तो इससे समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण के सभी प्रयासों पर बुरा प्रभाव पड़ना लाजमी है.


प्रभावित हो सकता है महिलाओं का सशक्तिकरण कार्यक्रम

जस्टिस के. भक्तवत्सल का बयान एक पुरुषवादी समाज की सोच नजर आती है जो पत्नियों को पैर की जूती समझता है. भारतीय समाज में एक लंबे अर्से से शादीशुदा महिलाओं के साथ मारपीट और हिंसा होती रही है. इसे रोकने के लिए समय-समय पर कानून तो बने लेकिन उनका पालन ना के बराबर हुआ. साल 2006 में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 लागू होने के बाद घरेलू हिंसा पर थोड़ी लगाम लगी लेकिन इस तरह के बयानों से लगता है कि महिलाओं के उत्थान में बहुत दिक्कत आ सकती है.


Women laws in India कुछ बलिदान पुरुषों को भी देना होगा

माना कि समाज में कुछ महिलाओं का बर्ताव अराजक होता है और उनके साथ सामंजस्य बिठाना टेढ़ी खीर साबित होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम पूरी नारी जाति को इसमें लपेटें. महिलाओं के साथ बढ़ते जुर्म और अन्याय को देखते हुए समाज में इस तरह के बयानों और फैसलों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.


गेंहू के साथ घुन पिसता जरूर है

यहां हम इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे हैं कि कई महिलाएं घरेलू हिंसा अधिनियम की आड़ में अपने ससुराल वालों का ही शोषण करती हैं लेकिन ऐसी महिलाओं और ऐसे केसों को हमें तब नजरअंदाज करना पड़ता है जब एक नवविवाहिता युवा कन्या दहेज के लोभियों द्वारा जिंदा जला दी जाती है.

आज अगर महिलाओं को उनका सही स्थान और इज्जत दिलानी है तो हमें उन्हें जरूरत से ज्यादा अधिकार और स्थान देना होगा. उनके विकास में किसी भी प्रकार की बाधा को आने से रोकना होगा. समाज के हर अंग को समझना होगा कि महिलाओं की सुरक्षा समाज के लिए कितनी जरूरी है.


Read: Wife- For Sale???


Tag: Women’s Empowerment, NATIONAL POLICY FOR THE EMPOWERMENT OF WOMEN, Women in India, Women Empowerment, Essay On The Empowerment of Women In India, Women’s Empowerment, घरेलू हिंसा अधिनियम, महिलाओं का शोषण, सामाजिक परेशानियां, हिंसा कानून, साल 2005

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh